अहिंसा का मतलब - सारे धर्मो का नजरिया

गुरुवार, 25 जून 2009

जैन धर्म
1. अहिंसा परम धर्म है | किसी भी जीव की हिंसा मत करो, हिंसा करने वाले का सब धर्म-कर्म व्यर्थ हो जाता है |
2. संसार में सबको अपनी जान प्यारी है, कोई मरना नहीं चाहता, अतः किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो |


सनातन (हिन्दु) धर्म
1. जातु मांस न भोक्तव्यं, प्राणै कण्ठगतैरपि - (काशीखण्ड, 353-55)
प्राण चाहे कण्ठ तक ही क्यों न आ जाए, मांसाहार नहीं करना चाहिए |
2. जो व्यक्ति सौ वर्षो तक लगातार अश्वमेघ यज्ञ करता है और जो व्यक्ति मांस नहीं खाता है, उनमें से मांसाहार का त्यागी ही विशेष पुण्यवान माना जाता है | (महाभारत अनु. पर्व 115)
3. जो व्यक्ति अपने सुख के लिए निरपराध प्राणियों की हत्या करता है, वह इस लोक और परलोक में कहीं भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता | (मनुस्मृति, 5-45)
4. जो लोग अण्डे-मांस खाते है, मैं उन दुष्टों का नाश करता हूँ | (अर्थर्ववेद, 8-6-93)
5. जो तरह-तरह के अमृत पूर्ण शाकाहारी उत्तम पदार्थों को छोड़ घृणित मांस आदि पदार्थों को खाते हैं | वे सचमुच राक्षस की तरह दिखाई देते हैं | (महाभारत, अनु. पर्व, अ.117)

ईसाई धर्म
1. पशु वध करने के लिए नहीं हैं |
2. मैं दया चाहूँगा, बलिदान नहीं |
3. तुम रक्त बहाना छोड़ दो, अपने मुंह में मांस मत डालो |
4. ईश्वर बड़ा दयालु है, उसकी आज्ञा है कि मनुष्य पृथ्वी से उत्पन्न शाक, फल और अन्न से अपना जीवन निर्वाह करे |
5. हे मांसाहारी! जब तू अपने हाथ फैलायेगा, तब मैं अपनी आँखे बन्द कर लूंगा | तेरी प्रार्थानाएँ नहीं सुनूंगा; क्योंकि तेरे हाथ खून से सने हुए हैं | - ईसा मसीह

इस्लाम धर्म
1. हजरत रसूल अल्लाह सलल्लाह अलैह व वसल्लम ताकीदन फरमाते हैं कि जानदार को जीने व दुनिया में रहने का बराबर व पूरा हक है | ऐसा कोई आदमी नहीं है जो एक गौरैयां से छोटे कीड़े की भी जान लेता है | खुदा उससे इसका हिसाब लेगा और वह इन्सान जो एक नन्हीं सी चिड़िया पर भी रहम करता है, उसकी जान बचाता है, अल्लाह कयामत के दिन उस पर रहम करेगा |
2. कोई भी चलने वाली चीज या जानदार, अल्लाह से बनायी है और सबको खाने को दिया है और यह जमीन उसने जानदारों (प्राणियों) के लिए बनायी है |
3. आदमी अपनी गिजा (खाने) की तरफ देखे कि कैसे हमने बारिश को जमीन पर भेजा, जिससे तरह-तरह के अनाज, अंगुर, फल-फूल, हरियाली व घास उगती है | ये सब खाने किसके लिए दिये गये है - तुम्हारे और तुम्हारे जानवरों के लिए |
4. क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह उन सबको प्यार करता है, जो जन्नत में है, जमीन पर है- चांद, सूरज, सितारे,पहाड़, पेड़, जानवर और बहुत से आदमियों को |
5. खुदा से डरो | कुदरत को बर्बाद मत करो | अल्लाह हर गुनाह को देखता है, इसलिए दोखज और सजा बनी है |
- जानवरों के लिए इस्लामी नजरिया, मौलाना, अहमद मसारी |

बौद्ध धर्म
1. जीवों को बचाने में धर्म और मारने में अर्धम है | मांस म्लेच्छों का भोजन है | -भगवत बुद्ध
2. मांस खाने से कोढ़ जैसे अनेक भयंकर रोग फूट पड़ते है, शरीर में खतरनाक कीड़े पड़ जाते हैं, अतः मांसाहार का त्याग करें | -लंकावतार सूत्र
3. सारे प्राणी मरने से डरते है, सब मृत्यु से भयभीत है | उन्हें अपने समान समझो अतः न उन्हें कष्ट दो और न उनके प्राण लो | - भगवान बुद्ध

पारसी धर्म
जो दुष्ट मनुष्य पशुओं, भेड़ो अन्य चौपायों की अनीतिपूर्ण हत्या करता है, उसके अंगोपांग तोड़कर छिन्न-भिन्न किये जाएँगे | -जैन्द अवेस्ता

सिक्ख धर्म
1. जो व्यक्ति मांस, मछली और शराब का सेवन करते हैं, उसके धर्म, कर्म, जप, तप, सब नष्ट हो जाते हैं |
2. क्यूं किसी को मारना जब उसे जिन्दा नहीं कर सकते?
3. जे रत लागे कापड़े, जामा होई पलीत | ते रत पीवे मानुषा, तिन क्यूं निर्मल चीत || (जिस खून के लगने से वस्त्र-परिधान अपवित्र हो जाते हैं, उसी रक्त को मनुष्य पीता है | फिर उसका मन निर्मल कैसे हो/ रह सकता है? - गुरुनानक साहब

यहुदी धर्म
पृथ्वी के हर पशु को और उड़ने वाले पक्षी को तथा उस हर प्राणी को जो धरती पर रेंगता है, जिसमें जीवन है, उन सबके लिए मैंने मांस की जगह हरी पत्ती दी है | जब तुम प्रार्थना करते हो, तो मैं उसे नहीं सुनता यदि तुम्हारे हाथ खून से रंगे हैं |


अब अनूप मंडल इन सारे धर्म गरन्थो को भी झुठला सकता है क्या , या इन सभी प्राचीन और पौराणिक पुस्तकों को भी जैन वंश ने बदल कर लिखवा दिया है ?सिर्फ़ बोलो मत अनूप उस को सिद्ध भी करो , पर किसी कातिल की किताब से नही

7 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

एक बात तो इन सारे प्रमाणों से अमित भाई ने एकदम साफ़ कर दी है कि मांसाहार करने वाला या हिंसा करने वाला कोई भी व्यक्ति अपने आप को मुसलमान,हिंदू,पारसी,बौद्ध,जैन,यहूदी,सिख और ईसाई न कहे और अगर कहता है तो वो अपने ही धर्मग्रन्थों की बात को झुठला रहा है। इस संदर्भ में हिंदुओं द्वारा काली और भैरव के मंदिरों में दी जाने वाली पशुबलि और बकरीद पर करी जाने वाली "कुर्बानी" करने वाले हिंदू और मुसलमान नहीं हैं बल्कि महापापी हैं ये कह पाने का स्पष्ट साहस किसी में नहीं था जो कि अमित भाई ने दिखा दिया। मैं अमित भाई की इस साहसी स्पष्टवादिता को सलाम करता हूं
जय जय भड़ास

ज़ैनब शेख ने कहा…

मुझे भी इस विमर्श में उतरना पड़ रहा है क्योंकि जो आरोप लगाया जा रहा है कि अनूप मंडल के लोग कहते हैं कि जैनों ने तमाम धर्मों के ग्रन्थों में हेराफेरी करी है अब मेरे दिमाग में विरोधाभास जगह ले रहा है। एक तरफ़ तो आपसल्लेसल्लम का फ़रमाना है कि हिंसा मत करो, पशुओं पर दया करो वगैरह और दूसरी तरफ़ लगभग हर फ़िरके का मुसलमान मांस खाता है तो इसमें से सही क्या है? क्या इस्लाम के प्रवर्तक दो तरह की बातें कर रहे हैं या खाने पीने के मामले में सिर्फ़ जुबान का स्वाद देखा जाता है हिंसा-अहिंसा पर विचार नहीं करा जाता है? मैं भी बच्चों को पढ़ाया करती हूं और इससे पहले भी डा.रूपेश अपनी एक टिप्पणी में आपसल्लेसल्लम की करुणा का स्पष्ट बयान दे चुके हैं कि उन्होंने बिल्ली की नींद में खलल न हो इसके लिये अपने कुरते को काट दिया था वो भला दूसरे जानवर को मार कर खा जाने की बात कैसे कर सकते हैं? कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है? ईसाअलेस्सलाम(ईसा मसीह जिन्हें हम जीसस क्राइस्ट भी कहते हैं)खुद मांसाहार करते थे ऐसा किताबों में है क्रिश्चियन भी मांसाहार करते हैं,हिंदुओं के तमाम तबके मांस खाते हैं लेकिन उनकी किताबों में ही विरोधाभास है ये किनकी देन है? सचमुच मुझे उत्तर की तलाश है कोई विद्वान तो सामने आए
जय जय भड़ास

Abhishek Mishra ने कहा…

धर्म एक है उसके पूर्व लगने वाले विशेषण उसे अलग अलग नाम दे देते हैं

Snigdha Mrityunjay ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रूप से चित्रण किया है सारे धर्मो का अमित जैन (जोक्पीडिया ) आप ने , इसे पढने के बाद लगता है की सभी धर्म एक है , सभी मे करुना , दया , प्यार , अहिंसा का एक सामान मिश्रण है , पर न जाने क्यों हम सभी एक दुसरे से अपने अपने धर्म के नाम पर लड़ते है , अमित भाई यदि किसी धर्म मे किसी दुसरे के धर्म के विषय मे कोई प्रेम की भावना वाली बात लिखी हो तो वो भी बताना , क्योकि आप की बातो से लगता है की आप सारे धर्मो को बहुत ही ध्यान से समझते है और सभी का सामान रूप से आदर करते है , पहली बार इस भड़ास ब्लॉग पर ( धर्मो का नजरिया ) की खोज करते हुए पंहुचा और आप से यहाँ मुलाकात हो गई , इस ब्लॉग को मैंने अपने बुक मार्क मे जोड़ लिया है , आप से फिर मिलते रहेगे , और आप की इन मीठी मीठी धार्मिक रसभरी बातो को मै अपने सभी धर्मो के दोस्तों को जरूर कॉपी कर के भेजुगा

raj ने कहा…

अमित जी हर धर्म सत्य अहिंसा की बात करता है अत: धर्म और कुछ नही बस एक बेहतर तरीके से जीने का तरीका है क्योंकि जो सत्य अहिंसा का पालन करेंगे वे किसी को कष्ट कैसे देंगे
रही बात फ़िरको या समाजों की वे धर्म नहीं हैं बस फिरके भर हैं और फ़िरकापरस्त लोग ही धर्म का गलत विवेचनinterpretation karate hain.

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर ने कहा…

अमित भाई,
आपने सभी धर्मो के हिन्सा पर मतव्य बताऐ, जानकार अच्छा लगा कि दुनिया के सभी धर्म एक बात पर सहमत है कि जीव हत्या पाप है,हिंसा है।
मनुष्य शांति चाहता हैं। अशान्ति कोई नहीं चाहता। शांति केवल अहिंसा से ही संभव है। पर अहिंसा का अर्थ इतना ही नहीं है कि किसी जीव की हत्या न की जाये। दूसरों को पीड़ा न पंहुचाना, उनके अधिकारों का हनन ना करना भी अहिंसा है। इस अहिंसा की पहले भी आवश्यक थी और आज भी है। पर आज विनाशक शस्त्रों के अम्बार लगे हुए हैं। पूरी दूनिया जैसे बारूद के ढेर पर बैठी हुई है। आंतकवाद से बडे-बडे विकसित राष्ट्रों की नींद हराम हो रही है। धार्मिक उन्मादों से प्रेरित क्रुसडे, जोहाद तथा धर्म युद्ध ने मानव जाति को विनाश्य के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। निहित स्वार्थ कि समूचि मानव जाति भयभीत है। गरीबी एवं अभाव के कारण लोग नारकीय जीवन जीने के लिए विवश है।
क्या केवल धर्मशास्त्रो के पढने मात्र से अहिंसा जीवन में उतर आयेगी ? क्या केवल प्रवचन सुनने मात्र से अहिंसा का जीवन में अवतरण हो जायेगा? नहीं उसके लिए हमें अहिंसा के प्रशिक्षण पर विचार करना होगा। यह सोचना होगा कि हिंसा के क्या कारण हैं तथा कैसे उनका निवारण किया जा सकता है।

पहले हम हिंसा के कारणों पर विचार करें।
आपका आभार कि आपने ज्ञानवर्धक जानकारी प्रदान की।
महावीर बी सेमलानी
मुम्बई टाईगर

सुज्ञ ने कहा…

बहुत ही देरी से आपके इस लेख पर आया।
अन्तर की गहराइयों से आपको धन्यवाद देना चाहता हुं आपने बडे श्रम से विभिन्न धर्म ग्रन्थों के आधार पर अहिंसा को स्थापित किया।
आपका यह कार्य वंदनीय और स्तूत्य है।

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