अरुणा राय, एक महत्वाकांक्षा. हकीकत नही चर्चा हो.

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

कल का दिन मानसिक और वैचारिक ऊहापोह भड़ा रहा कारण फेसबुक पर एक चर्चा जिसे सामूहिक रूप से मान्यता देने की कोशिश सभी तथाकथित बुद्धिजीवी ने की। हम ठहरे भड़ासी सो बस सच्चाई और सामजिक सरोकार के अलावे कुछ सूझता ही नही सो अपनी भड़ास उगल आए मगर फस्बूक पर भी क्षद्म लोगों की जमात ने अपनी क्षद्मता जारी रखी।

एक ब्लोगर, हिन्दी लेखिका, और स्वयम्भू कवियत्री होने के साथ साथ उत्तर प्रदेश पुलिस में पदाधिकारी ( जैसा की प्रोफाइल में लिखा है ) हैं सुश्री अरुणा राय। विवाद को तेज हवा इन्होने ही दी सो इनसे ही शुरुआत करता हूँ।

इनके प्रोफाइल से विवाद की शुरुआत हुई तो लिखने से पहले सोचा की कुछ तलाश कर लिया जाय, फेसबुक पर तलाश करने पर इनके कई प्रोफाइल मिले जो अपने आप में स्वयम्भू लेकिका को संदिग्ध बना देता है। आप नीचे तस्वीरों में देख सकते हैं।


एक लेखिका कई प्रोफाइल कुछ तो गड़बड़ है

तलाश के दौरान इनको तलाशते हुए चिट्ठाजगत जगत पर भी मुंह मार आया जहाँ इनके ब्लॉग की सूचि मिली, ब्लॉग को तलाशते हुए जब इनके ब्लॉग पर जाने लगा तो......


चिट्ठाजगत पर ब्लॉग उपस्थित.....

इनका ब्लॉग ब्लोगर से नदारद मिला, कुछ समझ में नही आया की ये क्या चक्कर है। खैर तलाश मेरी जारी थी की फस्बूक पर कुछ मित्रों से बातचीत के दौरान (बताता चलूँ की महिला मित्र ) ने बताया की अरुणा जी के प्रोफाइल पर कुछ विवाद है सो मैं जा के टिप्पणी कर आऊं, मैंने जवाब में उन्हें पुरी बात बताई तो बड़ा चौंकने और चौंकाने वाला जवाब मिला। मित्रों ने बताया की उनको अरुणा जी की तरफ़ से मेल आया था की उनको सपोर्ट करें!




मगर ब्लोगर तो माना कर रहा है, क्या गड़बड़ है.........

उलझन
और बढ़ गयी.....


भाई जय प्रकाश मानस की एक सच्चाई जिसके विरोध में लोगों का हुजूम, सच्चाई हजम कहाँ होती है


और तह तक गया तो जो पता चल उसका सार सिर्फ़ इतना कि.........

समीर लाल जी कि प्रतिक्रया, समीर जी कई ब्लॉग आपको ऐसे दिखा सकता हूँ जिसमें सामाजिक अहम् मुद्दे हैं मगर उस मुद्दे पर बोलने वालों का अकाल

उत्तर प्रदेश पुलिस में कार्यरत अरुणा राय पत्रकारों और नेताओं की तरह छपास रोग से ग्रसित हैं, अंतरजाल के बहाने चर्चा में रहना और स्व प्रसंसा सुनने से आनंदित होती हैं, सामाजिक सरोकार से इन्हें कोई सरोकार नही मगर अपने प्रोफाइल में समाज सेवा का स्वांग भी रचती हैं, और जब सामाजिक विषय को इनके सामने रखा जता है तो ये बड़ी सफाई से उस विषय की ही सफाई कर जाती हैं।

सबसे चौंकाने वाली बात तो तब आयी जब चिट्ठाजगत वाले समीर लाल भी बाकायदा अपने ब्लॉग के साथ हाजिर हो गए, विषय को विषयांतर किया और अपने ब्लॉग के टिप्पणियों की बात कह मुद्दे को घुमाने का भरसक प्रयास किया।

बताता चलूँ की एक महिला ब्लोगर के दंभ पर मुझे एक पोस्ट डालना था कुछ महिलाओं से ही सलाह मशविरा किया तो सभी का एक स्वर में कहना था कि "मत लिखो महिला है, लोग तुम्हारे पीछे पड़ जायेगे" फ़िर भी मेरा मन न डोला और इस बार के मुद्दे ने तो मजबूती दी है कि आने वाले दिनों में तमाम क्षद्म लोगों कि हकीकत को बयां कर जाऊं।

भड़ास का भड़ास भड़ास जारी रहेगा।

जय जय भड़ास

22 टिप्पणियाँ:

Kusum Thakur ने कहा…

मैंने जब ब्लॉग में लिखना शुरू किया तब यही सोची कि यह एक अच्छा माध्यम है अपने विचारों
को लोगों के सामने रखने का । मुझे यह पता नहीं था कि भारत का कोई भी कोना राजनीति से परे
नहीं रह सकता ।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

रजनीश भाई हमें तो ज्यादा अकल है नहीं लेकिन ठरकी लोग सच है कि लड़कियो के ब्लाग पर लार टपकाते टिप्पणी देने दिन में बीस बार जाते हैं। जय प्रकाश जी ने लिखा तो समीर लाल लिख रहे हैं कि मेरे ब्लाग पर भी लोग टिप्पणियां देते हैं जबकि वे लड़की नहीं है। कितना भोलापन है उड़नतश्तरी वाले समीर लाल में। मैं बताता हूं कि उनके ब्लाग पर जो लोग टिप्पणी करने जाते हैं उनमें से अधिकांश समीर लाल को उड़नतश्तरी से आया "परग्रहीय प्राणी एलियन" समझ कर करते हैं।
@कुसुम बहन
बहन ये (कु)राजनीति भड़ास पर नहीं चल पाती इसलिये भड़ास पर न्यूनतम टिप्पणियां आती हैं और वही लोग आ पाते हैं जो निष्पक्ष भाव निर्भीक होकर लिख पाते हैं।
भाई रजनीश आप एक बात तो स्वीकारते हैं कि भड़ास लिंगभेद को कब का जय कर चुका है वरना हमारे साथ मनीषा दीदी,भूमिका,टीना,रम्भा अक्का,दिव्या,देवी आदि जैसे लैंगिक विकलांग न होते जिन्हें दुनिया हिजड़ा कह कर नकार चुकी है।
आप महिला-पुरुष का विचार करेंगे तो फिर चकरा जाएंगे क्योंकि याद है न यशवंत सिंह जैसे लोग भी "गंदी लड़की" नाम से प्रोफ़ाइल बना कर ब्लाग बनाते हैं पता नहीं क्या कुत्सित विचार रहता होगा ऐसे लोगों के मन में....
जय जय भड़ास

K.Tarun Singh ने कहा…

Ahhh, Rajnishji My friend, least we dont expect such things from an intellectual person like yourself. We have a lot of expectations from you Rajnish Bhai as I find you as a truth commentrator of Dirty Indian Politics.
Rajnish ji please dont comment on ladies as You say, it seems to be a fake profile and unnecessary you will create an absurding issue over here which wont suit your level of profile

vandana gupta ने कहा…

had hai ............har jagah rajniti apne ghinone swaroop ke sath chha jati hai.

अजेय ने कहा…

ये हमारा छ्द्म !


ये आत्म प्रश्ंसा का सुख !


ये आत्म रति !


उन्हे निकाल लेने दो न अपनी भड़ास, हम अपना काम गम्भीरता से करें. बस्स....

Ratna ने कहा…

Some of you have commented that female profiles/bloggers attract more comments.
This does not happen with intellectually sound minds. Only immmature people look at the gender of the blogger. Mature people go on the content.

But yes, how many of us are mature?

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा ने कहा…

@Ratna
क्या आपने ऐसा भड़ास पर पढ़ा कि हममें से कोई भी लिंगभेद की बात करता है या औरत-मर्द का वर्गीकरण करके उसकी बात को मापता दिखा? आप शायद भूल रही हैं कि ब्लागर कहीं दूसरी दुनिया से आए प्राणी नहीं है बल्कि वह ही लोग हैं जो हमारे आसपास रहते हैं। भड़ास वो मंच है जहां मेरे जैसे सामाजिक बहिष्कार से जूझते इंसान को अभिव्यक्ति करने का मौका और भरपूर आदर व प्यार मिला है।
जय जय भड़ास

अनिल जनविजय ने कहा…

मुझे लगता है कि यदि जयप्रकाश मानस ने अरुणा राय की कवितायें सचमुच पढ़ी होतीं तो वे गलत बातें नहीं लिखते और यह बेसुरा विवाद भी नहीं उठ खडा होता।

अनिल जनविजय ने कहा…

मुझे लगता है कि यदि जयप्रकाश मानस ने अरुणा राय की कविताएँ सचमुच पढ़ी होतीं तो वे इस तरह की नालायक टिप्पणी नहीं करते और यह बेसुरा विवाद भी न उठ खड़ा होता।

Surendra Verma ने कहा…

हमारे देश में भड़ास (अभिव्यक्ति) की आजादी है...लेकिन आज़ादी का अर्थ स्वच्छंदता नहीं है..और उच्छ्रिन्खलता तो कतई नहीं है...
बहस होनी चाहिए लेकिन अज्ञानजनित पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर नहीं...so pl mind it...

Unknown ने कहा…

रजनीश जी, आप ने कितना भड़ास लिखा है। उस पर कुछ बातें सच नहीं हैं। सच है कि अरुणा राय मुझसे जय प्रकाश मानस के पोस्ट के बारे में लिखा लेकिन सपोर्ट न माँगा। मैं विश्वास करता हूँ कि जब जो कोई किसी भी को गालियाँ देता है तो मुझे उनकी मदद देनी है। मेरी मातृभाषा चेक भाषा है, मेरी हिंदी इतनी अच्छी नहीं है। फिर भी मैं रोज़ शब्दकोश में देख अरुणा राय के पोस्ट बड़ी खुशी से पढ़ता हूँ। मैं तो जानता हूँ कि जो कुछ अरुणा जी लिखती वह पढ़ने के लायक़ है। किंतु आप ने इनकी कविताओं के बारे में कुछ नहीं लिखा। आप ने उनके फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल के बारे में झूठी बातें ही लिखीं। याद रखें कि फ़ेसबुक कम्पनी का जाल पन्ना नहीं है। यह जीवित वस्तु है। हर प्रोफ़ाइल रोज़ बदल सकता है। फ़ेसबुक web 2 application होता है जिसका मुद्दा है कि लोग जो कुछ रोज़ बदल सकें। अगली बार तो लिखने से पहले कुछ और ज़रा पढ़ें। अरुणा राय सुंदर कविताएँ लिखती हैं। अगर व्यस्त होकर वे कुछ नहीं लिखती तो मैं ज़रा उदास हूँ परन्तु अब मैं बहुत उदास हूँ क्योंकि कुछ पुरुष उन्हें गालियाँ देते रहते हैं। आप भी उन्हें गालियाँ देना चाहते हैं क्या?

बेनामी ने कहा…

Dear Rajneesh...
Try to look within yourself...you represent the men's category of pack of wolf who will not spare a respected girl or woman because she is smarter than you.

Who gives you the authority to tarnish a woman's respect and integrity. If she makes a complaint to National Commission for Woman you will be in jeopardy.

Nevertheless who the hell are you to think that you are a smart man...

what are your credentials...???
hell look your face in the mirror you will certainly recognize yourself.

and if you are a son of your own father dare to keep this post alive. Dont delete it. Deletion will confirm that your father was in fact your next door neighbor.

with love n regards
Niyati Shah

surendra ने कहा…

एक बार फिर भाषा गाली गलौज की हो रही है..जो बिलकुल अच्छी नहीं लग रही...लेकिन इसके लिये पूरी तरह से रजनीश ही जिम्मेदार है,क्योंकि उसने बिना सच्चाई जाने अनावश्यक और ईर्ष्यालु प्रकृति की अपनी मानसिकता का परिचय भड़ास पर दिया है..अभी भी वक़्त है अपने आपको सुधारने का..क्योंकि लौटना भी सफ़र का हिस्सा होता है..

बेनामी ने कहा…

@ K.Tarun Singh
भाई आप खुद कह रहे हैं कि मैं यथार्थ कि कमेंट्री करता हूँ , तो आपने कैसे मान लिय कि मैं सिर्फ आरोप या विवाद के मद्दे किसी महिला को प्रताडित कर रहा हूँ. और हाँ सामजिक मुद्दे महिला पुरुष से इतर सिर्फ और सिर्फ सामजिक होते हैं हमें उसे आत्मसात करना चाहिए, अगर जाय प्रकाश मानस ने कुछ कहा और वो सामजिक बुरे है तो उसे स्वीकार कर उसके निवारण के लिए हाथ मिला कर दूर करना होगा.
@ Ratna
रत्ना जी आपने सही कहा कितने प्रतिशत लोग मैच्योर हैं, मगर सिर्फ इतना कह देने से काम नहीं चल जाएगा, जो कमी है उसे हमें मिलकर ही दूर करना होगा. वैसे मनीषा दीदी के जवाब से शायद ही आप संतुष्ट हों क्यूंकि सच वो भी बयाँ कर रही हैं.
@ जनविजय
जनविजय जी जयप्रकाश जी ने पढ़ा या नहीं पढ़ा ये मुद्दा ही नहीं है, या फिर आप भी अरुणा जी कि तरह मुद्दे को भटकना चाहते हैं, वस्तुतः: ये एक सामजिक मुद्दा है जिसका उत्तर व्यक्तिगत नहीं हो सकता. आज अगर लोग डाक्टर राजेन्द्र यादव के साहित्यीक स्तर पर अपना विरोध जताते हैं तो अरुणा जी को भी इसके लिए तैयार रहना होगा, क्यूँकी अभी तो आलोचना के रण में उन्होंने कदम ही रखा है.
@Surendra Verma
भाई सुरेन्द्र, सामजिक मुद्दे पर कोई पूर्वाग्रह नहीं, और भड़ास इस तरह के व्यक्तिगत गृह उपग्रह से कोसो परे है, बात मुद्दे की ही है जिसे अरुणा ने बड़ी चालाकी से मोड़ कर एक विवाद का रूप दिया है, हम अब भी अरुणा के ना ही पक्ष में हैं ना ही विरोध में मगर सामजिक मुद्दे तो हैं नहीं तो इतने सारे लोग काँव काँव नहीं करते.
@Zdenek
मित्रवर, सबसे पहले आपको सहस्र बधाई और शुभकामना. आपकी हिंदी प्रेम के आगे हम नतमस्तक हैं.
आपने खुद लिखा है कि आपको लिखा था, यानी कि आप उस कड़ी के एक सूत्र थे. हमने y
ए नहीं कहा कि अरुणा जी की लेखनी कैसी है और मानस जी ने भी ये नहीं कहा, एक सामूहिक आचरण पर उन्होंने अपने मंतव्य रखे जिसे चतुरता से व्यक्तिगत जामा पहनाया गया.
आप अरुणा जी के प्रशंशक हैं और हम उसका सम्मान करते हैं. आप दुखी ना हों हमने ना ही उन्हें गाली दी है और ना ही देंगे, हाँ सामाजिक और सामूहिक मुद्दे पर भड़ास हमेशा चीखता रहा है और चीखता रहेगा..
@ Lalit
मित्र ललित ऊपर के प्रतिक्रया से शायद आपको जवाब मिल गया हो, कोई भी जो अंतरजाल पर हिंदी लिखता है हम उसका सम्मान करते हैं क्यूँकी हम हिंदी को प्रेम करते हैं, और हाँ सामाजिक सरोकार को अस्वीकार ना करें मुद्दे का समाधान निकालें.
@ Anonymous
नियती जी एक तो आपने गुमनाम होकर प्रतिक्रया दिया जिसपर भड़ास कभी बात चीत को आगे नहीं बढ़ता क्यूंकि अनाम गुमनाम बेनाम कि उपस्थिति को ही हम नकारते हैं. खैर आपने बहुत कुछ लिखा सिर्फ इतना बताता चलूँ कि एक पुरुष होने के बावजूद महिला की श्रेष्ठता से मैं इनकार नहीं करता ( पुरुष का दंभ इसे स्वीकार नहीं करता) , चलिए आपकी धमकी को देखते हुए उसे भी हम स्वीकार करते हैं, और आपकी बेनामी को भी. रही बात भाषा की तो आपने अपने भाषा में अपनी, अपने पिता कि अपने परिवार कि असलियत से सबको वाकिफ करा दिया है.

आपकी आगे की कारवाई का हम इन्तेजार कर रहे हैं.
@surendra
भाई सुरेन्द्र,
आप जिम्मेदारी मेरे ऊपर थोप सकते हैं मैं इसे आत्मसात कर रहा हूँ मगर इसके बावजूद सामाजिक मुद्दे पर भड़ास निकलते रहेंगे और समाज के क्षद्म रूपों पर भड़ास लिखता रहेगा.
बाकी आपने मेरी प्रकृति पर भी प्रतिक्रया दी है जो कि आपने जानने के बाद दी होगी ;-)

अगले लेख का इन्तजार कीजिये.........

बेनामी ने कहा…

जो भी अरुणा का एक रूप उभर कर आया है कि अभी जु्म्मा जुम्मा दस बीस कविता नहीं लिखा है और ऊपर से इतना गुरूर । फिर मूल कमेन्ट्स तो कविता पर है ही नहीं । एक परिचित मित्र का परिचित मित्र यानी एक समूह के दूसरे को एक टिप्पणी भी है । इसे सहज में भी लिया जा सकता था । जो मनुष्य की प्रकृति से संबंधित है । न कि कविता पर । फिर मैंने यह भी पढ़ा है टिप्पणीबाजों की टिप्पणियों में कि वे अर्थात् जयप्रकाश मानस तो उन्हें अपनी चर्चित पत्रिका में भी छाप चुके हैं फिर वे कह भी नहीं रहे हैं कि उन्हें अरुणा देवी की कविता पसंद ही नहीं है । वे तो उन्हें बाकायादा छाप चुके हैं । फिर कहाँ पुरुष द्वारा महिला लेखक को नापंसद करने का सवाल ।

रहा सवाल इसका तो किसी भी कवि की हर कविता ऐसी नहीं होती कि उसकी भी तारीफ़ की जाये । अरुणा या किसी भी कवि की कविता कितनी अच्छी है इसका निर्णय पाठक ही नहीं सुधी संपादक और आलोचक भी करते हैं । और सारे टिप्पणी बाज आलोचक नहीं है । कवि नहीं है । संपादक नहीं है ।

अनिल जनविजय कवि होकर भी मूर्ख टिप्पणी करते हैं यह ताज्जूब है कि दूसरे कवि को नालायक कहते हैं । यानी कहीं यह मानस के खिलाफ़ आग उगलने का छद्म प्रयास तो नहीं है कि किसी महिला या पुरुष के पक्ष में जाने के प्रश्न पर महिला के साथ जायें । क्योंकि दोनों हिन्दी के अच्छे कवि हैं । दोनों का काम साहित्य का है ।

मुझे तो यह भी लगता है कि कहीं ये मानस और अरुणा जानबूझकर तो ऐसा किसी रणनीति के तहत न कर रहे हों । क्योंकि दोनों पुलिसवाले हैं । सुना है मैंने । और हम लोगों को यहाँ व्यर्थ चर्चा हेतु घेर रखे हैं । यह भी पता लगाना चाहिए । और इस मुद्दे को यहीं विराम देना चाहिए ।

क्योंकि मानस का कहना भी सही है । और अन्य पुरुषों का कहना भी ठीक है । हर किसी की दृष्टि होती है चीजों को देखने की । हम व्यर्थ अपने विचार, दृष्टिकोण को लादे फिरते रहते हैं । अपडूडेट और उदार होना भी समयोचित है । जो दूसरों को नहीं स्वीकार पाता वह फासिस्ट हो जाता है । सिर्फ विरोध करना ही गैर फासिस्ट होना नहीं होता । बाकी बाद में । अब बंद करें यह सब नाटक ।

पुलिस पुलिस तो नहीं । चोर चोर मौसेरे भाई । भाई नही तो भाई बहन ।


डॉ. बलदेव वर्मा
नागपुर, महाराष्ट्र

बेनामी ने कहा…

Dear Rajneesh...
have some shame in your eyes...you too have come out from a womb of a woman..must be your mother...
learn to respect woman...
if u can not do that get ready tobe doomed...
trust me..or if u have enough intelligence to understand kindly read the history...
i hope u never repeat the mistake again...

and nobody is interested to sue you...what you have .....to sue you...

anyway regards


niyati shah

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

रजनीश भाई आप क्यों इन भेड़चाल समर्थकों को महत्त्व दे रहे हैं। इन्हें मूल बात न दिख कर औरत दिख रही है। असल में इनकी आंखों पर गुलाबी चश्मा चढ़ा रहता है तो पूरी पोस्ट में बस स्त्री ही हाईलाइटेड दिखेगी। बेनामियों की क्या परवाह करना उसकी तो नियति यही है कि वह अपने बाप का नाम न बताना पड़े इसलिये गुमनाम अनाम बेनाम रह कर कमेंट करते हैं
जय जय भड़ास

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

अरे ए बेनाम बेवकूफ़!! जो बेनाम होकर लिख रही है अगर तू लड़की है और तेरा कुछ नाम है तो सामने आ और रजनीश भाई जैसे इंसान के लिये जो तू लिख रही है इससे पता चलता है कि तू उनके बारे में कुछ जानती ही नहीं। कुलच्छिनी तुझे मैं सामने आने के लिये ललकारती हूं कि आ और स्त्री विमर्श पर चर्चा कर
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

विंध्वसकों को तसल्ली मिली होगी ये सब बोल बोल के,लेकिन जनविजय जी ने ठीक कहा है,रविंद्रनाथ टैगोर की कुछ कविताओं को छूती है अरुणा जी की कविताएं ,सिर्फ गलत बात लिख देने से बात सही नहीं हो जाती ,जितनी उचाई अरुणा जी ने छू ली है इतने कम समय उसकी बात की जाए न की गालियों से खुद की कुंठा मिटाई जाए! क्षमायोग्य कृत्य नहीं है मुनव्वर जी का, ये भाषा ऐसी बोल रही है जैसे कोई सास पागल हो जाये ,साहित्य ऐसी बात की अनुमति नहीं देता, Zdenek हम आपके साथ है !रजनीश जी इसे आलोचना नहीं कहते ,इसे खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे कहते है !आपने बड़ी ही मक्कारी से बातो को कहा से कहा घुमा दिया !रजनीश की कुंठा और अपरिपक्वता साफ़ दिख रही है ! जब तक भडास अपनी भडास निकालेगा तब तक नियति शाह जी भी अपनी भडास निकालने के लिए स्वतंत्र है !जय जय शुभ वचन

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

@Anonymous
प्रिय आप कौन हैं जो सामने आने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं, समर्थन और विरोध का ये स्वरूप भड़ास पर स्वीकारा नहीं गया है क्योंकि हमारा मानना है कि जो करा जाए वह अगर सामने आकर नहीं करा तो मन कुंठित ही रहता है। अरुणा जी की ऊंचाईयां निःसंदेह साधुवाद के योग्य हैं इसमें भला क्या आपत्ति लेकिन बात उनकी साहित्यिक उच्चता की नहीं है आप बार बार इस बात को स्वयं मोड़ रहे हैं(क्षमा करें आप स्त्री हैं या पुरुष अथवा लैंगिक विकलांग, इसलिये समुचित आदर सूचक शब्द प्रयोग करने में अड़चन है आप स्वयं ही समझ लें)। आप भाई रजनीश को मक्कार,कुंठित और अपरिपक्व कहें या मुनव्वर आपा को पागल सास जैसी असाहित्यिक भाषा बोलने वाली किन्तु क्या आपने भड़ास का दर्शन नहीं समझा? दिल दिमाग में अटकी बात को निकाल देने से मन निर्मल हो जाता है ये तो एक आग्नेय रचनात्मक दर्शन है जो तपिश से डरते हैं वे भड़ास में खुल कर नहीं आ पाते। यदि आप भाई रजनीश या मुनव्वर आपा को कोस रहे/रही हैं तो सामने आइये ताकि आपके मन की कुंठाएं ही निकल सकें और चित्त निर्मल हो जाए। आप आलोचना और निंदा में भ्रमित हो रहे/रही हैं। नियति शाह हो या कोई अन्य सामने आकर भड़ास निकालने के लिये सचमुच भड़ास के लोकतांत्रिक मंच पर पूर्णतया स्वतंत्र है। यही वह मंच है जिसपर लोग माडरेटर से भी असहमत होने पर उसे गालियां देते हैं और प्रकाशित करी जाती हैं लेकिन नाम सहित गाली दें बेनामी नहीं। हम दोनो माडरेटर भाई रजनीश और स्वयं मैं कई बार लोगों की भड़ास और आलोचना को शिरोधार्य कर चुके हैं ताकि वे निर्मल मन से हमसे जुड़ सकें और गिले-शिकवे दूर हो जाएं।
सादर
जय जय भड़ास

दीनबन्धु ने कहा…

अरे ए बेनाम मूर्ख/मूर्खा, मैं क्या पागल ससुर या जेठ दिखूंगा तुझे है न? तुझसे किसने कह दिया कि हम भड़ासी तुम जैसे चोंचलेबाज,बौद्धिक और साहित्यकार हैं हम तो गरियाते हैं मन की कुंठाएं निकालते हैं और फिर अपने काम में लग जाते है और तुम जैसे लोग साहित्य के कीचड़ में सुअरलोटन करते हो। हम रहते हैं वास्तविकता के कठिन धरातल पर, तुम्हारी तरह मुंह नहीं छिपाते खुल कर सामने आते हैं। अरुणा के लिए तेरे मन में बड़ी करुणा है क्या बात है??? ये साले डरपोक,चूतिये बेनामियों के कमेंट मेहरबानी करके भाई रजनीश और डा.साह्ब न प्रकाशित करें जब तक ये खुल कर न आएं ये निवेदन है।
जय जय भड़ास

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