सांप को दूध पिलाने वाले

शुक्रवार, 26 जून 2009



Angry_cow =>मेरे बच्चों, अब मैं तुमको और दूध नहीं पिला सकता । केन्द्र सरकार की बुरी नज़र अब मेरे तबेले पर भी पड़ने लगी है ।


जैसे ही केन्द्र सरकार ने भाकपा (माओवादी) पार्टी को आतंकवादी संगठनों की सूची में डाला वैसे ही वामदलों को मिर्गी के दौरे आने लगे । नक्सली आंदोलन आज से 40 साल पहले वामदलों की बदौलत परवान चढा था । आज भारत के आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों में नक्सलिस्ट कहर बरपा रहे हैं । पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई. एस. आई. भी इनको अपना सगा सम्बन्धी मानकर मदद करती रहती है । जितना नुकसान भारत का पाकिस्तान अपनी आतंकी गतिविधियों से नहीं कर रहा है उससे ज्यादा जान-माल की क्षति भारत को नक्सली पहुंचा रहे हैं । इन सांपों को पाला और दूध पिलाया वामदल ने पश्चिम बंगाल में । नक्सली आंदोलन की वजह गरीबी, असंतुलित विकास और मदमस्त, नवाबी, कठोर, अड़ियल, बेपरवाह प्रशासन था, लेकिन पिछले 40 सालों से पश्चिम बंगाल (जहां कि इस आंदोलन ने जन्म लिया) में तो वामदलों का ही शासन है । यानी की नक्सली आंदोलन की मुख्य वजह तो यही महानुभाव थे और वो वजहें आज 40 साल बाद भी अगर जिंदा हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि उस रोग का इन्होंने कोई इलाज नहीं किया बल्कि फुंसी को कैंसर बन कर पड़ोसी राज्यों में भी फैलने दिया ।

वामदल और नक्सलियों का खतरनाक गठजोड़ बहुत पुराना है । पश्चिम बंगाल में पिछले 40 साल से जिन कमुनिस्टों का राज चल रहा है उसकी दो ही बैसाखियां है । नं0 1 नक्सली, नं0 दो बंग्लादेशी घुसपैठिये । इन दोनों की मदद से ये 40 साल से राज्य में शासन करते चले आ रहे हैं । नक्सली गुंडों की बदौलत ये बूथ कैप्चर करवाते है और फर्जी बंग्लादेशी नागरिकों को वोटर बना कर वोट पड़वाते हैं । अपनी सरकार बनी रहे यही मुख्य मुद्दा है बाकी भारत देश और लोकतंत्र तो इनकी निगाह में दो कौड़ी की भी हैसियत नहीं रखते ।

भारत के महान वामदल । दस हज़ार साल से निरंतर चली आने वाली विश्व की एकमात्र सभ्यता, संस्कृति जिसे दुनिया एक प्रकाशपुंज के रूप देखती है, उस महान देश के महान इतिहास, संस्कृति से इनका कोई लेना देना नही है, सब कूड़ा कर्कट है इनकी समझ से । विचारक भी इनको इस देश में नहीं मिले, मजबूरीवश आयात करने पड़े । कार्ल माक्र्स, लेनिन, माओ । राष्ट्र और राष्ट्रवादिता दोनों ही इनके लिए ढकोसला है । राम और कृष्ण इनके लिए किताबी कहानी से ज्यादा और कुछ भी नहीं । धर्म अफीम की पुड़िया है । अगर इतने ही बड़े सेकुलरवादी हो तो बंगाल में दुर्गा पूजा बंद करवा दो और बेलूर मठ को आग में झोंक दो । सुभाषचंद्र बोस को कुत्ता कहने वाले और देश के बंटवारे के लिए जिन्ना का समर्थन करने वाले ये मीर जाफ़र और जगत सेठ की जायज़ संताने हैं । एक पाकिस्तान बना चुके हैं, दूसरे के लिए नक्सली आंदोलन को पाल पोस रहे हैं । चीन से इनको आर्थिक और वैचारिक दोनो ही खुराकें मिलती हैं ।

जैसे ही केन्द्र ने माओवादी (भाकपा) को आतंकवादी संगठन घोषित किया वामदलों ने एक नई बहस को परवान चढाना शुरू कर दिया कि आतंकवाद की परिभाषा क्या होती है ? ये वो लोग हैं जो कि अलगाववादी संगठनों को प्रश्रय और संरक्षण देते हैं और फर्जी राजनीति करते हैं । इनमें और कश्मीरी अलगाववादियों में बाल बराबर भी अंतर नहीं । अब बेचारे बडे़ धर्म संकट में पड़े हुय हैं । जिन नक्सली गुंडों कीं की मदद से चुनाव जीतते रहे अब उन्हीं पर प्रतिबंध लगाने के लिए केन्द्र सरकार दबाव डाल रही है । अब क्या करें ? माओवादी कोई चीनी का खिलौना तो नहीं कि जब तक चाहाउससे खेला और जब चाहा मुंह में डाल कर गुडुप कर लिया । इनकी दशा देखकर मित्रों अवधी की एक कहावत याद आती है जो कि इनपर एकदम सटीक बैठती है ”पूतौ मीठ, भतारौ मीठ, के कर किरिया खाऊं ।"

2 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भाई कृष्ण मोहन! "पूतौ मीठ, भतारौ मीठ, के कर किरिया खाऊं" यहां ये कहावत सिर्फ़ दिखावे के लिये है ये कुलटा तो पूत की भी कसम खाती है और भतार की भी... बस उस पड़ोसी की कसम नहीं खा सकती जिससे ठुकवा रही है। पेलो जम कर ऐसे ही रंगे सियारों को...
जय जय भड़ास

ज़ैनब शेख ने कहा…

आपके चित्र शब्दों से ज्यादा कह जाते हैं।
जय जय भड़ास

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