लो क सं घ र्ष !: पिया पैंजनियां

रविवार, 4 अक्तूबर 2009


























अन्नु भरि- भरि गे धानन की बाली मा ,
पिया पैंजनिया लैदे दीवाली मां ।

खैहैं मोहनभोग सोने की थाली मां ,
मोरी लक्ष्मिनियां चमकै दिवाली मां ।

तुम तो खुरपी - कुदरिनि मां ढ़ूंढ़ौ खुशी,
रोजु हमका चिढ़ौती है हमरी सखी,
चाव रहिगा न तनिकौ घरवाली मां ,
पिया पैंजनिया लैदे दीवाली मां ।

हाय जियरा दुखावौ न मोरी धनी,
जड़वाय लियौ मुंदरी मां हीरा कनी,
जगमगाय उठौ बखरी मां गाली मां,
मोरी लक्ष्मिनियां चमकै दिवाली मां ।

झूमि-झूमि उठै धरती मगन आसमां,
खूब फूलै फलै देश आपन जहाँ,
प्रेम के फल लदै डाली-डाली मां ।

अन्नु भरि- भरि गे धानन की बाली मां,
मोरी लक्ष्मिनियां चमकै दिवाली मां।

-डॉक्टर सुरेश प्रकाश शुक्ल
लखनऊ

1 टिप्पणियाँ:

अजय मोहन ने कहा…

बहुत सुंदर है भाई, मुझे कविता आदि में दिलचस्पी नहीं है ऐसा नहीं पर क्या करूं कुछ वज़नदार पढ़ने को ही नहीं मिलता है। डॉ.शुक्ल को साधुवाद तथा सुमन भाई आप इन सबको घेर कर भड़ास पर लाते हैं इसके लिये आपको भी धन्यवाद
जय जय भड़ास

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