लो क सं घ र्ष !: राष्ट्रिय हितों के सौदागर है ये निक्कर वाले....तो यह हाल तलवार भाजने वाले लौहपुरुष और योद्धाओ का है ।

बुधवार, 24 जून 2009


क्या कांग्रेस फैसले में शामिल थी? देखो ,ख़ुद अडवानी ने 24 मार्च 2008 को शेखर गुप्ता को दिए गए इन्टरव्यू में क्या कहा था। अडवानी , "मुझे ठीक तरह से याद नही है की सर्वदलीय बैठक में कौन-कौन था। लेकिन मोटे तौर पर सरकार को सलाह दी गई थी की संकट ख़त्म करने के लिए सरकार फ़ैसला करे। यह भी कहा गया था की यात्रियों की रिहाई को सबसे ज्यादा तरजीह दी जानी चाहिए। " इस पर शेखर ने पुछा ,"क्या कांग्रेस ने भी ऐसा कहा था?" अडवानी का जवाब था, "मुझे वह याद नही, लेकिन आमतौर से यह बात कही गई थी।" अडवानी के इस साफ़ बयान से कांग्रेस को संदेह का लाभ मिलता है । कांग्रेस प्रवक्ताओ के इस सवाल में बड़ा दम है और आखिर अडवानी किस तरह के "लौहपुरुष " है की उन्हें बहुत ही संवेदनशील फैसलों से दूर रखा गया और क्या प्रधानमन्त्री वाज़पेई उन पर भरोषा नही करते थे ? अगर अडवानी इतना ही अप्रसन्न थे तो पद त्याग करने का सहाश क्यों नही कर पाये । लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना के बाद इस्तीफा दे दिया था । विश्वनाथ प्रताप सिंह ने डाकुवो के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था । जवाहरलाल नेहरू ने पुरुषोत्तम दास टंडन और डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जैसे नेताओं से नीतिगत विवादो पर इस्तीफे की पेशकश कर डाली थी। यहाँ तो अभूतपूर्व राष्ट्रिय सुरक्षा और स्वाभिमान का संकट था।

ख़ुद अडवानी की किताब "मई कंट्री मई लाइफ" से निष्कर्ष निकलता है की वह और उनके सहयोगी सकते में आ गए थे, जो कुछ हुआ वह राजनितिक फैसला था और प्रशासकीय सलाहकारों से जरूरी मशविरा नही किया गया। अडवानी लिखते है (पेज 623) : "विमान यात्रियों को छुडाने के लिए एक विकल्प सरकार के पास यह था की विमान से कमांङो और सैनिक कंधार भेज दिए जाएँ । लेकिन हमें सूचना मिली की तालिबान अधिकारियो ने इस्लामाबाद के निर्देश पर हवाई अड्डे को तनको से घेर लिया है। हमारे कमांडर विमान के अन्दर अपर्ताओ को निहता कर सकते थे। लेकिन विमान के बहार तालिबानी सैनिको से साशस्त्र संघर्ष होता और जिनकी जान बचाने के लिए यह सब किया जाता,वे खतरे में पड़ जाते ।" (अडवानी के इस कदम का पोस्त्मर्तम करें । किस सुरक्षा विशेषज्ञ ने सलाह दी थी की कंधार में कमांडो कार्यवाही सम्भव है? अगर तालिबान टंक न लगाते टू क्या कमांडो कार्यवाही हो जाती? कमांडर!(please do not change it to commando. advaani has issued the term commandor) विमान के अन्दर अपर्ताहो को निहत्था करने के लिए पहुँचते कैसे? कंधार तक जाते किस रास्ते ?पकिस्तान अपने वायु मार्ग के इस्तेमाल की इजाजत देता नही । मध्य एशिया के रास्ते आज तो कंधार पहुचना सम्भव है । तब यह सम्भव नही था। कल्पना करें की कंधार तक हमारे कमांडो सुगमतापूर्वक पहुँच भी जाते ,तब वे किसे रिहा कराते ? क्योंकि इस बीच आइ .एस.आइ यात्रियों और अपर्थाओ को कहीं और पहुंचवा देती ।
१९६२ में चीन के हाथो हार के बाद कंधार दूसरा मौका था जब भारत की नाक कटी । उस त्रासद नाटक के मुख्य पात्र अडवानी इस घटना के बारे में कितना गंभीर है है इसका अंदाजा यूँ लगाइए की घटना के कई साल बाद किताब लिखी और उसमें पूरे मामले का सरलीकरण कर दिया। पर तो परदा पड़ा ही हुआ है । नाटक के एक बड़े पात्र जसवंत सिंह ने अपनी किताब "A call to owner: in service of imergent India" में कोई खुलाशा नही किया । बल्कि बड़े गर्व से कह रहे है की भविष्य में कंधार जैसा फिर कोई हादसा हुआ तो वह वाही करेंगे, जो पिछली बार किया था । तो यह हाल तलवार भाजने वाले लौहपुरुष और योद्धाओ का है ।

सी॰टी॰बी॰टी : परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने वाली इस संधि पर बीजेपी के रुख की कहानी बहुत दिलचस्प है। कांग्रेस सरकारों ने बम बनाये। लेकिन पोखरण -२ के जरिये बीजेपी ने अपने महान राष्ट्रवाद का परिचय देने की कोशिश की। मनमोहन सिंह की सरकार जब अमेरिका से परमाणु समझौता कर रही थी,तब बीजेपी के विरोध की सबसे बड़ी वजह यह थी की भारत परमाणु विश्फोतो के अधिकार से वंचित हो जाएगा। सच यह है की भारत को निहता करने में वाजपेई सरकार ने कोई कसार नही छोडी थी और इस त्रासद की कहानी के खलनायक थे विदेशमंत्री जसवंत सिंह।
एन डी ए शाशन के दौरान अमेरिका में विदेशी उपमंत्री स्ट्राब टैलबॉट ने अपनी किताब "एनगेजिंग इंडिया :डिप्लोमेसी ,डेमोक्रेसी एंड द बोम्ब " में वाजपेयी सरकार की कायरता पूर्ण और धोखेबाज हरकतों का खुलासा किया है। टैलबॉट ने पेज १२१ पर लिखा है, "जसवंत क्लिंटन के नाम वाजपेयी का पत्र लेकर वाशिंगटन पहुंचे , जो उन्होंने मेरे कक्ष में मुझे दिखाया । इस पर नजर डालते हुए सबसे महत्वपूर्ण वाक्य पर मेरी निगाह रुकी । यह था, "भारत सितम्बर 1999 तक सी॰टी॰बी॰टी पर स्वीकृति का निर्णय लेने के लिए महत्वपूर्ण वार्ताकारों से रचनात्मक वार्ता करता रहेगा।" बाद में विदेश मंत्रालय के अधिकारी सैंङी बर्गर से बातचीत के दौरान जसवंत ने कहा की वाजपेयी सी॰टी॰बी॰टी पर हस्ताक्षर करने का अन्पलत निर्णय कर चुके है । यह बस वक्त की बात है की इस निर्णय को कब और कैसे सार्वजानिक किया जाए। "

पेज 208 पर टैलबॉट बताते है की सरकार से उनके हटने के पहले जसवंत से आखिरी मुलाकात में एन डी ए सरकार के इस वरिष्ठ मंत्री ने सी॰टी॰बी॰टीपर दस्तखत का वादा पूरा न करने पर किस तरह माफ़ी मांगी। "जसवंत ने मुझसे अकेले मुलाकात का अनुरोध किया,जिसमें सी॰टी॰बी॰टी पर संदेश देना था। जसवंत ने वादा पूरा न करने पर माफ़ी मांगी। मैंने कहा की मालूम है कि आपने कोशिश की, मगर परिस्तिथियों ने साथ नही दिया। "

तो यह है संघ परिवार के सूर्माओ का असली चरित्र । कश्मीर,कंधार और सी॰टी॰बी॰टी पर अपने काले कारनामो का उन्हें पश्चाताप नही है। यह सब सुविचारित नीतियों का स्वाभाविक परिणाम है। इन तीन घटनाओ से यह नतीजा भी निकलता है कि बीजेपी को अगर कभी पूर्ण बहुमत मिला तो हम जिसे भारत राष्ट्र के रूप में जानते है, उसे चिन्न-भिन्न कर डालेगी ।

प्रदीप कुमार
मोबाइल :09810994447

1 टिप्पणियाँ:

मनोज द्विवेदी ने कहा…

To ab hame yah man lena chahiye ki americiyon ki likhi bate bhi hamara margdarshan karengi? kya ab america bhi hamara hitaishi ho gaya? ap kis bharat rashtra ki bat karte hain. MUMBAI aur PURVOTTAR ke rajyon me lat-juta kha rahe UP/BIHARI ka bharat rashtra? ya desh ke 12 simavarti rajyon me RED CORRIDOR ki samanantar chal rahi sarkar wala bharat rashtra? Ghuskhonron, bhrastachariyon aur mafiya ki dabangai wala bharat rashtra? 5star hotels me dinner karne walon ka bharat rashtra ya kheton ki katai ke bad usi khet ki mitti se gehu ka ek-ek dana chunane wale garibon ka bharat rashtra? har jile me antankwadiyon ki moujudagi wala bharat rashtra? ACHCHHA TO YEHI HOGA KI AISE BHARAT RASTRA KA CHITRA CHHINN-BHINN HO JAYE..kam se kam kuchh badalega!!!

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