मुझ को तो माफ करो राखी सावंत

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

27 जून की सुबह आठ बजे के लगभग कानपुर से फुरसतिया अनुप शुक्ल की मेरे मोबाईल पर काल आई । मैंने चाय पीते-पीते अनुप जी को सलामी दागी । उन्होंने सलामी रिसीव की और रोष प्रकट किया कि पहले भी क्या जमाना था, लोग 21 तोपों की सलामी दिया करते थे अब तो भाईलोग जबान हिला देते हैं सलामी के नाम पर । खैर । बाल बच्चों का हाल चाल पूछने के बाद तुरंत ही पूछ डाला । ”अरे कृष्ण मोहन तुम उदयपुर जा रहे हो कि नहीं ।” मैं जानता तो था ही कि ये राखी सांवत वाला मामला है लेकिन अनजान बनते हुए मैंने कहा ”कहां अनुपजी, इस गर्मी में लोग शिमला और कश्मीर का प्रोग्राम बनाते हैं और आप राजस्थान की गर्मी में झुलसने की बात कर रहे हैं ।” उन्होंने डांटते हुए कहा ”बहुत स्याने न बनो सबके पास बुलावा आया है । राखी सावंत ने इनविटेशन भेजा है अपने स्वयंवर में शामिल होने के लिए । संजय बेगाणी, शिव कुमार मिश्र, समीर लाल, सिद्धार्थ त्रिपाठी, सुरेश चिपलनूकर, आलोक पुराणिक, अरविन्द मिश्र, हर्षवर्धन त्रिपाठी, परमजीत बाली, प्रमेन्द्र प्रताप, कौतुक रमण और तो और भाड़ासी यशवन्त और डा0 रूपेश तक को स्वयंवर में इनवाइट किया गया है दूल्हा बनने के लिए । ज्ञानदत्त जी को तो आदर पूर्वक कन्यादान के लिए आमंत्रित किया गया है । अब तुम बताओ, ऐसा तो हो नहीं सकता कि राखी हम सबको बुलाये और तुमको भूल जाये ।”

सारी कहानी अनुप जी के मुंह से सुनने के बाद मैंने चैन की सांस ली कि चलो एक मैं ही अकेला प्रतियोगी नहीं हूं ब्लागजगत से, बेचैन हसीना ने पूरी हिटलिस्ट तैयार कर रखी है टी.वी. पर हम सब को जलील कर करने की । मैंने कबूल किया ”हां भइया आप लोगों की तरह मेरी भी आर.सी. कट गई है । जब से कम्बख्त ये ढाई किलो का हल्दी-अक्षत, रोरी लगा आमत्रंण पत्र मिला है धर्मपत्नी 256 बार धमकी दे चुकी है कि अब तो साल दो साल क्या दस साल में भी एक बार मैयके नहीं जाउंगी । मेरे पीठ पीछे तुम आईटम गल्र्स के साथ नैन मटक्का करते फिरते हो । और तो और सभी मायके वालों को भी यहीं बुलाने की धमकी दे डाली है ।”

”मैं पूछता हूं अनुप भइया, बस एक पोस्ट डाली थी ”बिग बास का कोठा”, उस एक मात्र व्यंग्य के लिए क्या इतनी बड़ी सजा मिलनी चाहिए मुझे । मां, बाप घूर-घूर कर देखने लगे हैं । बेटा मुस्कुरा कर कहता है ‘पापा ! आप नहीं जा रहे हो तो मैं ही चला जाऊं, बिचारी राखी को ये संतोष हो जायेगा कि मिश्र खानदान से कोई तो वीर पुरूष आया उसका हाथ थामने के लिए ।’ वाइफ ने फरमान जारी कर दिया है कि आज से मेरा डाढ़ी बनाना बंद और नहाने के लिए साबुन भी नहीं मिलेगा, मुलतानी मिट्टी से काम चलाना पडेगा । मेरी तो खूबसूरती ही मेरी जान की दुश्मन बन गई अनुपजी । बसी बसायी गृहस्थी में डीज़ल छिड़क दिया रखीवा ने ।” मैंने एक ही सांस में अपना दुखड़ा अनुप जी को सुना डाला ।

सुन कर उन्होंने राहत की सांस ली । ”अब पता चला बेटा व्यंग्य लिखने का नतीजा । कब, कौन ससुरा, किस दिशा से, कौन सा हथियार लेकर पिल पड़े कुछ पता नहीं चलता है । कम्बख्त बीमा वाले भी व्यंगकारों का बीमा नहीं करते हैं । कहते हैं सुसाइड केस है । आ बैल मुझे मार वाले वीर हो तुम लोग । लेकिन मैंने राखी का क्या बिगड़ा था जो मुझको भी परवाना भेज दिया ।” इतना कह कर अनुपजी उदास हो गये ।

उनकी आवाज मेंउदासी सुन कर मैंने उनको ढाढस बंधाया ”अरे इतना उदास क्यों होते हैं । एक लेटर डाल दीजिए कि हम बिज़ी हैं । इस बार नहीं आ सकते । अगली बार स्वयंवर करोगी तो पक्का भाग लेंगे । 101 रूपये व्यौहारी डाल कर छुट्टी करिये ।”

अनुप जी चहके ”ठीक आइडिया दिया तुमने । नहीं जायेंगे तो क्या सूली पर चढ़वा देगी । वैसे भी उसका भरोसा नहीं है । जो अपने पुरूष मित्र अभिषेक का कैमरे के सामने थप्पड़ों से भोग लगाये, वो बंद कमरे में अपने धर्मपति के साथ कैसासुलूक करेगी ये तो वो वीर ही जानेगा या उस कमरे में लगे हुए स्पाई कैमरे । मैं तो नहीं जाऊंगा उदयपुर । कलकत्ते जाने का विचार पिछले कुछ दिनों से कुलबुला रहा था, वहीं हो आता हूं । बहुत दिन हो गये हावड़ा ब्रिज पर सैर किये हुए । नई जगह पर तुम्हारी भाभी का भी गुस्सा शांत हो जायेगा, वो भी भडकी हुई हैं इनविटेशन कार्ड देख कर । अच्छा चलता हूं । तुमसे बात कर के दिल का बोझ हल्का हो गया, लेकिन देखो तुम ये बात बातचीत नमक-मिर्च लगा कर सुदर्शन पर न छाप देना । तुम्हारा क्या है, वहां कोर्ट में फर्जी कहानियां जज साहब को सुनाते हो, वहां से पेट नहीं भरता तो ब्लाग पर व्यंग्य पोतने लगते हो ।”

मैंने भी अनुप जी का समर्थन किया ”अरे उस राखी का कोई भरोसा नहीं है । मुझको तो लगता है वो जो 16 उम्मीदवार स्वयंवर के लिए उदयपुर पहुंचे हुए हैं, अंत में वो सबको राखी बांध कर चलता कर देगी, चैनल वालों से पैसा ऐंठ कर और फतहगढ पैलेस के बैरों को बिना कोई टिप दिये, हंसती खिलखिलाती, ठुमकती-मटकती, वहां से मुंबई का प्लेन पकड़ लेगी ।”

”जो भी हो । मैं तो नहीं जा रहा हूं । बाकी ब्लागरों को भी यही नसीहत दे देना । ज्ञानदत्त जी ने तो राखी को फोन कर के मना कर दिया कि बेटी मैं नहीं आ पा रहा हूं । रेल में रिजर्वेशन नहीं मिल रही हैं और इधर घुटनों में दर्द भी काफी बढ़ गया है । अच्छा आफिस के लिए देर हो रही है, शाम को सुदर्शन पर मेरी टिप्पणी देख लेना । और घर में सब ठीक है न । कभी कानपुर आओ बहू को लेकर। और तुम दावतें कम खाया करो पेट बहुत बढ गया है तुम्हारा इधर ।” इतना कह कर अनुप जी ने विदा ली । चाय ठंडी हो चुकी थी इसलिए उसको फिर से गर्म करने की अर्जी धर्मपत्नी को देकर मैं सवेरे का अखबार देखने लगा ।



inlove Excited__2 => बहन राखी ये वरमाला एक बार मेरे गले में डाल दो, फिर चाहे बाद में तुम मुझे राखी बांध देना ।

2 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

bkvaas mt likha kro.

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