राग दरबारी के बहाने क्रिकेटचर्चा

बुधवार, 24 जून 2009


=> कटिया मार कर केबल टी.वी. देखने में जो मजा है वह कनेक्शन लेकर देखने में कहां । बेचारा वर्मा, उसकी टी.वी. में तो अब दूरदर्शन के सिवाय कुछ न आ रहा होगा ।


रात के साढ़े नौ बज रहे थे मगर शिवपालगंज गांव के सर्वेसर्वा बैद्य महाराज की बैठक अभी भी ठसा-ठस भरी हुयी थी । उमस भरा दिन किसी तरह गुज़रा था और रात को भी कोई राहत मिलती नहीं दिखाई पड़ रही थी । चकाचक काली मिर्च, बादाम, पिस्ता वाली ठंडई शाम से दो बार बन चुकी थी । शनीचर हमेशा की तरह चड्ढी-बनियान में आज बड़े जोश में था । सिल-लोढ़े पर भंग घिसने का पारंपरिक काम आज उसने बड़े तरंग में किया । परसाल बैद्य महाराज ने अपनी बैठक में सिम्फनी का एयर कूलर लगवा लिया था, लेकिन इस सड़ी गर्मी में उसने ने भी हाथ खड़े कर दिये ।

शिवपालगंज में भले आदमी रात के नौ बजे तक खा-पी कर अपने-अपने बिस्तरों की शोभा बढ़ाने चले जाते हैं । इस्टूडेन्ट कमुनिटी को न तो ब्रह्ममुहूर्त में पढ़ाई से मतलब होता है न देर रात तक रद्दी किताबों में आंखे फोड़ने से, कुछ देर चादर के नीचे फ्रस्टेट होने के पश्चात वो भी गहरी नींद में चले जाते हैं । फिर भले ही सपने में उनको बैद्य महाराज का वीर्यमय, तेजपूर्ण तमतमाया हुआ चेहरा डराता रहे या ‘जीवन से निराश नवयुवकों के लिए आशा का संदेश’ नामक विज्ञापन गोल-गोल चक्कर काटता दिखे । विवाहित लोग बत्ती बुझाने के बाद थोड़ी देर अपनी-अपनी लुगाईयों की व्यक्तिगत शारीरिक और मानसिक समस्याओं पर श्रम पूर्वक विचार करने के पश्चात थक हार कर सो जाते हैं । लेकिन आज सवेरे से ही शिवपालगंज में बड़ी चहल-पहल थी । और हो भी क्यों न, आज 20-20 वल्र्डकप में भारत का सामना इंग्लैण्ड से था । अगर भारत आज का ये मैच हार जाता है तो उसके सेमी फाइनल में पहुंचने के सारे दरवाजे बंद हो जायेंगे । रूप्पन बाबू आज सुबह से ही टेंशन में घूम रहे थे । जब वो टेंशन में होते हैं तब ज़र्दे वाला पान छोड़ कर पनामा सिगरेट पर टूट पड़ते हैं । शाम तक उन्होंने डेढ़ डिब्बी पनामा खलास कर दी थी । इतनी टेंशन तो उन्हें बेला की शादी से भी नहीं हुई थी जितनी आज हो रही थी ।

बैद्य जी महाराज अपनी बैठक में नौ बजे ही खा-पी करके और हथेली भर हिंगवाष्टक चूर्ण गर्म पानी से फांक कर साल भर पुराने सिम्फनी कूलर के ठीक सामने बिझे तख्त पर मसनदों के सहारे पसर गये थे । शाम की ठंडई का असर तो था ही । दरबार लग गया था । दरबारी थे प्रिंसपल साहब, रूप्पन, रंगनाथ, सनीचर, जोगनाथ और छंगामल विद्यालय इंटरमीडियेट कालेज के तीन विद्यार्थी जो कि रूप्पन बाबू के क्लासफेलो और जिगरी तो थे ही साथ ही पिछली चार साल से बारहवीं में पी.एच.डी भी कर रहे थे । बद्री और छोटे पहलवान आजकल अखाड़े में नये रंगरूटों को देर रात तक कुश्ती का प्रशिक्षण देने का काम निबटा कर कोआपरेटिव यूनियन के अहाते में लगे हैण्डपम्प पर नहा धोकर ही वापस लौटते थे । उनके आने का समय अब हो चुका था, वो दोनो लंगोटधारी अब किसी भी समय प्रकट हो सकते थे ।

अचानक रूप्पन बाबू बड़े जोश मे बोले ”अरे ! इन अंग्रेजों को पिछला वल्र्ड कप तो याद ही होगा । देखियेगा प्रिंसपल साहब, आज फिर युवराज ब्रैड हाज पर छः छक्के जड़ कर फिरंगियों को उनकी औकात बता देगा ।”

प्रिंसपल साहब को शनीचर ठंडई गिलास में न देकर लोटे में पिलाता है । दो लोटा ठंडई पीकर प्रिंसपल साहब वैसे ही काबू में नहीं थे । गुस्से, जोश और भंग के नशे में वो अधिकतर अपनी मादरे ज़बान अवधी का ही प्रयोग करते थे । बोले ”काहे नहीं रूप्पन बाबू, इन अंगरेज ससुरन के बुद्धि तो गांधी महात्मा गुल्ली-डंडा खिलाये खिलाये के भ्रष्ट कइ दिये रहिन । अब इ सारे का खेलहीं किरकेट-उरकेट । बांड़ी बिस्तुइया बाघन से नजारा मारे ।”

वैद्यजी तख्त पर आंखे मूंदे लेटे थे, प्रिंसपल साहब की अवधी सुने तो मुस्कुरा कर पूछे ”क्यूं प्रिंसपल साहब, थोड़ा बहुत भारत देश का इतिहास हमने भी पढ़ा है लेकिन गांधी जी कभी गुल्ली-डंडा भी खेले थे, ये तो न पढा न किसी से सुना ।”

प्रिंसपल साहब के दिमाग पर भंग का नशा कुचीपुड़ी नृत्य कर रहा था । वो पहले तो सकपकाये फिर हंसते हुए कहे ”अरे महाराज गांधी महात्मा का गुल्ली-डंडा आपको किसी इतिहास की किताब में पढने को नहीं मिलेगा, लेकिन खेले तो वे थे ही अहिंसा के डंडे से अंगरेजों के साथ गुल्ली-डंडा ।” उसके बाद उन्होंने जो हंसना शुरू किया तो हंसते ही चले गये । भंग अपना काम कर चुकी थी । उनको हंसता देख कर सभी ने हास्यासन किया और ये माना कि खुल कर हंसने से शरीर के 265 रोगों का काम तमाम हो जाता है । जोगनाथ को ठंडई में पहले भी कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वो अपना इंतजाम पहले से ही करके आया था । उसने चुपके से अपने पैजामे की जेब से एक पन्नी निकाली और दीवाल की तरफ मुंह करके चूसने लगा ।

तभी बैठक के अंदर मलमल का कुर्ता और लंगोट पहने दो पहलवानों ने प्रवेश किया । लंगोट की पट्टी कमर में न खोस कर हाथी के सूंड़ की तरह लटक रही थी जो कि गंजहों के लंगोट पहनने की पुरातन स्टाईल थी । बद्री और छोटे पहलवान बैठक में पधार चुके थे । आते ही छोटे ने जोगनाथ के पिछवाड़े पर कस कर लात जमाते हुए कहा ”साले ! अगर पन्नी ही पीनी थी तो अपने दड़बे में जाकर पीता । यहां बैद महाराज की बैठक क्यों गंधवा रहा है ।“

जोगनाथ इसके पहले कि सर्फरी बोली पर उतरता शनीचर ने उसे ठेल ठाल कर बैठक के बाहर दलान में पहुंचा दिया । जोगनाथ पर कच्ची का नशा चढ़ चुका था वह वहीं एक कोने में पड़ कर खर्राटे भरने लगा । इस बीच रूप्पन बाबू ने चिल्लाकर बैठक मे बैठे सभी लोगों को चैका दिया । मैदान पर भारत और इंग्लैण्ड के कप्तान टास के लिए तैयार खड़े थे और मुस्कुराते हुए एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए एक दूसरे के हाथों की मजबूती परख रहे थे । अंपायर हाथ में सिक्का लिए खड़ा था और मन ही मन सोच रहा था कि टास कोई भी जीते लेकिन आज ये सिक्का मैं आई.सी.सी. को वापस नहीं करूंगा ।

टास भारत के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने जीता और पहले गेंदबाजी चुनी ।

शनीचर का मुंह उतर गया, निराश होकर बोला ”धत तेरे की, धोनिया पट्ठे को ये नहीं मालूम कि दूसरी इनिंग रात सवा बारह बजे के बाद शुरू होगी भारत में । अब चिरकुट अंगरेज पदायेगें और ये ससुरे पदेंगे ।“

इसके बाद सब चुप चाप टी.वी. में आंख गड़ाये मैच देखने लगे ।

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सुबह के नौ बज रहे थे । शिवपालगंज के गांव प्रधान शनीचर चड्ढी-बनियान में अपनी गुमटी नुमा परचून की दुकान पर बैठे थे । सामने टुटही बेंच पर लंगड़ और जोगनाथ बैठे थे । लंगड को तहसील से नकल अभी तक नहीं मिली थी । आज फिर वह नकल मिलने का आस में तहसील पर धावा बोलने जा रहा था । शनीचर का शिवपालगंजी बिग बाज़ार खुला देखकर वह बेंच पर सुस्ताने बैठ गया और शनीचर द्वारा दिया गया गुड़ का टुकड़ा खाने लगा । कबीरपंथियों वाला चेहरा बनाकर उसने पूछा ”बाबू कल रात मैच में कौन जीता ?“

शनीचर ने फुफकार कर सिर ऊपर उठाया और झल्लाकर बोला ”जीतेंगे क्या, कद्दू ! धोनी बहुत बड़े धुरंधर धोबी बने फिरते हैं, 20-20 में टेस्ट मैच खेल रहे थे । एक-एक, दो-दो रन लेकर अंगरेजों को हराने चले थे । चउआ मारे तो इनको एक जमाना हो गया । 3 रन से हरवा दिये । हम लोगों की रात खराब की सो अलग ।“

तब तक छोटे पहलवान नंगे बदन कमर पर लुंगी लपेटे उधर से गुजरे । क्रिकेट चर्चा कान में पड़ी तो रूक गये । ”हारेंगे नही तो क्या जीतेंगे । 40 दिन आई.पी.एल. में खूब पसीना बहाये, झमाझम नोट कूटे और जब देश के लिए खेलने का समय आया तब शिकार के वक्त कुतिया हगासी । अबे जब कंधे उखड़े हुए थे, टांग टूटी हुयी थी तब काहे चले गये इंग्लैण्ड भारत की लुटिया डुबाने ।“ छोटे पहलवान के नथुने फड़कने लगे बात खत्म करते करते ।

”पहलवान चोटों के बारे में बी.सी.सी.आई. को तो पहले ही पता रहा होगा । कुसूर तो बी.सी.सी.आई. का है। टुटहे खिलाड़ियों से वल्र्डकप नहीं जीते जाते । अब जब पानी का हगा उतरा आया है तब सब मुंह पीट कर लाल कर रहे हैं ।“ जोगनाथ का नशा उतर चुका था सो उसने भी राय देकर बहती गंगा में हाथ धो लिया ।

तभी उधर से प्रिंसिपल साहब बगल में कालेज की फाइलें दबाये हुए बैद्य जी के घर की तरफ लपके जा रहे थे । शनीचर सहित सभी गंजहों ने कोरस में प्रिंसपल साहब को नमस्कारी की । प्रिंसपल साहब ने बिना रूके हाथ उठा कर सभी को अभयदान दिया, मुंह में भरी पान की पीक बांयी तरफ थूकते हुए कहा कि अभी जल्दी में हैं, कालेज के लिए देरी हो रही है और दुलकी चाल में निकल गये ।

वैद्य जी बैठक में तख्त पर मसनदों के सहारे टिके बैठे थे । घुटनों में गठिया का प्रकोप बढ जाने के कारण अब वे पालथी मार कर नहीं बैठ पाते थे । देर रात तक मैच देखने के कारण रंगनाथ, रूप्पन, बद्री पहलवान सवेरे आठ बाजे सो कर उठे । अब सब बैठक में बैठे ”भारत क्यों हारा“ इस राष्ट्रीय शर्म के विषय पर विचार विमर्श कर रहे थे । प्रिंसपालसाहब के वहां पहुंचते ही कोरम पूरा हो गया और फिर विशेषज्ञों ने अपनी-अपनी टिप्पणियां प्रसारित करनी शुरू कर दीं ।

रूप्पन बाबू के चेहरा इस वक्त मरियल घोड़े के माहिक लटका हुआ था लेकिन आंखों मे क्रोधाग्नि धधक रही थी । मानो कुछ देर पहले ही उन्हें बेला और खन्ना मास्टर के भागने की खबर मिली हो । चीखते हुए बोले ”क्या जरूरत थी इशांत शर्मा को इतने जरूरी मैच में खिलाने की । आई. पी. एल. में तो लम्बू कुछ उखाड़ नहीं पाये सिवाय शाहरूख खान की नाईट राइडर्स का तंबू उखाड़ने के, इधर वल्र्ड कप में धोनी को पटरा कर दिये । रही सही कसर रोहित शर्मा से ओपनिंग करवा कर पूरी दी धोनी ने ।“ कहते-कहते उनके मंह से फिचकुर बहने लगा ।

रंगनाथ अब तक चुप बैठे हुए थे, जब हार का विश्लेषण हो ही रहा था तब उनका चुप रह जाना क्रिकेट के साथ गद्दारी होता । ”मैं तो कहता हूं कि रवीन्द्र जडेजा को युवराज के पहले भेजना ही नहीं चाहिए था । लौंडे ने 75 के स्ट्राइक रेट से रन बनाये और रिक्वायर्ड रन रेट को सूली पर चढा दिया । क्या कहें धोनी को, विनाश काले विपरीत बुद्धि ।“ रंगनाथ धोनी की बुद्धि का रोना रोकर चुप हो गये ।

रंगनाथ के बाद अब बद्री पहलवान की बारी थी । पहलवान जोश में खड़े हुए तो उनकी लुंगी कमर से फिसल कर शेयर मार्केट की तरह जमीन पर पहुंच गई । उन्होंने पहले लुंगी का स्तर ऊपर उठा कर उसे कमर पर कस कर लपेटा उसके बाद अपनी बात शुरू की । ”आखिर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में सब अंग्रेज एक हो गये कि नहीं । 2007 के वल्र्ड कप में चैपल ने इनको चूतिया बनाया था । अब की कर्सटन ने बना दिया । जहां बड़े टूर्नामेण्ट का सवाल होगा वहां विदेशी कोच अपने देश की फिक्र करेगा न कि हमारी । दो साल से कोच हैं लेकिन अभी तक शार्टपिच गेंद खेलना नहीं सिखा पाये। इनसे अच्छी कोचिंग तो हम्मे दे देते धोनी की टीम को । अखाड़े में खड़े हो कर 100 बार मुद्गर घुमाने की प्रेक्टिस करवा देते फिर देखते कि कौन ससुरा शार्टपिच गेंद फैंकता है । बैट्समैन ऐसा पीटते कि न रहती गेंद और न रहता कौनेव बालर, सब ससुर हवा हवाई हो जाते ।“ उसके बाद बद्री पहलवान ने जोश और गुस्से में वहीं देखते-देखते 50 दंड बैठक लगा डाली । गुस्सा आने पर दंड बैठक करने का फार्मूला उन्होंने मुन्नाभाई एम.बी.बी.एस. फिल्म के डा0 अस्थाना से प्रेरणा लेकर डिस्कवर किया था । डा0 अस्थाना गुस्सा आने पर lafter थैरेपी का प्रयोग करते थे, बद्री पहलवान व्यायाम थैरेपी पर भरोसा करते थे ।

प्रिंसिपल साहब ने एक फाइल बैद्य महाराज के सामने रखते हुए कहा ”महाराज दिल के अरमां आंसुओं में बह गये। ऐसी उम्मीद नहीं थी कि भारत सेमी फाईनल में भी न पहुंचेगा । बड़ा बुरा हुआ । रात भर टी.वी. के सामने आंखे फोड़ी । सवेरे उठने में जरा सी देर क्या हुयी कलमुंही भैंस ने सारा का सारा दूध पड़वे को पिला दिया । बाल्टी लेकर जब नीचे बैठे तो पता चला झूरा पड़ा था ।“

सभी दरबारीगण वैद्य महाराज का मुंह ताक रहे थे और वे निर्विकार चेहरा लिए फाइल में मुंह खोंसे बैठे थे । फाईल में आंखे गड़ाये-गड़ाये ही उन्होंने कहा ”हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश, सब विधि हाथ ।“ इतना कह कर उन्होंने कान पर जनेऊ लपेटा और घर के अंदर चले गये ।



4 टिप्पणियाँ:

arun prakash ने कहा…

satik ganjaha chitran

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भाई,आनंद आ जाता है आपका लिखा पढ़ कर कई बार लोग कहते हैं कि भड़ासी बड़ा लम्बा-लम्बा पेलते हैं लेकिन क्या करें बिना लम्बा पेले भड़ास ही नहीं निकल पाती। भड़ासी बाकी ठठेरे बौद्धिकों की तरह तो हैं नहीं कि दो-चार लाइन ठेल कर झरिहा-चुआ कर चल दें। पेले रहो महाराज...
जय जय भड़ास

RAJ SINH ने कहा…

बहुत ही सुन्दर व्यंग ! राग दरबारी के सन्दर्भ ही नहीं वही पढने जैसा आनंद .

आनंद यह भी की कीचड में भी कमल खिल सकते
हैं .कुछ दुर्गंधों में भी व्यंग सौन्दर्य की यह महक यहाँ लाती रहेगी .

अजय मोहन ने कहा…

राजू भइया आए मखमल में लिपटा जूता लाए... भड़ास में हमें श्रेय है कि हमने कीचड़ करा है इस बात के लिये धन्यवाद महाराज वरना बौद्धिक रेत में कहां कमल खिल सकते हैं सिवाय कैक्टस और नागफ़नी के.... हम भी व्यंग की पेलाई करते हैं बस आप कभी कभी आ जाया करिए जब हम हज्जाम किसी के ढकोसलों की उल्टे उस्तरे से छिलाई करते हैं तब भी आपको व्यंग का सौन्दर्य मिलेगा। भड़ास का कीचड और दुर्गंध कायम रहेगा ताकि आपको आनंद और सुगंध के साथ सौन्दर्य मिलता रहे लेकिन उसके लिये हमें कीचड़ करने का कच्चा माल आप जैसे लोगों से मिलता रहेगा उसकी जुगाड़ आप कर ही देंगे इस बात का पूरा भरोसा है
जय जय भड़ास

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