कसाब
सोमवार, 15 जून 2009
कसाब को फाँसी देने के लिए जंगल में ले जाया जा रहा था। तेज़ बारिश हो रही थी। रास्ता ऊबड़ खाबड़ और अँधेरा था। कसाब बार बार ठोकर खाकर गिर जाता था।
आखिर वह झल्लाकर बोला,
"यह कहाँ की शराफ़त है?
मैं मरने जा रहा हूँ फिर भी ऐसे गंदे रास्ते पर चलाया जा रहा हूँ।"
"तुम्हें तो जाना ही जाना है भाई, जल्लाद बोला, "हम लोगों को तो इसी रास्ते से वापस लौटना है।"
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