चुनाव पत्र पर " प्रत्याशियों के नाम" के साथ ’इनमें से कोई नहीं’ विकल्प क्यों नहीं है???

सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

चुनाव के बैलेट पेपर पर जाने-पहचाने नाम दिखायी देते हैं। पहले उनके बापों के नाम रहा करते थे अब उनके हैं और कल उनके बेटे-बेटियों के रहने वाले हैं। ये वही कमीने हैं जो पिछले छह दशकों से देश को जोंक की तरह चूस रहे हैं। मैं जब बैलेट पेपर देखता हूं तो लगता है कि इन सबके ऊपर एक जोरदार घूंसा अपने मत का लगा दूं कि मुझे तुममें से कोई भी योग्य नहीं प्रतीत होता है। चुनाव आयोग क्यों नहीं प्रत्याशियों के नाम के साथ ही "इनमें से कोई नहीं" का भी विकल्प उसी पत्र पर रखता? मुझे तो चुनाव आयोग की भूमिका भी बस नाटकीय सी ही प्रतीत होती है। यकीन मानिये कि अधिकांश मतदाताओं को ये विकल्प मालुम ही नहीं हुआ करता कि वे ऐसा भी वोट दे सकते हैं यही तो है लोकतंत्र की आत्मा जिसे इन दुष्टों ने आतंकित कर रखा है। देखिये महाराष्ट्र में चुनाव का क्या परिणाम होता है?
जय जय भड़ास

3 टिप्पणियाँ:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

दीनबंधु भाई,आप देश की हालत समझते हैं न? अधिकतर पढ़े-लिखे लोग मतदान नहीं करते और जो करते हैं उन्हें मजबूरी में जो कम कमीना प्रत्याशी रहता है उसे चुनना पड़ता है। यदि ये विकल्प सीधे सामने रहे तो आप अनुमान नहीं लगा सकते कि चुनाव परिणाम क्या होगा? हजारों लाखों साल में भी कोई स्थिर सरकार न बन पाएगी वोटों का ऐसा विभाजन होगा।
जय जय भड़ास

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

घूँसा मत चलाइए
और सकारात्मक लेख व्दारा पढ़े-लिखों को मतदान करने के लिए प्रोत्साहित कीजिए।

Randhir Singh Suman ने कहा…

चुनाव आयोग की भूमिका भी बस नाटकीय सी ही प्रतीत होती है.saty hai.

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