अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना। - प्रदीप सिंह
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अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना सुख का सपना हो जाना भींगी पलकों
का लगना।
13 घंटे पहले


2 टिप्पणियाँ:
वाद-विवाद....
गुड़-गोबर...
गुड़ का अपनी जगह महत्त्व है और गोबर का अपनी जगह लेकिन स्थान बदल जाने से व्यक्तियों और वस्तुओं की उपयोगिता शून्य हो जाती है।
हम भड़ासी गुड़ को खाने और गोबर को लीपने में प्रयोग करते हैं अगर गुड़ को लीपने और गोबर को खाने में प्रयोग करने लगेंगे तो फिर आप समझ सकते हैं कि भड़ास का दर्शन खतरे में आ जाएगा।
जय जय भड़ास
जी आप की बातो से पूर्ण सहमत हु
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