हिन्दी दिवस पर विशेष....

सोमवार, 14 सितंबर 2009

मिनी यादव अलीगढ की हैं, भारत के सर्वोच्च सेवा की तैयारी करती हैं, उन्होंने हिन्दी दिवस पर ही मेल से ये कविता उपलब्ध कराया की इसे भड़ास प्रकाशित करे।
मिनी जी का आभार और शुभकामना।
सिसकती सी हिन्दी

जिनकी यह भाषा वही इसको भूले ,

कि हिंदी यहाँ बेअसर हो रही है ।

हिंदी दिवस पर ही हिंदी की पूजा ,

इसे देख हिंदी बहुत रो रही है।

हर एक देश की भाषा है अपनी ,

उसे देशवासी है सर पर बिठाते ,

मगर कैसी निरपेक्षता अपने घर में ,

हम अपनी ज़ुबा को स्वयं भूल जाते।

मिला सिर्फ एक दिन ही पूरे बरस में ,

यह हिंदी की क्या दुर्दशा हो रही है ।

कि जिसके लिए खून इतने बहाए,

जवानों ने अपने गले भी कटवाए ,

कि जिसके लिए सरज़मी लाल कर दी ,

जवानी भी पुरखो ने पामाल कर दी ।

तड़पते थे कहने को हम जिसको अपनी ,

वही हिंदी भाषा कहाँ खो रही है।

यही देख हिंदी दुखी हो रही है ,

यह भारत कि जनता कहाँ सो रही है।

यही देख हिंदी दुखी हो रही है ,

यह भारत कि जनता कहाँ सो रही है।

जय हिंद जय

लेखक :- अज्ञात


0 टिप्पणियाँ:

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP