देखो दिल्ली को, यूँ ही बदनाम ना करो !
मंगलवार, 8 सितंबर 2009
पी वी आर अनुपम, साकेत से सिनेमा देख कर वापस आने के लिए सड़क पर आया और ऑटो ढूंढ रहा था मोलभाव कर ही रहा था की एक ऑटो सामने आकर रुकी और एक महिला ऑटो चालक ने पुछा की कहाँ जाना है,
बिना कुछ सवाल जवाब किए , बिना मोल भाव के बैठ गया और बातचीत के साथ रास्ते का सफर शुरू हो गया।
नाम सुनीता चौधरी पहाड़ की सुंदर वादियों को छोड़ जीविका की तलाश में दिल्ली आयीं और ऑटो चलाना शुरू किया, और बा इज्जत दो रोटी का जुगाड़ ऑटो से करती हैं। बातचीत आगे बढ़ा तो इन्होने दिल्ली की असुरक्षा पर बताया कि ये रात के ११ १२ बजे तक ऑटो चलती हैं और छिटपुट घटना जो कि एक ऑटो ड्राइवर के लिए आम है के अलावे इन्हें अभी तक ऎसी कोई परेशानी नही आयी है, दिल्ली ट्राफिक पुलिस के बाबत पूछने पर इन्होने स्पष्ट बताया कि महिला होने या न होने से कोई फर्क नही होता और अगर आप ट्राफिक रुल को तोड़ते हैं तो आपको जुरमाना भरना ही होता है अन्यथा और कोई शिकायत इन्होने नही की।
सुरक्षा और असुरक्षा को लेकर दिल्ली पर हमेशा प्रश्न उठते रहते हैं और इस प्रश्न की आग में घी डालने का काम मीडिया करता रहता है, मगर सुनीता जी से हुई बातों ने मानो दिल्ली के बारे में राय बदलने को मुझे मजबूर किया वरन मुझे लगा कि दिल्ली की हकीकत मैं अनकही के मध्यम से लोगों से साझा करुँ।
सुनीता जी का संदेश कि अपने आप पर भरोसा करें और कायदे का पालन करें तो दिल्ली देश का सबसे सुरक्षित जगह है।
भड़ास इस वीर को सलाम करता है।
3 टिप्पणियाँ:
ham bhi mile he unse..
pl look here
http://yugaantar.blogspot.com/2007/05/blog-post_04.html
सुनीता जी के जज्बे को हमारी तरफ़ से भी सम्मान सलाम
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
सुनीता ही नहीं देश में हर स्त्री को इतना साहस जुटाना होगा कि वह अपनी रोज़ी-रोटी के लिये श्रम कर सके और बाहर निकल सके। सुनीता जी को हम सादर नमन करते हैं
जय जय भड़ास
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