प्रणव रॉय, एन डी टी वी, ख़बर या फरमाइश.
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
टी वी पत्रकारिता के भीष्म हैं प्रनॉय इन्होने अपने खबरिया चैनल पर बाजारवाद हावी नही होने दिया ( एक समय तक) मगर कालांतर में एन डी टी वी बाजारवाद के चपेट में आने से नही बचा। आज जब लोग ख़बर को तरसते हैं क्यूँकी बाजार की भीड़ में ख़बर को बेचने के लिए सभी लाला जी लोगों ने मीडिया की कमान अपने हाथों में ले ली है तो पत्रकारिता के बाजार में भला एक पत्रकार क्यूँ पीछे रहे ?
ख़बर के बजाय राखी सावंत का रोना हसना बच्चे खिलाना, से लेकर एक नजर तस्वीर पर जहाँ एन डी टी वी के दो टकिया पत्रकार की फरमाइश और गाने का कार्यक्रम शुरू।
निकम्मे पत्रकारों की अग्रणी सूची में शामिल विनोद दुआ के पेट पूजा को समाचार के रूप में देख कर लोग त्रस्त ही थे की प्रनॉय का नया धम चिक धम यानी की ख़बर के बजाय गाने सुनिए।
जय हो जय हो
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
दूरदर्शन के पचासवें वर्ष में चैनल्स का श्रादध्
अग्नि बच्चा,ये जनाब क्या करें जब सारे लोग नचनिया गवइया लोगों को ही देखना सुनना चाहते हैं तो क्या ये देश की अन्य खबरें दिखा कर चैनल बंद करवा लें? जो बिकता है वो दिखता है की तर्ज़ पर दिखा रहें हैं, बेचारे लाचार और मजबूर पत्रकारिता के प्रतिनिधि हैं जो कि भांड-मिरासियों के मनोरंजन के आगे घुटने टेक चुकी है। बाजार में बैठे लालाओं के आगे रिरिया रहे हैं, खबरें कोठे पर नाच रही हैं और पत्रकार तबलची बने हुए हैं। दिमाग सन्ना रहा है। याद है जे.पी. ने कहा था....
नाचो खूब नचाओ रम्भा
चोंथो-चोथो चौथा खम्भा
जय जय भड़ास
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