भाई रणधीर "सुमन" जी और भाई गुफ़रान जी मेरी कुछ निजी बातें

सोमवार, 30 नवंबर 2009

मेरी धर्मपुत्री हुमा नाज़ जबरन मुस्कराने की कोशिश करते हुए
मेरी नवजात नातिन पांच घंटे हुए दुनिया में आए नाना की गोद में सुरक्षित महसूस करते हुए
आज कल व्यस्तता की अमीरों को होने वाली बीमारी ने मुझ महाफटीचर को भी अपने चपेट में ले लिया है। सामान्यतः व्यस्तता एक राजरोग है जो कि अमीरों को हुआ करता है लेकिन जब से हमारी बेटी हुमा नाज़ घर पर आयी है तब से हम बिना कुछ करे ही व्यस्त हो गये हैं। भाई सुमन जी से कहा था कि प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से लिख भेजता हूं और गुफ़रान भाई से आने का वायदा करा है लेकिन दोनो अब तक रखे हुए हैं। मेरी धर्मपुत्री हुमा नाज़ को उसके (यहां मैं इतनी गालियां लिख दूंगा कि पेज भर जाएगा लेकिन भड़ास न निकल पाएगी इसलिये ये कार्य आप सब के जिम्मे सौंप रहा हूं) पति ने छह माह का गर्भ पेट में लिये मारपीट कर दर-बदर ठोकर खाने के लिये घर से बाहर निकाल दिया, कारण वही पुराना है, चर्बी आ गयी है अब पत्नी पुरानी लगने लगी है और दूसरी शादी करनी है। बेचारी मेरी बेटी कभी नानी के घर, कभी मामा के घर और कभी अपनी मां यानि आएशा आपा के घर अपनी तकलीफ़ दिल में दबाए भटकती रही क्योंकि वो जानती है कि इनमें से सभी आर्थिक और सामाजिक तौर पर इतने कमज़ोर हैं कि न तो उस कमीने का कुछ बिगाड़ पाएंगे और न ही बेचारी हुमा को अधिक दिनों तक अपने पास रख सकते हैं।मेरी बिटिया ने इस तरह की परिस्थितियों में पांच दिन पहले अस्पताल में बेटी को जन्म दिया। कोढ़ में खाज तो गरीब और बदनसीब को ही होती है सो वैसा ही हुआ, खून पीने वाले व्यवसायिक चिकित्सकों ने बच्चे की दिल की धड़कन कम सुनाई देने का पुराना नाटक खेल कर सिज़ेरियन आपरेशन कर डाला जिसके चलते अब चालीस हजार का बिल बना दिया है। अपनी भी तो मुंह तक फटी है सो जानते हैं कि हमें तो न पैसा चाहिए न प्रसिद्धि और न शांति लेकिन इन बच्चों को तो चाहिए। गुफ़रान भाई यहां तो किसी से बैतूलमाल और कर्ज़-ए-हसना की बात करो तो लोग मुंह देखते हैं जैसे मैंने कुछ विचित्र कह दिया हो और दाढ़ियां लम्बी-लम्बी रखे हुए हैं। अब आप लोग खुद ही विचार करिये कि मेरे जैसा फालतू इंसान आजकल किस कदर व्यस्त है। सवाल हैं हुमा की समस्या का क्या हल निकाला जाए? मेरी नवजात नातिन का क्या भविष्य होगा? क्या हुमा के पति जैसे लोगों का कुछ करा जा सकता है? ऐसी ही कहानी मेरी बहन मुबीना और उसकी नन्ही से बेटी ताबिना की है। जय जय भड़ास

6 टिप्पणियाँ:

dr amit jain ने कहा…

बहन हुमा आपका भाई अमित आपके साथ है ,बाकि मेरी भांजी को मेरी तरफ से ढेर सारा प्यार दीजिये

दीनबन्धु ने कहा…

गुरुदेव मैं आ रहा हूं आपके पास तब ही बात करेंगे कि क्या करा जाए। उस हरामी को तो अगर आप कहें तो उसके घर में आफ़िस में जहां कहें वहा तोड़ कर रख दूं
जय जय भड़ास

Randhir Singh Suman ने कहा…

sriman ji ,

ham aap k sath hain

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ ने कहा…

मुस्लिम समुदाय में इस तरह की घटनाएं अत्यंत साधारण हैं। मैं अन्य समुदायों की बनिस्पत पत्नी को इस तरह छोड़ देना और बाद में दबाव पर खर्च आदि दे देना सामान्य बात है लेकिन इस पूरी प्रक्रिया मे बीच में स्त्री का आत्मसम्मान और अस्मिता बुरी तरह रौंद दी जाती है। इस प्रक्रिया के बाद भी बच्चे वाली औरत से सामान्य तौर पर कोई शादी नहीं करना चाहता और अगर किसी आकर्षण में कर भी लेता है तो फिर एक ही घर में दो पिताओं के बच्चे आसानी से एक नहीं हो पाते हैं, इसमें सिद्धांत बघारने की बात नहीं है आंखों देखी बातें हैं भले कोई कुछ भी तर्क दे। यदि सचमुच समर्थन देना है तो सही तरीका ये होना चाहिये कि ऐसे हरामियों के हाथ पैर तोड़ कर जीवन भर के लिये अपाहिज कर के घर बैठा दिया जाए और आज की शिक्षित लड़की नौकरी करके उस सुअर को जीवन यापन के लिये खर्च दे दे तब कहीं जाकर मन को सुकून मिलेगा।
मुबीना हो या हुमा इनके लिये यही उपाय है कि वे स्वावलंबी बनें और खुद अपने लिये मार्ग चुने बिना किसी दबाव के ।
जय जय भड़ास

गुफरान सिद्दीकी ने कहा…

रुपेश भाई आदाब
हुमा बहेन को हम सभी की तरफ से ढेर सारा प्यार मै काफी हद तक मुनव्वर आपा से सहमत हूँ वैसे इसमें रणधीर जी यहाँ आपकी सख्त ज़रूरत है मुझे लगता है ऐसे लोगों के लिए सरकारी घर ज्यादा ठीक जगह है मेरी राय में खुले तौर पर इन जैसे लोगों के खिलाफ एक मुहीम चलाने की ज़रूरत है रुपेश भाई जब दहेज़ उत्पीड़न के फर्जी मुक़दमे में ज़मानत करने में महीनो लग जाते हैं तो यहाँ हम ऐसे हरामजादों को सालों निकलने ही नहीं देंगे मेरी राय में हम कानूनी लड़ाई बेहतर ढंग से लड़ सकते हैं और हम अवध पीपुल्स फोरम वाले वैसे भी हाज़िर हैं आपके जन्मदिन पर आपसे वादा जो किया है अब बोलिए क्या करना है.................

आपका हमवतन भाई ..गुफरान सिद्दिकुई (अवध पीपुल्स फोरम अयोध्या फैजाबाद)

Dreamer ने कहा…

रुपेश भाई,

बात बहन की बाकी जिंदगी और इस मासूम की पूरी जिंदगी का है.... कोई साला भांड अपनी मनमर्जी इसीलिए नहीं कर सकता क्यूंकि वो पैसे वाला है....किसी भी मजहब का इंसान अपने धर्म के नाम पर कानूनी अधर्म करे, हमारे देश मैं संभव ही नहीं है...... बात कदम उठाने की है, हमें जल्द से जल्द कानूनी दरवाज़ा खटखटाना पड़ेगा, ........ और कानून नहीं कैसे सुनेगा....

आपके साथ हूँ, क्योंकि बात दामाद की है इसीलिए एक बार समझाना भी बनता है फिर लात के भूतों के लिए ज़बरदस्त लात तैयार है.....

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