श्रीमान महावीर सलमानी के द्वारा ------अनूप मंडल , महावीर जी कही नही गए है , --------

शुक्रवार, 5 जून 2009

आपका अपना
महावीर बी सेमलानी


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विनोबा भावेजी का सन्देश
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महोदय,
जैन-धर्म-सार ग्रन्थ के आरम्भ में सन्त विनोबाजी ने अपने निवेदन में कहा है -"कि सर्व-धर्म-समन्वय और दिलों को जोड़ने की दृष्टि से उन्होंने धम्मपद नवसंहिता तैयार की, ऋग्वेद-सार, मनु-शासनम्, भागवत-धर्म-सार, अष्टादशी, कुरान-सार, ख्रिस्त-धर्म-सार आदि धर्म-ग्रन्थों का सार निकाला है, उसी तरह से जैन-धर्म का सार भी निकले, ऐसी उनकी तीव्र भावना बहुत दिनों से थी।"
उसके अनुसार उनके दिशा-दर्शन में जैन-समाज के प्रमुख साधक-तपस्वी श्री जिनेन्द्र वर्णीजी ने अखण्ड परिश्रम करके जैन-धर्म-सार ग्रन्थ का संकलन तैयार किया है।

विज्ञान ने दुनिया छोटी बना दी, और वह सब मानवों को नजदीक लाना चाहता है। ऐसी हालत में मानव-समाज संप्रदायों में बँटा रहे, यह कैसे चलेगा? हमें एक-दूसरे को ठीक से समझना होगा। एक-दूसरे का गुणग्रहण करना होगा।
अतः आज सर्वधर्म-समन्वय की आवश्यकता उत्पन्न हुई है। इसलिए गौण-मुख्य-विवेकपूर्वक धर्मग्रंथों से कुछ वचनों का चयन करना होगा। सार-सार ले लिया जाय, असार छोड़ दिया जाय, जैसे कि हम संतरे के छिलके को छोड़ देते हैं, उसके अन्दर का सार ग्रहण कर लेते हैं।
इसी उद्देश्य से मैंने `गीता' के बारे में अपने विचार `गीता-प्रवचन' के जरिये लोगों के सामने पेश किये थे और `धम्मपद' की पुनर्रचना की थी। बाद में `कुरान-सार', `ख्रिस्त-धर्म-सार', `ऋग्वेद-सार', `भागवत-धर्म-सार', `नामघोषा-सार' आदि समाज के सामने प्रस्तुत किये।
मैंने बहुत दफा कहा था कि इसी तरह जैन-धर्म का सार बतानेवाली किताब भी निकलनी चाहिए। उस विचार के अनुसार यह किताब श्री जिनेंद्र वर्णीजी ने तैयार की है। बहुत मेहनत इसमें की गयी है। यह आवृत्ति तो सिर्फ विद्वद्जन के लिए ही निकाली जा रही है।
जैसे हिन्दुओं की `गीता' है, बौद्धों का `धम्मपद' है, वैसे ही जैन-धर्म का सार सबको मिल जायगा।
`बुद्ध और महावीर भारतीय आकाश के दो उज्ज्वल रत्न हैं। .......बुद्ध और महावीर दोनों कर्मवीर थे। लेखन-वृत्ति उनमें नहीं थी। वे निर्ग्रन्थ थे। कोई शास्त्र-रचना उन्होंने नहीं की। पर वे जो बोलते जाते थे, उसीमें से शास्त्र बनते जाते थे, उनका बोलना सहज होता था। उनकी बिखरी हुई वाणी का संग्रह भी पीछे से लोगों को एकत्र करना पड़ा।"
बरसों तक भूदान के निमित्त भारतभर में मेरी पदयात्रा चली, जिसका एकमात्र उद्देश्य दिलों को जोड़ने का रहा है। बल्कि, मेरी जिन्दगी के कुल काम दिलों को जोड़ने के एकमात्र उद्देश्य से प्रेरित हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन में भी वही प्रेरणा है। मैं आशा करता हूँ, परमात्मा की कृपा से वह सफल होगी।
विनोबा भावे
ब्रह्म-विद्या मन्दिर, पवनार
१-१२-'७३


आप नए बिल्कुल सही कहा है महावीर जी की दिलो को जोड़ने की बाते हो /



हमारे नए नए मित्र अनूप मंडल जिनके लिए ये काफी अफसोशजनक रहा ,
की मैंने उन की बातो को काटा ,
मित्रो शायद इस विचार विमर्श के जरिये मै आप की नजर मे raksash परजाती से निकल कर मानव बन पाउ ........:) आपका ( rakhsash bhai )
अमित जैन

5 टिप्पणियाँ:

अनोप मंडल ने कहा…

अमित भाईसाहब! ये तो वो चेहरा है जिसे जैनों ने भोले-भाले लोगों के सामने रखा है। हम सब वो चेहरा दिखाएंगे जो छिपा रखा है यकीन मानिये कि आपके द्वारा विमर्श में उतरने से हमें दुःख नहीं बल्कि अत्यंत खुशी हो रही है। जगतहितकारणी नामक किताब मारवाड़ी भाषा में लिखी आम जन के लिये है जैसे कि कबीर की सधुक्कड़ी भाषा हो। हम सब आपको व भड़ास को नमन करते हैं कि इतने वर्षों से दबी हमारी आवाज को इस ग्लोबल मंच पर सबके सामने ला दिया है। एक बार फिर दिल से धन्यवाद
जय नकलंक
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

मित्रप्रव,

सभी धर्मों की अछइयां और बुराइयां है, वस्तुतः ये वो चीजें हैं जो धार्मिक ठेकेदारों ने बनाया बताया, मगर सबका सार एक ही है सर्वधर्म समभाव, मानव माधव है.

ये एक शुरुआत है मगर अछि बात हो अगर अपने अपने धर्मों की नकारात्मक छवि को समाज के सामने जगजाहिर करें जो समाजहित में हो.

भड़ास माता मुनव्वर आप हमारी आदि माता हैं और शुरुआत उन्होंने ही करा और बाकायदा इस्लाम की गलतियों को नि:संकोच सामने रखा क्या हम सब सामजिक चेतना जगाने के लिए सवा धर्म से ऊपर मानव धर्म के लिए इसको आगे नहीं बाधा सकते ?

सभी का स्वागत है.

जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

रजनीश भाई,ऐसा कुछ कहना या सुनना भी पाप माना जाए तो आप क्या विमर्श की गुंजाइश भी छोड़ते हैं मानव के लिये? मैंने एक कथा सुनी है कि सल्लाहुअलैहवसल्लम मोहम्मद साहब की करुणा पशु-पक्षियों के प्रति इतनी गहरी थी कि एक बार साहब बैठे थे तो उनके लम्बे कुर्ते पर एक बिल्ली आकर सो गयी, अब नबी को उठना था लेकिन कुर्ते का एक हिस्सा बिल्ली के नीचे दबा था और अगर वे कुर्ता खींच लेते तो बिल्ली की नींद में खलल होता। बिल्ली की नींद न खराब हो इसके लिये नबी ने अपने कुरते का उतना हिस्सा ही आहिस्ते से काट दिया ताकि बिल्ली आराम करती रहे और वे भी उठ सकें। अब आप खुद विचार करिये कि एक इंसान जो ईश्वर का प्यारा है आखिरी नबी है वह जीवों के प्रति करुणा से इतना भरा हुआ है भला बकरे,ऊंट आदि जानवरों को मार कर खा जाने के बारे में कैसे कह सकता है? क्या उनकी करुणा सिर्फ़ बिल्ली के प्रति है या फिर बाकी प्राणी उनकी करुणा से वंचित हैं?
बस इतना ही कह सकता हूं कि खूंटियों पर टंगे लोग धर्म के बारे में विमर्श करने का साहस नहीं कर सकते। मेरा कोई परंपरागत धर्म नहीं है मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ मनुष्य हूं।
अनोप मण्डल के लोगों ने जो बात निकाली है उसका निराकरण भड़ास पर ही हो सकता है न्यायालय में नहीं मुझे ऐसा लगता है क्योंकि यह मामला सामाजिक है कानूनी तो हरगिज नहीं....
आशा है अनोप मण्डल, जैन भाई बंधु, मुनव्वर आपा जैसे खुली और सरल सोच के लोग इस मुद्दे को सुलझा लेंगे।
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

एकदम सही कहा आपने,
विमर्श और खुले दिल से लोगों के सम्मान देकर विमर्श से ही इसका निराकरण निकाल सकते हैं,
आपका उदाहरण इतना सटीक है कि बहस करने से पहले लोगों के एक बार सोचनीय जरुर बना देगा.
जय जय भड़ास

dr amit jain ने कहा…

@ anoop mandal

दोस्तो , मै आप कि बातो को अवशय ध्यान्पूर्वक समझने कि कोशिश करूगा / ओर जहा तक सम्भव होगा आप कि भ्राति को दूर करने कि कोशिश करूगा

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