वो साला NGO वाला देश के लोकतंत्र में भुस भरना चाहता है
सोमवार, 29 जून 2009
एक बार मुंबई में एक ब्लागर मीट रखी गयी। अंग्रेजी में टर्राने वाले सारे लोगों में हिंदी बोलने वाले देसी ठर्र गंवार भड़ासी भी पहुंच गये। वही हुआ जो हमेशा होता है। हम तो वही करते हैं जो हमें सही लगता है बुरे,जिद्दी,जाहिल और बुद्धू जो ठहरे....बीच बीच में उठ कर हिंदी में रेंक देते थे। सबने अपनी अपनी ढपली बजाकर विदेशी राग अलापा और पगले भड़ासी अवधी,बुन्देली,मगही जैसे राग अलापते रहे। असर हुआ कि मीट कत्म होते होते सब टोडी बच्चे हिंदी,मराठी और गुजराती बोलने लगे। इसी मीट में एक सेशन रहा "असोका" नाम के एक NGO के प्रतिनिधियों का भी जो कि अपनी अपनी पेलते रहे कि हम ये, हम वो, हम सौदागर हैं, हमारे चौदाघर हैं वगैरह वगैरह......(भौं भौं...)। उनमें से एक ने जो बोला वो अब तक दिल में चुभा था लेकिन आज उस बंदे का ट्विटर पर रोल देख कर चरित्र समझ में आ गया। उसने बड़े मार्मिक अंदाज में कहा था कि मैं जब छोटा था तो मेरे अंकल ने मेरे साथ कुकर्म करा था इसलिये आप सब इस बात पर नजर रखें कि बच्चों का यौनशोषण न हो,इसने एक बात और कही कि यदि सभी लोग एक NGO की तरह कार्य करने लगें तो हमें सरकार की जरूरत ही न पड़ेगी।
अब इसकी बात समझ में आ रही है क्योंकि ये पट्ठा मुंबई में हुए गे और लेस्बियन लोगों के सम्मान परेड की वकालत कर रहा है। ये विदेशों से पैसा पाने वाले NGO भारतीय जीवन मूल्यों से बलात्कार करने में नहीं चूकते। दूसरी बात कि ये बड़े ही बौद्धिक तरीके से लोकतंत्र की धारणा को ध्वस्त करने की साजिश का भी हिस्सा हैं। जब हम सब दिमागी तौर पर इनके गुलाम हो जाएंगे और हमारे जीवन मूल्य ही नष्ट हो जाएंगे तो इन्हें हम पर अधिकार करने के लिये किसी हमले की जरूरत ही नहीं रहेगी क्योंकि हम में से ही न जाने कितने लोग इनकी वकालत में उठ खड़े होंगे। न जाने कितनी सेलिना जेटलियां और अशोकराव कवि सामने आ जाएंगे।
जय जय भड़ास
1 टिप्पणियाँ:
nice article
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