एक नयी पत्रकार की पहली डांट.

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

नीतू पाण्डेय पत्रकार हैं, नए होने के अनुभव से गुजर रही हैं और नवीन ब्लोगर भी हैं
अपने ब्लॉग पर उन्होंने कुछ अनुभव साझा करने के साथ ब्लॉग जगत में कदम रखा है.
नीतू के ही शब्दों में........


4 -5 सितबंर का दिन शायद ही मैं जिंदगी में भुला पाउंगी , क्योंकि इसी दिन मैंने अपने कर्मभूमी का दूसरा पाठ पढ़ा। मेरे कर्मभूमी में काम करते हुए एक साल हो गये॥। मैं इस बात पर इतराती थी की मुझे कभी डांट नहीं पड़ी क्योंकि कभी मैंने ब्लडर मिस्टेक नहीं किया था। मैंने ये भी सोचा था कि जब तक मैं महुआ में काम करती रहूंगी तो किसी तरह की गलती नहीं करूंगीं। लेकिन मेरी ये सोच कामयाब नहीं हो पायी। मैं ने एक ग़लती की और वो ग़लती थी जरूरत से ज्यादा सीनियरों से नजदीकी जिसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ा। बात ये हैं , दोस्तों की मैं सीनियर की लाडली ।मेरी मेहनत की तारीफ़ करते थे मैं कभी कभी 12 घंटो से भी ज्यादा काम करती बिना कुछ बोले चुपचाप। लेकिन जब मैं अपने लिए थोड़ी से आवाज़ उठाने लगी तो मैं अपने सीनियरों की नज़रों में चुभने लगी, कल जो बात मैं उन्हें मज़ाक में कहा था और वहीं बात उन्होंने मजाक में लिया था वहीं बात उन्हें आज बतमीजी लगी,और इस बतमीजी की सज़ा मुझे मिली मुझे काफी कुछ सुनाया गया। उसमें से कुछ बातें जो बेबुनियाद थी उसके लिए भी सुनाया गया। एक साल से मुझे शनिवार का हिसाब नहीं देना होता था उस दिन मुझसे हिसाब मांगा गया कि मैं उस दिन क्या-क्या किया। ये दो दिन मैं कर्मभूमी में डांट सुन कर खूब रोयी। मैं रोना नहीं चाहती थी पर आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे ...इस डांट ने मुझे एक चीज तो सिखाया ही की कभी भी सीनियर से रिश्ते मत रखों। प्रोफेशनली रिलेशनशीप मेंटेन करना मैं ने इस डांट से सिखा।

हां, एक और चीज जब से मैं इस महुआ न्यूज़ में काम कर रही थी तब से अपने-आप को सीनियर के नजरों में बच्ची ही समझती थी। लेकिन इस दिन मुझे बता चला कि मैं बच्ची नहीं एक जवान लड़की हूं। जब मैंने अपने एक सीनियर से कहा कि सर मैं तो आपलोगों को पैरेंटस की तरह मानती हूं तो जवाब में मुझे सुनने को मिला मेरी तो अभी चार महिने की बच्ची हैं मैं कैसे तुम्हारे पिता की तरह हो सकता हूं। ये सुनकर मेरा वो भ्रम टूट गया जो मैंने पाल रखे थे। ये मीडिया लाइन की मेरी प्रथम पाठशाला की शिक्षा था। मैंने जब मीडिया लाइन को चुना था तो मुझे पता था कि आगे बढ़ना हैं तो मेहनत करों लेकिन मेहनत और अच्छे का काम का यहां कोई मतलब नहीं कोई आपकी यहां तारीफ नहीं करने जायेगा, बल्कि एक छोटी सी ग़लती पर आप की तो ऐसी क्लास लगाई जायेगी कि पूछिए मत।

मैं ये नहीं कहती की मीडिया लाइन में सभी लोग ऐसे ही होते है और मैं ये भी नहीं कह रही की जिस सीनियर ने मुझे डाटा वो बुरे हैं...लेकिन मुझे डांट पड़ी जिसके कारण मैं ये लिख रही हूं। ये डांट मुझे कुछ सिखाया जो आगे मेरे लिए फायदेमंद भी होगा। जो काम मैं यहां करती थी दूसरे ऑगनाइजेशन में इसे मैं नहीं दोहराउंगी।


साभार :- http://meriduniyaonline.blogspot.com/

2 टिप्पणियाँ:

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

बहन जी आगे और भी डांट पड़ेंगी और बहुत कुछ सीखने को मिलता रहेगा। दूसरी बात कि यदि किसी मीडिया संस्थान में काम कर रही हैं तो एक बात याद रखिए कि आपका ब्लाग लेकन दबाव में ही रहेगा। ज्यादा भावुक होकर किसी सीनियर की कारगुजारियों की अपने ब्लाग पर पोल मत खोल दीजियेगा वरना नौकरी खतरे में आ जाएगी :)
जय जय भड़ास

गुफरान सिद्दीकी ने कहा…

भड़ास में आपका स्वागत है अच्छा लगा आपका अनुभव पढ़ कर और हतोत्साहित होने की तनिक भी आवश्यकता नहीं आखिर रजनीश भाई आपके साथ हैं और दूसरी बात ब्लॉग जगत में जितना सच लिख सकती हैं लिखिए क्योकि यही वो जगह है जहाँ सच लिखने में कोई पाबन्दी नहीं..

आपका हमवतन भाई..गुफरान..अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद,

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