अमित भाई,आप कुछ विचित्र सा बर्ताव करने लगे हैं

गुरुवार, 11 जून 2009

अमित भाई,आप कुछ विचित्र सा बर्ताव करने लगे हैं इस बात पर आश्चर्य हो रहा है। रही बात अनूप मंडल के लोगों की तो वे तथ्य और तर्कपूर्ण बात यदि न करें तो उन्हें सहज ही नकार देना सही होगा। आपको याद होगा कि इसी मंच पर भाई रजनीश झा और डा.रूपेश श्रीवास्तव जैसी शख्सियतों पर मुस्लिम तुष्टिकरण और माफ़िया डान दाउद इव्राहिम से पैसा आने तक का इल्जाम लगाया गया था लेकिन ये दोनो इतने सच्चे हैं कि इन आरोपों से जरा भी विचलित नहीं हुए बल्कि विमर्श का रास्ता खुला रखा और उसका परिणाम ये हुआ कि प्रशांत नाम का वो अशांत व्यक्ति स्वयं ही भड़ास से भाग गया सदस्यता छोड़ कर जबकि ये दोनो माडरेटर चाहते तो मात्र माउस के एक क्लिक से उसकी सदस्यता समाप्त कर देते। लोकतंत्र का सही मतलब ही यही है कि विमर्श का मार्ग बंद न हो। मेरा आपसे यही निवेदन है कि आप विचलित न हों और न ही अनूप मंडल के लोगों को मौका दें कि वे आप पर कोई अनर्गल शब्द प्रहार करें। अफ़सोस तो इस बात का है कि महावीर सेमलानी जी भड़ास से असमय चल बसे। यदि महावीर सेमलानी जैसे विद्वान होते तो शायद ये स्थिति न होती क्योंकि आपने तो शुरूआत में ही अत्यंत विनम्रता से कहा था कि आप धर्म जैसे गूढ़ विषय के विद्वान नहीं हैं। मैं एक बार फिर महावीर सेमलानी जी से निवेदन करता हूं कि वे इस विमर्श में भड़ास की सदस्यता लिये बिना ही समस्या को सुलझाएं।
जय जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

dr amit jain ने कहा…

सोनी जी आप के द्वारा लिखा गया बंधुत्व की भावना से भरा लेख पढ़ा और मई फिर से अनूप मंडल के कुतर्को का जवाब देने के लिए तयार हो गया ,
सबसे पहले यदि अनूप मंडल मन की कषाय को छोड़ कर निर्मलता पूर्वक यहाँ मंच पर धर्म जैसे संवदेनशील मुदे पर बात करे तो कोई भी सहर्ष तयार हो जायगा /
पहली बात अनूप मंडल कहता है ये धातु क्या होता है ?
अनूप मंडल यदि हिंदी भाषा या संस्कृत भाषा को जानता है तो उन्हें व्याकरण शब्द जरूर पता होगा /
यदि नहीं पता तो किर्पया पहले भाषा को पढ़ ले /
जब कोई भाषा साहित्य की समृद्धि से जगमगाने लगती है, तब उसके व्याकरण की जरूरत पड़ती है/
इस व्याकरण के लिए पदों को ("मध्यस्तोऽवक्रम्य") बीच से तोड़ तोड़कर प्रकृति प्रत्यय आदि का भेद किया-व्याकरण बनाया गया /
इसी परकार भाषा विज्ञानं सब्द शास्त्र है /
व्याकरण तथा भाषाविज्ञान दो शब्दशास्त्र हैं; दोनों का कार्यक्षेत्र भिन्न-भिन्न है;
पर एक दूसरे के दोनों सहयोगी हैं। व्याकरण पदप्रयोग मात्र पर विचार करता है;
जब कि भाषाविज्ञान "पद" के मूल रूप (धातु तथा प्रातिपदिक) की उत्पत्ति व्युत्पत्ति या विकास की पद्धति बतलाता है।
व्याकरण यह बतलाएगा कि (निषेध के पर्य्युदास रूप मे ), "न" (नञ्) का रूप (संस्कृत में) "अ" या "अन्" हो जाता है।
अब सोनी जी एक शब्द जिन का मतलब बताने के लिए मुझे पूरा व्याकरण इन को बताना पड़ेगा /
क्योकि मुझे उम्मीद है की अगली पोस्ट मे अनूप मंडल लिखेगा
ये भाषा विज्ञानं क्या है? ,
ये पद पर्योग क्या है ? ,
ये उत्पति व्युत्पति क्या है ? ये परुदास क्या है ?
अब ये अनूप मंडल व्यथ की बात करते है की आप अपने भगवन की तस्वीर भेजिए /
कितनी बचकानी बात है /
सिर्फ किसी स्थापित मूल्यों को तोड़ मरोड़ कर उन से उन का श्पष्टिकरण मांगना बेव्खुफी नहीं तो क्या है / ---------------------------------------------------------------------------------------------------- बङे से बङा शहर जैन वंश को बणीयो के नाम से ही संबोधित करते है शायद आप
यह कहेगे कि हम बनिये नही है

बनिया अक्षर का असली अर्थ बिगङी औलाद से है जो अर्थ
ङिक्सनरी से नही मिलता है सौदागर का अर्थ होता है जो पुरूष माँ के घर मे
चोरी करता है वह सौदागर के नाम से जाना जाता है महाजन का अर्थ होता है
माँ के साथ बेटा, पति की तरह वर्ताव करके औलाद पैदा करे- उस औलाद को
महाजन वंश कहाँ गया है अमीत.....
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अब इस परकार का लेख जो ये महोदय लिख रहे है ,
वो बाते किस dictionary से उन होने ये शब्दार्थ लिए है /

सिर्फ उन की इन जातीय मानसिकता के चलते मैंने उन से बात न करना ही उचित समझा / क्यों की मे अनूप मंडल के स्तर तक गिर कर नहीं लिख सकता था /

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