डा.रूपेश श्रीवास्तव बनाम यशवंत सिंह, लाखों लोगों को नहीं पता कि ये दोनो जमाने से साथ नहीं हैं।
बुधवार, 18 नवंबर 2009
पत्रकारिता के पेट से एक दिन भड़ास का जन्म हुआ। दो नाम सामने आए यशवंत सिंह और डा.रूपेश श्रीवास्तव। किसी ने लिखा कि ये दोनो भड़ास के दो ध्रुव हैं एक "भ" है दूसरा "स" है बाकी जो बीच में हैं वो सब "डा़" हैं। यशवंत हमेशा से बाजारवाद के प्रभाव में रहे और डा.रूपेश श्रीवास्तव एक बाग़ी किस्म के सुधारवादी व्यक्ति जिनपर बाजार या बाजारवाद का न तो कोई प्रभाव पड़ा न वे इसके समर्थन में रहे। यशवंत सिंह चूंकि परंपरागत पत्रकारिता से आए थे तो उनका कहना है कि आजकल के दौर में संपादकीय नैतिकता की उम्मीद नहीं करनी चाहिये लेकिन डा.रूपेश श्रीवास्तव का कहना रहा कि यदि मीडिया में संपादक जैसी संस्था अनैतिक व पक्षपाती हो जाए तो फिर मीडिया अपने दायित्त्व पूरे न करके मात्र छ्ल और छद्म ही फैलाएगा। संपादक की गलती किसी भी हाल में क्षम्य नहीं होनी चाहिये। डा.रूपेश श्रीवास्तव अकेले ही फौज हैं और गलत बातों पर भिड़ जाते हैं कष्ट उठा लेना, मार खा लेना उन्हें स्वीकार है लेकिन जो गलत है वो हर हाल में गलत है चाहे सामने वाला कोई भी हो। यशवंत सिंह पूरी तरह से दिमाग से लिखते हैं, वे व्यवसायिक अभ्यास से अच्छे लेखक बन चुके हैं लेकिन डा.रूपेश श्रीवास्तव का लेखन सिर्फ़ दिल से जुड़ा रहता है वे जरा भी व्यवसायिक नहीं हैं और न ही शायद अच्छे लेखक हैं भावुकता में आकर कभी-कभी अत्यंत कड़ी भाषा का भी प्रयोग करते हैं ये बिना विचारे कि उन पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है। इस पर डा.रूपेश श्रीवास्तव का कहना है कि वे सत्य कहने कोई समझौता नहीं करेंगे, संविधान का आदर करने का मतलब ये नहीं कि उसका दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ़ बोलने में डरा जाए। निजी तौर पर यशवंत सिंह दारू और मुर्गा के शौकीन हैं जबकि डा.रूपेश श्रीवास्तव नशे से कोसों दूर हैं और शाकाहारी हैं क्योंकि भोजन संबंधी व स्वास्थ्य को लेकर उनकी अपनी निजी धारणाएं हैं जिनका आधार उनकी उच्च आयुर्वेद की शिक्षा है। ऐसे सैकड़ों अंतर हैं जो कि यशवंत सिंह और डा.रूपेश श्रीवास्तव को एक मंच पर साथ में खड़ा रख ही नहीं सकते। मैं इस बात को श्रंखला के रूप में लिखना चाह रही हूं क्योंकि अब तक लाखों लोगों को ये नहीं पता कि ये दोनो एक जमाने से एक साथ नहीं हैं।
जय जय भड़ास
5 टिप्पणियाँ:
Bilkul. kam se bhadas par ane wale sabhi logo ko sachchai malum honi chahiye.
दीदी,
आज लग रहा है की आपकी भड़ास बाहर आने वाली है,
याद है जब ये ही सूअर यशवंत अपने फायदे के लिए कितने हथकंडे अपनाए थे, बलात्कार का आरोपी यशवंत जब फूट फूट कर रो रहा था उस समय भी उसके साथ कोई और नहीं डाक्टर साहब ही थे अपने व्यवसायिक चरित्र वाला यह प्राणी अपने निहित स्वार्थ के लिए किसी को भी बेच सकता है,
जब इसने भड़ास बेचा तो हमारे ब्लॉग के बेहतरीन लेखक इसके दोगले चरित्र के करण मंच ही छोड़ गए. आज उसी भड़ास को बेच कर पत्रकारिता के लालाओं कि दलाली कर ब्लॉग को दुर्गंधित कर रहा है.
आप अपनी सारी भावनाओं और हकीकत को कलम का जामा पहनाइए.
जय जय भड़ास
सुअर मत लिखिये रजनीश भाई वरना मेनका गांधी नाराज हो जाएंगी और आपको पता है कि ये यशवंत कानूनी कार्यवाही की धमकी देता है कि अगर गरिआया तो केस कर दूंगा। इसलिये प्लीज सुअर मत कहिये कुछ ऐसा कहिये जो इसके लिये सटीक हो जैसे कि सियार, लोमड़ या कुछ ऐसा ही :)
दीदी ये बात सही है कि अधिकतर लोग नहीं जानते कि अब डा.रूपेश ही क्या पंडित सुरेश नीरव, हरेप्रकाश उपाध्याय,मुनव्वर आपा जैसे लोग इसकी हरकतों को जान गये तो इसने उन्हें अपनी तकनीकी कुटिलता से हटा दिया था। आप इसकी बखिया उधेड़ना जारी रखिये
जय जय भड़ास
दीदी, ये आपको क्या सूझा कि अचानक आपको यशवंत सिंह याद आ गये? कहीं कुछ नया धमाका करने का इरादा तो नहीं है भड़ास पर आएदिन कुछ ऐसा हो जाता है जो कि अनोखा और बहुत से लोगों के लिये धक्कादायक होता है। जैसे कि मुनव्वर आपा की उर्दू ब्लागिंग को लेकर महाराष्ट्र भर के उर्दू अदारे में दिग्गजों की नींद उड़ गयी है और कइयों की छाती पर तो एनाकोंडा अजगर लोट रहे हैं कि एक औरत होकर इतना बड़ा काम कैसे कर गयी। उन्हें नहीं पता कि ये भड़ास का प्रताप है जो यहां ऐसे काम सहज ही हो जाते हैं अब छाती पर अजगर लोटे ये पिछवाड़े केंचुआ लोटे......
जय जय भड़ास
अरे मेरी प्यारी दीदी आपको क्या सूझा कि आप ये लेकर बैठ गयी? यशवंत सिंह का शुमार डा.रूपेश श्रीवास्तव के साथ सही नहीं जान पड़ता वो व्यवसायी हैं और डा.साहब भड़ासी...
जय जय भड़ास
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