कलजुग में राम नही बस रावण रावण
सोमवार, 12 अक्तूबर 2009
कलजुग में रामायण नहीं बस रावण-रावणमियां मुसद्ïदी लाल तनतनाये हुये हमारी तरफ ही चले आ रहे थे। आपको बता दूं कि मियां मुसद्ïदी लाल हमारे पड़ोसी हैं और हमारे मुंह लगे मित्र भी। जब कभी भी सुबह के समाचार से उन्हें व्यभिचार, अत्याचार, फर्जी प्रचार या पंचरंगे अचार सा चटपटा करंट लगता है, तब वे सीधे मेरे घर का रुख करते हैं। मैं पेशे से पत्रकार हूं, तो उन्हें लगता है कि जो भी ऊलूल-जूलूल छपता है, उसमें मैं भी किसी न किसी रुप से शामिल रहता हूं, इसलिये बेचारे दनदनाते हुये मेरे पास आते हैं और जहरीली गोलियों सी लखनवी भाषा में खरी-खोटी सुनाकर की दम लेते हैं। यह सब करते हुये उन्हें ऐसा लगता है कि जिस समाचार से इन्हें इतना तगड़ा झटका लगा होता है, मुझसे मिलने के बाद वह कुछ कम हो जाता है। मैं भी क्या करुं? पड़ोसी धर्म निभाना ही पड़ता है और ऐसा हप्ते में दो-चार दिन जरुर होता है। मैं लॉन में बैठा अखबार के पन्ने पलट रहा था, तभी मेरी नजर बाहर वाले गेट की तरफ चली गयी, नजर चली गयी मतलब वहीं पर ठहर गयी। क्योंकि सामने से मियां मुसद्ïदी लाल चले आ रहे थे। मैंने मन ही मन अपने मन को मजबूत किया और श्रीमती जी को आवाज लगायी बम फटने वाला है, तैयारी कर लो। मेरा इशारा आप समझें या न समझें मगर श्रीमती जी मेरा इशारा खूब समझती हैं। मियां मुसद्ïदी लाल की चाल में आज कुछ ज्यादा ही अकड़ नजर आ रही थी क्योंकि वे जब भी गर्दन एक तरफ झुकाकर चलें, तो समझ लिजिये मामला गड़बड़ है। उनके आते ही मैं शिष्टïाचार वश खड़ा हो गया और बोला-सुप्रभात्ï मियां आईये! अस्सलाम वालेकुम करके वे धड़ाम से कुर्सी पर विराजमान हो गये और एक तरफ मुंह करके शायद सोचने लगे कि बात कहां से शुरु की जाये। मैंने उनकी तंद्रा में खलल डाला और बोला- आज मूड कुछ खराब लग रहा है? बस इतना सुनना था कि जैसे उनकी भड़ास बाहर निकलने को बेचैन हो गयी। बोले- अमां पत्रकार की पूंछ, आप लोग चाहते क्या हैं? आखिर क्या चाहते हैं आप? जो जी में आया लिख देंगे, छाप देंगे और सोचेंगे कि इससे लोगों का भला हो जायेगा? एक साथ इतने सारे प्रश्न सुनकर मेरी आशंका और प्रगाढ़ हो गयी कि हो न हो, आज कोई अनहोनी समाचार पढ़ लिया है मियां मुसद्ïदी लाल ने। मैंने खुद को संभालते हुये कहा-मियां मामला क्या है? मुसद्ïदी लाल बोले-अरे हुआ क्या है? कुछ नहीं और अगर आप सोचते हैं कि आप लोगों के लिखने या दिखाने से कुछ हो जायेगा तो यह आपकी भूल है। मैं खामोश रहा। फिर बोले- पता है आपको रावण पर फिल्म बन रही है? वह भी एक नहीं बल्कि कई भाषाओं में? मेरे अंदर जैसे हंसी का गुब्बारा फूट पड़ा हो। हंसी रोके नहीं रुकी और मैं जोर-जोर से हंसने लगा। लेकिन जब मैं हंस रहा था, उस समय मियां मुसद्ïदी लाल के चेहरे पर जो भाव थे, यदि उसे किसी ने शूट कर लिया होता तो शायद अगले ऑस्कर में उसे बेस्ट डाक्यूमेंट्री का अवार्ड तो पक्का मिल गया जाता। उन चंद पलों में मियां मुसद्ïदी लाल के चेहरे पर अनगिनत भाव उभरे थे, वह भी पूरी तरह से नैचुरली। किसी तरह मैंने अपनी हंसी रोकी और उनसे बोला- ये बताईये इससे आपको क्या फर्क पड़ता है, रावण पर फिल्म बनें, सुपनखा पर फिल्म बने या कुंभकरण पर फिल्म बने। मेरी बात पर अचानक गंभीर होते हुये मियां मुसद्ïदी लाल बोले- हूं, बस हो गयी समाज को सुधारने वाली बड़ी-बड़ी बातें। आप पत्रकार लोग क्या खाक समाज को सुधारोगे? अरे रावण पर फिल्म बन रही है और आप लोग हैं कि कह रहें हैं क्या फर्क पड़ेगा इससे, फरक तो पड़ेगा मियां और जरुर पड़ेगा। देखियेगा फिल्म आने के बाद लोग राम को कैसे भूल जाते हैं और रावण-रावण कैसे चिल्लाते हैं। आपको पता है, आज कल तो वैसे भी कोई राम की बात नही कर रहा है, टीवी चैनलों से लेकर अखबार, रेडियो हर जगह रावण चलाया जा रहा है, उसी के गीत बजाये जा रहे हैं। क्या होगा इस नौजवान पीढ़ी का, कभी आपने सोचा है? राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, उनके चरित्र से जीवन सही तरीके से जीने की प्रेरणा मिलती है और रावण! इतना कहते-कहते बेचारे मियां मुसद्ïदी लाल अचानक रुआंसे हो गये। मुझे भी घोर आश्चर्य होने लगा कि मियां, मुसलमान होते हुये भी हिन्दुओं के आराध्य के बारे में इतना कुछ जानते है और उनके लिये इतना दु:खी भी हैं। माहौल गमगीन होने लगा था। तभी श्रीमतीजी ने सही वक्त पर एंट्री मारी, प्लेट में कुछ नमकीन और कप में कम चीनी वाली चाय, जो कि मुसद्ïदी लाल जी की पसंदीदा होती है, को लेकर आ गयी। मैंने माहौल को हल्का बनाते हुये कहा कि- मियां परेशां तो बिल्कुल मत होईये। यह जो भी हो रहा है, होने दीजिये इससे हमारी आपकी आस्था पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है। थोड़ा सा नमकीन मुंह में दबाते हुये मियां बोले- देखा आपने बीजेपी के नेता जसवंत सिंह को बाहर निकाला गया तो वे क्या बोले? मैंने पूछा क्या बोले? उन्होंने कहा कि- वे बोले कि पहले मैं हनुमान था, अब रावण बन गया। यह सब इसी रावण फिल्म वालों का असर है, रावण नाम को इतना पॅापुलर बना दिया कि बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति भी गच्चा खाकर रावण जैसे नाम का उच्चारण करने लगा है। यदि फिल्म नहीं बनती तो वे बोल सकते थे कि मैं पहले हनुमान हुआ करता था, अब मैं बंदर बन गया हूं। रावण तो कभी नहीं बोल पाते। हमारी नयी पीढ़ी भी देखिये इस रावण के आने के बाद क्या-क्या गुल खिलाती। नमकीन अंदर जाने व फीकी वाली चाय पीने से मियां मुसद्ïदी लाल का गुस्सा भी कुछ फीका पडऩे लगा था। अब बारी मेरी थी, मैंने कहा- मुसद्ïदी लाल जी आप किस रावण की बात करते हैं? आज तो हर कोई रावण है। आज के रावणों से तो भला, वह रावण था, जिसने सीता जी का अपहरण जरुर किया था। मगर, उनके साथ अनर्गल कभी नहीं किया। वह राक्षस कुल में जन्म लेते हुये भी भगवान भोलेनाथ का अनन्य भक्त था। एक आज के तथाकथित रावण हैं, जो हर घर, हर गली, हर मुहल्ले और हर बाजार में स्त्री रुपी सीता का अपहरण करने के लिये घूमते रहते हैं और मौका मिलते ही वह सब कर जाते हैं, जिसकी कल्पना उस रावण ने भी कभी नहीं की होगी। भला हो उस रावण का जिसने कम से कम राम के महत्व और सीता के नारीत्व को दुनिया के सामने न सिर्फ उजागर किया, बल्कि उनको पूजनीय बना दिया। एक आज के रावण हैं, जो राम के वेश में ही वह सारे कुकर्म कर रहे हैं, जो रावण ने राक्षस होते हुये भी नहीं किया था। मैं बोले जा रहा था- मुसद्ïदी लाल जी, आप उस रावण को दोषी मानते हैं? खैर मनार्ईये, वह तो सिर्फ एक रावण था, जिसके दस मुख थे और जिसे दुनिया जानती-पहचानती थी, यहां तक कि भगवान भी उस रावण से भली-भांति परिचित थे। लेकिन आज तो करोड़ों रावण हैं, जिन्हें आप पहचानना तो दूर अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि किस चेहरे के पीछे कैसा रावण छुपा है। मुसद्ïदी लाल जी आज तो एक-एक चेहरे के पीछे दस-दस रावणों का चेहरा छुपा है। इसलिये आप बिल्कुल भी मत घबराईये, उस एक रावण के नाम पर फिल्म बन जाने या कुछ लिख-पढ़ देने से कुछ नहीं बिगडऩे वाला है। मेरी बातों का गहरा असर मुसद्ïदी लाल पर नजर आने लगा था, वे सोच में पड़ गये थे। अचानक बोले-अमां मियां आपने तो मेरी आंखे खोल दी। हूं, आप ठीक ही कह रहे हैं कि आज के रावणों से लाख भला तो वह रावण था। जिसने हमें राम से परिचित करवाया। मेरी श्रीमती जी बोली मैं कुछ बोलूं? मैंने कहा बोलो! उन्होंने कहा आप लोग राम-रावण वार्ता को विराम दीजिये और कृष्ण जी अस्तुति कीजिये। कलजुग में ना आना रे प्यारे कृष्ण कन्हैया। तुम बलदाऊ के भाई हो, यहां सब दाऊद के भैया॥ (पत्नी का सामयिक गीत सुनकर हम सब हंसने लगे ) मनोज द्विवेदी
2 टिप्पणियाँ:
भला हो उस रावण का जिसने कम से कम राम के महत्व और सीता के नारीत्व को दुनिया के सामने न सिर्फ उजागर किया, बल्कि उनको पूजनीय बना दिया।nice
मजा आ गया मनोज भाई इस पोस्ट में, आपकी लेखनी दिन ब दिन धारदार होती जा रही है।
जय जय भड़ास
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