आखिर कुछ सामाजिक प्राणीओ में बुद्धि क्यों नही होती.....
बुधवार, 1 जुलाई 2009
आज सुबह सुबह में ऑफिस आया। माहोल बिलकुल अलग....सभी लोग मेरे सामने एक अजब सी नजरो से देख रहे थे। सब के मुख पर अजब सी मुस्कान थी ।सिवा उन लडकियो को छोडकर जो हमेशा चुप चुप के मेरे सामने देखकर अपने भविष्य के रंगीन सपनो के बारे में सोचती रहती थी ।
आज पहली बार सब के मुह से मेरे लिए वाह वाह निकल रही थी। उनके मुँह मानो मुझे देखकर बोल रहे हो..... अब मिठाई खिलादे यार...एक..दो...खिलादे..।
मेने पुछा आखिर बात क्यां है...किस बात की मिठाई ?
उन्होने कहाँ तुम्हे मालूम नहीँ क्यां तुम बाप बने हो....तुम को बेटी हुई है ।
शुरु शुरु में मे भी खुश हो गया...सभी लोगो के साथ जोर जोर से नाचने लगा...सबसे गले भी लगने लगा ।मुझे ओफिस के अन्य विभागो से कहीँ सारे फॉन आने शरु हो गए।
वह कुछ इस प्रकार थे...
''जनक बेटा अब थोड़ा सिरीयस हो जा..... तुजे बेटी जो हुई है....बेटी तो लक्ष्मी होती है लक्ष्मी...अब उस लक्ष्मी के भविष्य के बारे में सोचना और उसके लिए कोई अच्छा विष्णु (लडका) ढूँढना...
कुछ ने अपने मधुर सुरो मे दिल की सारी भड़ास कुछ इस तरह निकाल दी ...
बेटी के लिए हमारी आपको हार्दिक हार्दिक शुभकामनाए...... लेकिन यहाँ पर हम सभी एक बात आपसे जरुर कहेना चाहेंगी कि, बुरा मत मानीयेगा लेकिन तुम जेसा क...... आदमी हमने जीवन में कभी नहीँ देखा...
अगर पहले से ही हमे मालूम होता कि तुम शादीशुदा हो तो... हम कभी भी तुम्हारे बारे में ना सोचती..कभी भी तुमसे दिल ना लगाती... तुमने जीस तरह हमारा दिल दुखाया उसी तरह तुम्हारी बेटी का भी कोई दिल दुखाऎ...जा तेरी बेटी शहर के किसी नाई के साथ आधी रात को तुझे अकेला छोड्कर भाग जाए....तथास्तु....
कुछ फॉन तो एसे भी थै...
'' जनक सर...जनक सर... बहुत बहुत बधाई...... बीटीया होने के लिए ...जलेबी खिलाऔ जलेबी खिलाऔ....''
दो तीन बार खुशी खुशी में मे भी बोल उठा सुक्रिया सुक्रिया...यह तो भगवान की क्रिपा और आप सबकी महेरबानी है वरना मे तो पीछले दो साल से अपने घर नहीँ गया (कृपया यहाँ कोई दूसरा अर्थ ना ले सिर्फ भावनाऔ को समझे)
मे खुश था बहुत खुश मेने मन ही मन कहाँ '' हे भगवान आखिर मुझे बेटी हो गई जिस का मुझे सालो से इंतजार था''
मेने घर पर फौन लगाया..मम्मी से,, पापा से, भाई से.... और मेरे प्यारे डोगी से बात करी.... आखिर में मे बाप बन ही गया... लेकिन बाद में मुझे मालुम हुआ...यार मेरी कब शादी हुई और जब शादी ही नहीं हुई तो बेटी कहाँ से आई....
दुनिया का शायद में पहला और शायद आखरी बाप होगा जिसे बगैर बीबी के बेटी हुई है...जीवन में मेने पहला एक एसा काम किया है.. जिसके लिए मुझे किसी के योगदान कि आवश्यकता नहीं पड़ी...वेलडन...जनक...वेलडन...
वेसे अच्छा है...सोच रहाँ हु...अब में मेरी बेटी का नाम क्याँ रखु.
दोस्त कहते है उसका नाम सीता ही रखो...
मेने कहाँ क्यो ?
क्योंकि तुम्हारा नाम जनक है ?
मेने कहाँ वो तो है...? तो क्याँ ?
तो बोले...रामायण में भी महाराज जनक को जीस तरह से सीता मिली थी उस तरह तुम्हे भी तुम्हारी सीता मिली है
मेने कहाँ मे कुछ समझा नहीँ
तो वह बोले सुनो रामायण में घरती मैया की गोद से सीता निकली थी और यहाँ हमारे एच आर डिपार्टमेन्ट के नाम पर तुम्हारे किसी मूर्ख दोस्त ने झुठी अफवाहो के जरिये इस काम को अंजाम दिया है...
वेसे हमारे यह चिरकूट भैया (उनका नाम चिरकूट है ) बहुत प्यारे है...उन्हे कभी भी किसी की शर्म नहीं...खाते समय भी वह दाल ऎसे मागते है जेसे हम उनके लिए ही खास तडका लगाकर घर से बनाकर आए हो....पार्टी मांगने में माहिर है हमारे चिरकूट भैया.... उन्होने मेरे लिए भी अच्छा काम किया जो आज 1 अप्रेल के दिन मुझ जेसे बेसहारा बाप को बगैर बीबी की ही एक बेटी दे दी है...
सुन रहे हो भगवान....आप से कहे रहाँ हुँ.... छुट्टी पर तो नहीं होना...अगर हो तो ध्यान रखना कहीं वहाँ आप का काम कोई चिरकूट सिंघ तो नहीं संभाल रहाँ ना... कहीं वह भी आपको बाप.... ।सोरी सोरी भगवान माफ करना में तो भूल हीं गयां कि आप तो हम सबके बाप हो....
गूगल बाबा से साभार उधारी ....
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