जैन हिंदू हैं ? जैन हिंदू नहीं है? संजय बेंगाणी,अमित जैन और महावीर सेमलानी कौन हैं?????

गुरुवार, 30 जुलाई 2009


जैनों के बारे में अब तक अनूप मंडल की तरफ़ से थोड़ा कुछ लिखा और बताया गया जिसे अनेक लोगों ने देखा और परखा भी। अब तक शायद कई लोगों ने ये भ्रम भी पाल लिया होगा कि अनूप मंडल के लोग जबरन ही जैनों के प्रति नामालूम कारणों से दुर्भावना ठाने हैं और बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं, इस बारे में सबका अपना निजी मत होगा किन्तु हम अपनी बातों को मात्र तर्क नहीं बल्कि तथ्यों के आधार पर रख कर सिद्ध कर रहे हैं। खुद ही सोचिए कि जब देवताओं के गोत्र व वंश हमारी पुराण कथाओं से होकर वर्तमान हिंदू समाज में मौजूद है तो क्या दानवों के बीज नष्ट हो गए होंगे? अगर आप इस भ्रम में हैं तो आप निहायत ही जड़बुद्धि हैं ऐसा कहने में हमें कोई खेद नही है।

अब तक हम आपको बताते रहे हैं कि किस प्रकार दानव हम देवकुली मानवों के बीच हमारे जैसे होकर घुलमिल गये हैं और हमारे बीच ही रह कर हमारे संस्कार और सोच को भ्रमित और दूषित कर रहे हैं। इसके उदाहरण के तौर पर अब तक हमने दो ब्लागरों को प्रस्तुत करा था जिसमें कि अमित जैन और महावीर सेमलानी रहे, महावीर सेमलानी से उठाए गए सवालों का अब तक उत्तर तो न दिया गया बल्कि ये जरूर करा गया कि दुनिया भर की लीपापोती करके सिद्ध करना चाहा कि हम अनूप मंडल के लोग व्यर्थ ही जैनों पर राक्षस होने का आरोप लगा रहे हैं। ये इनका हमेशा का तरीका रहा है कि आपको मुद्दे से भटका देते हैं यही तो इनका राक्षसी मायाजाल है जिसे आप देख कर भी समझ नहीं पाते। आज हमने लिया है एक और इंटरनेट पर हिंदी में छाए हुए एक और जैन को जो कि है तो जैन लेकिन खुद को हिंदू बताता है लेकिन साथ ही अनीश्वरवादी होने की राक्षसी बात भी स्वभाव वश कह जाता है क्योंकि ये सत्य है कि राक्षस लोग ईश्वर के अस्तित्त्व पर विश्वास न करके अपने दानव गुरुओं, कल्पित तीर्थंकरों, जिनो पर विश्वास करते हैं(किसी भी मुसलमान या हिंदू को ये बताना कि जिन कौन होते हैं निहायत ही बचपना होगा सब जानते हैं कि ये शैतानी और पैशाचिक शक्तियां होती हैं)। संजय बेंगाणी नामक ये जैन हिंदू समाज को जातिप्रथा विहीन और अतिआधुनिक देखने की तमन्ना रखता है(मुस्लिम,बौद्ध,सिख,क्रिश्चियन,पारसी आदि समाजों में इसे दिलचस्पी नहीं है इनका अधिकाधिक रुझान हिंदू धर्म को दूषित करने में है)। जैन खुद को हिंदू कहते भी हैं लेकिन कानूनी तौर पर खुद को अल्पसंख्यक होने के लिये कोर्ट में जतन भी जारी रखते हैं, इनके मुनि चीख-चीख कर खुद को हिंदुओं से अलग बताते हैं लेकिन संजय बेंगाणी जैन मान्यताओं की वकालत में संथारा के विषय में लिखते समय न जाने क्यों सैकड़ों प्रश्नवाचक चिन्ह प्रयोग कर गए शायद ये टोटका भी इन्हें किसी जिन ने बताया होगा कि इस तरह के मुद्दे बड़े ही प्रेम और कोमलता से उठाओ और ये जताओं कि बड़े ही प्रगतिवादी विचारों के हो लेकिन ठहरे तो जन्मना जैन ही इसलिये मूल स्वभाव सामने आ ही जाता है। ये कपटाचार मात्र इस लिये करा जा रहा है कि अन्य धर्मी लोग इनसे प्रभावित हो जाएं और अपने धर्म की मान्यताओं पर भी थूकाथाकी करने लगें तब ये महाशय धीरे से पीछे सरक जाएं और अन्य धर्मों में मान्यताओं के प्रति उठापटक चालू हो जाए तब ये जैन धर्म को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध कर सकें। लीजिये प्रस्तुत हैं इनकी माया भरी हुई लेखनी का इंद्रजाल और अगर आप पूरे आलेख पढ़ना चाहें तो इनके चिट्ठे पर जाकर उसकी रेटिंग अवश्य बढ़ाएं--------------
http://www.tarakash.com/20070508250/Believes/article-baldiksha.html(बाल दीक्षा कितनी उचित?)
सती प्रथा या ऐसी ही बुराईयों के विरुद्ध कानून बन सकता है तो बाल दीक्षा के विरूद्ध क्यों नहीं.चुंकि आज ऐसा कोई कानून नहीं है इसलिए बाल दीक्षा भी अपराध नहीं है. मगर क्या बच्चो को दीक्षित करना सही है? शायद नहीं.अब देखें बाल दीक्षा दी क्यों जाती है.तर्क यह दिया जाता है की चुंकि मुमुक्षू (जो दीक्षा लेने का इच्छुक है) को एक दिन दीक्षित होना ही है तो क्यों न उसे बचपन में ही दीक्षित कर दिया जाय, इससे वह उसी माहौल में बड़ा होने की वजह से धार्मिक रिवाजो को आत्मसात कर सकेगा.वैसे तो जैन धर्म अपने तमाम शांति-अहिंसा के दावो के बावजुद अनेक पंथो(शाखाओ) में बटा हुआ है.इनमें मेरा परिचय तेरापंथ शाखा से ही ज्यादा रहा है. देखा गया है की तेरापंथ में सामान्यतः महिला मुमुक्षू को बाल दीक्षा नहीं दी जाती. उन्हे अच्छी तरह से शिक्षित करने के बाद ही दीक्षा दी जाती है. वहीं पुरूष मुमुक्षू को ज्यादा समय न देते हुए दीक्षित कर दिया जाता है. कारण शायद यह होता है की महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा आस्थावान होती है. एक बार बालिग होने पर शायद पुरूष स्त्री के मुकाबले दीक्षा लेना कम पसन्द करे. ऐसे में बचपन में ही दीक्षित कर देना सही लगता है. धर्मसंघ को जीवित रखने के लिए यह अनिवार्य जान पड़ता है.एक जैनमूनि का जीवन अत्यंत कष्टपूर्ण होता है, अतः नादानी में कोई बालक दीक्षित न हो इसका समाज जतन करे, अन्यथा कानून बने.
http://www.tarakash.com/2006092425/Believes/article-jain-santhara.html(जैन धर ?म की संथारा प ?रथा, कितनी उचित? )
संथारे तथा आत ?महत ?या में अंतर: आत ?महत ?या करने के पीछे मन में द ?वेष का भाव होता हैं या फिर घोर निराशा। ?सा हो सकता हैं अवसर मिलने पर व ?यक ?ति आत ?महत ?या का इरादा त ?याग दे तथा अपने कृत ?य पर पछतावा भी हो। जबकि संथारे में तत ?काल मृत ?य ? नहीं होती यानी सोचने सम ?ने तथा अपने उठा ? कदम पर प ?नर ?विचार करने का पर ?याप ?त समय होता है। संथारे में जीवन से निराशा तथा किसी भी प ?रकार के द ?वेष का कोई स ?थान नहीं होता। इसलि ? इसे आत ?महत ?या से अलग माना जाना चाहि ?। संथारा की त ?लना सति प ?रथा से करना भी गलत हैं, संथारा लेना हिन ?दू धर ?म के समाधि ले कर मृत ?य ? को प ?राप ?त होने जैसा है। शिवाजी महाराज के ग ?रूजी ने तथा रामदेव पीर ने समाधि ली थी। सीताजी ने भी समाधि ली थी। मेरा निजि मत हैं की धर ?म में दखल न मानते ह ? ? इस विषय पर व ?यापक चर ?चा होनी चाहि ?। अगर हम चाहते हैं की सभी का जीवन स ?खद हो तो हमें सभी के लि ? स ?खद मृत ?य ? की कामना भी करनी चाहि ?। (मेरी परदादीजी ने भी संथारा लिया था, मेरे पिताजी की मौसीजी ने भी संथारा लिया था. और जो विमलादेवी चर ?चा में हैं वे भी मेरी दूर की रिश ?तेदार हैं.)
अब आप सब देखियेगा कि काफ़ी समय तक न तो अमित जैन और न ही महावीर सेमलानी सांस लेंगे, चुप्पी साध लेने की राक्षसी कुटिलता देखियेगा। यदि बोले भी तो वाक्जाल के फंदे लेकर आएंगे जिनका हमें इंतजार है, आओ राक्षसों !!!!!!
जय नकलंक देव
जय जमीन माता
जय जय भड़ास

11 टिप्पणियाँ:

रंजन (Ranjan) ने कहा…

माफ किजिये समझ नहीं आया आप क्या कहना चाहते हैं?

अनोप मंडल ने कहा…

रंजन जी आपका दोष है ही नहीं कि आपको कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि आप दरअसल विषय के बीच में पधारे हैं। संक्षिप्त में बताया जाए तो आप हमें पागल ठहरा कर किनारे हो जाएंगे कि हम कहते हैं कि भारत में पाए जाने वाले जैन लोग राक्षस वंश के हैं। बात गहरी है सो निवेदन है कि पूरे विवाद को समझ लें। खुद सोचिये कि भला कोई किसी धर्म विशेष के लोगों को क्यों इस तरह कहेगा उसके पीछे जब तक ठोस कारण न हो और प्रमाण न हों वरना जूते मार कर जेल में ठूंस दिया जाएगा। आपका स्वागत है
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

मैं इस विषय पर टिप्पणी न करके एक पोस्ट लिखना बेहतर समझता हूं।
जय जय भड़ास

अजय मोहन ने कहा…

दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है साला कुछ समझ में नहीं आता। ये महावीर सेमलानी जी भी न जाने क्यों कुछ बोलते नहीं बस एक पोस्ट पेल कर जो गायब हुए तो सिर्फ़ अमित भाई की पोस्ट में ही टिप्पणी करते दिखे अब तो वो भी छू हो गए क्योंकि किसी ने अमित को कहा था कि वे महावीर सेमलानी जी से एक पोस्ट इस विषय पर लिखने की इल्तजा करें तो न ही अमित जी ने इस बारे में कुछ लिखा महावीर सेमलानी जी के बारे में क्या कहें। अमित भाई भी दो चार दिन चुप्पी साध लेते हैं और यहां वहां की बाते करके फिर अनूप मंडल के पिछवाड़े उंगली कर देते हैं और वो लोग भी शुरू हो जारे हैं देव-दानवों की सच्चाई के किस्से लेकर.... मेहरबानी करो यार आप लोग मेरे गरीब मुल्क पर... क्यों इसकी इस कदर बजा रहे हो जितनी समस्याएं है वो क्या कम हैं? यदि सचमुच महावीर सेमलानी जी इस विषय पर कुछ नहीं बोलते भले ही वो इस बात पर कोई भी तर्क दें मैं मानूंगा कि जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है वरना भड़ास पर तो कोई अगर गलत बात पर उंगली करे तो हम उसे नंगा करके कुतुबमीनार पिछवाड़े घुसा देते हैं इस हद तक गंवार और भोले हैं। सुरेश चिपलूणकर जी के नाम से किसी ने हरामीपन करा तो हम पिल पड़े थे जबकि वे बेचारे निर्दोष थे बाद में अनूप मंडल के तकनीकी जानकारों ने इसका खुलासा भी करा था कि ये कैसे करा जा रहा है। अरे यारों ! जो गिले-शिकवे हैं इसी मंच पर मिटाये जा सकते हैं। पर बोलो तो महाराज.....
जय जय भड़ास

संजय बेंगाणी ने कहा…

मुझे आपके विचारों और इस पर हो रहे विवाद के बारे में कुछ भी नहीं मालूम फिर भी आपने इसमें घटीस कर क्या उल्लू सीधा करना चाहा है?


आपके अनुसार जैन राक्षस है तो मुझे राक्षस कहलवाने में कोई परेशानी नहीं है.

अब बताईये, हिन्दुओं में आपसी फूट डाल कर आप कौनसा राक्षसी काम अंजाम देना चाहते है?

अनोप मंडल ने कहा…

संजय बेंगाणी जी कितने भोले हैं आप ये बताना चाहते हैं कि आपको राक्षस कहलवाने में कोई आपत्ति नहीं है। साथ ही हिन्दुओं में आपसी फूट डालने का आरोप हम पर मढ़ने से पीछे नहीं हट रहे हैं। हम उल्लू सीधा नहीं कर रहे हैं बल्कि जो भोले भाले लोगों(हिंदुओं, मुसलमानों, क्रिश्चियनों, सिक्खों, बौद्धों, पारसियों आदि को) उल्लू बना रहे हैं सदियों से उन्हें सीधा करते हैं सो आप की माया भी सामने रखी इसमें फड़फड़ाने की बात है क्योंकि कलई खुल रही है। जैन एक तरफ देरासर में राक्षसी कर्म कराते हैं और दूसरी तरफ हिंदू होने का दावा भी करते हैं। हमारा अभियान तो अनूप स्वामी और हरिचंद सोनी जी महाराज ने लगभग सवा सौ साल पहले शुरू करा था जो सम्पूर्ण मानव जाति के हित में है सो हम इसे जारी रखेंगे और जैनियों की माया भरे पाखंड का पर्दाफाश करते रहेंगे कि किस तरह ये हिंदुओं में घुस कर नाश कर रहे हैं। शेष फिर..... प्रतीक्षा करिये
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

dr amit jain ने कहा…

@ अब आप सब देखियेगा कि काफ़ी समय तक न तो अमित जैन और न ही महावीर सेमलानी सांस लेंगे, चुप्पी साध लेने की राक्षसी कुटिलता देखियेगा।

भाई मेरी सास को कोई मार दो बड़ी परेशा करती है , यारो घुट रही थी इस लिए तो बोल पड़ा ..........:)

दीनबन्धु ने कहा…

बात सचमुच उलझती जा रही है अब संजय बेंगाणी जी इस चपेट में है जो कि जैन होने के बाद भी खुद को हिंदू मानते हैं जबकि सारे जैन मुनि भगवान राम के नाम पर और वेदों के नाम पर जुलाब करने लगते हैं। भाई जैन परंपराओं से भी कहीं न कहीं सहमति रखते हैं लेकिन संजय जी संथारा वाली पोस्ट में इतने ढेर सारे प्रश्नवाचक चिन्हों का रहस्य नहीं खुला। मैं आपको अक्सर पढ़ता हूं पर ऐसा पहले कभी नहीं देखा, संभव है पहले भी कभी करा हो लेकिन रहस्य क्या है ये न बताया।
मुझे पक्का यकीन है कि महावीर सेमलानी भड़ास पर नहीं आएंगे क्योंकि उनसे करा गया सवाल अब तक अनुत्तरित है, बहुत संभव है कि साहस जुटा लें आने का लेकिन करे गए शुरूआती सवाल पर लीपापोती ही करेंगे; देखते हैं कितना साहस और सत्यता है इस धर्म के वकील में.....
जय जय भड़ास

anandkrjain ने कहा…

aap sabhi ko meri taraf se namaskar.

mene yeh blog para aur jana ki log kaise kaise comment jainism par kar rahe hai.

sabse pehle me yeh batana chahata hoo ki jin bhai logo ne kaha ki jain log rakshas hote hai aur unhe rakshas kehalwane me koi parsani nahi hai.

me yeh kehna chahta hoo ki unka to dimag hi ghoom gaya hai.

sabse pehle bo jain dharam ke bare me pare samjhe jane tab blog par likhe .

aap bina kisi ko jane samjhe bhala bura nahi keh sakte hai aur na hi itna behuda comment kar sakte hai.

hamare country ke logo ki aisi aauchhi mansikta nahi hai

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