लो क सं घ र्ष !: कलिकाल तमस का प्रहरी...

गुरुवार, 27 अगस्त 2009



मानवता , करुणा, आशा,
विश्वाश, भक्ति , अभिलाषा
अनुरक्ति, दया, सज्जनता,
चेरी है शान्ति , पिपासा

कलिकाल तमस का प्रहरी,
नित गहराता जाता है
मानव सदगुण को प्रतिपल,
कुछ क्षीण बना जाता है

आहुति का भाग्य अनल है,
है पूर्ण स्वयं जलने में
परहित उत्सर्ग अकिंचन,
अप्रति हटी गति जलने में

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

0 टिप्पणियाँ:

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP