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इसके विशाल पैरो में
मानव का आत्म समर्पण।
भावना विनाशी का क्रंदन
लघुतम जीवन का अर्पण ॥
घर काल जयी आडम्बर,
इस नील निलय के नीचे ।
भव विभव पराभव संचित,
लालसा कसक को भींचे ॥
निज का यह भ्रम विस्तृत है ,
है जन्म मरण के ऊपर।
यह महा शक्ति बांधे है,
युग कल्प और मनवंतर ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
© भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८
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