एक अरब भूखे? भर पेट खाए तब भी मरेंगे...
सोमवार, 22 जून 2009
अभी-अभी ख़बर मिली है की इस साल पुरी दुनिया में भूखों की संख्या १ अरब का आंकडा भी पर करने जा रही है। खाद्य और कृषि संगठन की ताजा रिपोर्ट में यह कहा गया है की इस साल वित्तीय संकट के चलते करीब १ अरब २ करोड़ लोग प्रतिदिन भूखे पेट सोयेंगे। जाहिर है इसमे भी भारतीय ही अव्वल होंगे। संगठन का कहना है की फसलों की पैदावार में कमी होने की वजह से भूखों की संख्या में करीब ११ प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है। संगठन का ये भी आंकडा है की हर ३ सेकेण्ड में १ व्यक्ति भूख से मर रहा है। खाद्य कीमतों की ऊँची दर भी एक कारण बताया जा रहा है। इससे निजात पाने के लिए करीब ३० अरब डालर की जरुरत पड़ेगी तब कही जाकर इन भूखों को मरने से बचाया जा सकता है। ये तो रही दुनिया भर में बढ़ रही भूखों की संख्या सम्बन्धित आंकडे बाजी! अब आते है अपने देश की हालिया सूरते-हाल पर। पिछले कुछ दिनों से टीवी चैनलों पर जहरीली सब्जियों के बारे में दिखाया और समझाया जा रहा है। इनकी रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा है की आलू, बैगन, लौकी , केला टमाटर सहित कई सब्जियों और फलों में जानवरों के जिन का इस्तेमाल किया जा रहा है। मतलब यह की यदि आप भूखों की फेहरिस्त में शामिल नही है तब भी आपके मरने के चांसेस हैं। क्योंकि इन सब्जियों की पैदावार बढ़ाने के लिए जिस तरह से जहरीली दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है वह धीरे-धीरे ही सही लेकिन हमें मारने के लिए काफी है। भारतीय पुरातन काल से ही जुगाडू प्रवित्ति के प्राणी रहे हैं। जब इन्होने यह देखा की पैदावार का कम हो रही है तो जुगाड़ लगा लिया की चलो कुछ दवाई-सवाई मिलाकर इसे बढाया जाए। सो भाई लोगों ने जहरीली दवाईयां मिलनी शुरू कर दी है। कृषि संगठन ने भूखों का आंकडा तो पेश कर दिया लेकिन खाए-पिए और अघाये लोगों की मौतों का आंकडा कहा से जुटाया जाएगा? इसी तरह मसालों में भी मिलावट की बातें सामने आ रही हैं, इन मिलावटी मसालों से भी कैंसर हो सकता है , जिसकी अन्तिम परिणति मौत के मुहाने पर ही होती है। सब्जी हो गया , मसाला हो गया अब बात करते हैं भारतीय अमृत यानि दूध, दही पनीर और देशी घी, तेल की । रिपोर्ट्स के मुताबिक दूध यूरिया से बनाया जा रहा है, दही और पनीर तो बिना मिलावट का मिलता ही नही। तेल के कितने किस्से पहले ही समाचार बन चुके हैं। देशी घी में गाय सहित कई जानवरों की चर्बी मिली जा रही है। तो क्या हम ये मान ले की पानी के सिवाय अब कुछ भी हमारे खाने योग्य नही बचा है? मुझे भी सहसा इन बातों पर विश्वाश नही हुआ था मगर मेरे एक पत्रकार दोस्त के तर्क ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया की ये सब सच हो सकता है। मेरे दोस्त ने चर्चा के दौरान ये बताया की देखो अभी तुम पुरी दिल्ली में घूम जाओगे तो तुम्हे १०० किलो दूध मिलना मुश्किल हो जाएगा , लेकिन देशी घी लेना चाहोगे तो १०० देशी घी तुम्हे एक छोटी सी परचून की दुकान पर आराम से मिल सकता है। तो भाई जब दूध है ही नही तो घी कहाँ से पैदा हुआ? मैंने कहा यार सरकार कुछ करती क्यों नही? मित्र का जबाब बड़ा ही सरल किंतु कटु सत्य लगा, उसने कहा की अगर कानून बनने भर से ये सब बंद हो जाता तो देश में कब का राम-राज्य आ चुका होता। बस ये सोचो की कैसे इस जहर को कम से कम हलक के निचे उतारा जाए ताकि मौत का रास्ता थोड़ा सा लंबा हो जाए। मरना तो एक शास्वत सत्य है लेकिन जान-बुझकर मरना अपराध है। इसलिए जहाँ तो सके सोच-समझकर खाओ ! मन बड़ा व्यथित हो गया है..पढ़ने वाले सभी आगंतुकों से विनम्र पार्थना है की कुछ न कुछ उपाय जरुर सुझाएँ..ताकि जीने की लालसा बनी रहे.....
जय भड़ास जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
बहुत जबरदस्त बात अपने कही, वैसे तो पहले भी ये बातें सुनी हैं, लेकिन आपने कुछ ऐसे पेश किया है की अब बाहर का घी तो बिलुकुल ही त्याग दूंगा !! सच्ची और मुच्ची ये कोई आकर्षक टिप्पणी के लिए नहीं लिख रहा हूँ !!भई भावनाओं को समझें !!!
द्विवेदी जी आप ने जो भी लिखा है वो एक राक्षसी लालची और खतरनाक सोच का परिणाम है कि लोग मिलावट जैसा पाप करने से पहले जरा भी नही सोचते कि वो ये खिलवाड़ पीढ़ियों के साथ कर रहे हैं क्या पैसा रुपया साथ लेकर जाने वाले हैं। कानून बना लेना पर्याप्त नहीं उसका सख्ती से पालन कराने की इच्छाशक्ति भी चाहिये।
जय जय भड़ास
जय नकलंक
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