अपनी भड़ास को सीधे ही अपने ई-मेल द्वारा इस पते पर भेजिये bharhaas.bhadas@blogger.com
भड़ासी अपने चिट्ठों को यहां भड़ास के अपने एग्रीगेटर पर सूचीबद्ध करें अपने चिट्ठे का URL सीधे ही हरे रंग के प्लस(+)के चिन्ह पर क्लिक करके जोड़िये
वह मूर्तिमान छवि ऐसी,
ज्यों कवि की प्रथम व्यथा हो।
था प्रथम काव्य की कविता
प्रभु की अनकही व्यथा हो॥
निज स्वर की सुरा पिलाकर
हो मूक ,पुकारा दृग ने।
चंचल मन बेसुध आहात
ज्यों बीन सुनी हो मृग ने॥
मुस्का कर स्वप्न जगाना,
फिर स्वप्न सुंदरी बनना।
हाथो से दीप जलना
अव्यक्त रूप गुनना॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
© भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८
Back to TOP
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें