किरण वेदी जी के ब्लॉग से - गलती किसकी

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

गलती किसकी?
मां ने ही उजाड़नी चाही ज़िंदगी
किरन बेदी Sunday November 08, 2009

घर का माहौल आगे चलकर बच्चों की जिंदगी के कई रास्ते तय करता है। खासकर लड़की की शादी के बाद उसके ससुराल में इसका काफी असर पड़ता है। पूर्व आईपीएस अधिकारी किरन बेदी सुना रही हैं एक ऐसी लड़की की कहानी उसी की जबानी, जिसकी जिंदगी को उसकी मां की गलतियों ने तबाह करना चाहा, पर अपने ससुरालियों की समझदारी से वह बच गई :

मेरा नाम मंजीत कौर है। उम्र 24 साल। पंजाब में पली-बढ़ी हूं, 12वीं तक पढ़ाई की है। मेरे पिता हरवीर सिंह ट्रक ड्राइवर थे और इस वजह से वह ज्यादातर बाहर रहते थे। मां सुखवीरी घरेलू महिला है, लेकिन उनके संपर्क बहुत 'ऊंचे' लोगों से हैं। उनके पास पैसे कमाने के कई नुस्खे हैं और इनके जरिए वह अच्छी तरह से घर चला लेती हैं।

मेरी मां के दोस्तों में अच्छे-बुरे सभी तरह के लोग थे। उन्हीं में एक संतानविहीन वैश्य दंपती भी थे। सुशील नाम के इस शख्स के यहां मां देर तक काम करती थी और इसी बीच उनके बीच जिस्मानी रिश्ते कायम हो गए। इसकी एक वजह मेरे पिता का ज्यादा वक्त घर से बाहर बिताना भी था। सुशील और मां के संबंधों को लेकर गली-मुहल्ले में चर्चा होने लगी। इसी बीच मेरे पिता को इसकी खबर मिली जिससे उन्हें गहरा सदमा लगा। अब बाहर जाने में उनकी दिलचस्पी कम हो गई। गम भुलाने के लिए वह दिनभर शराब पीने लगे।

उधर, सुशील और उसकी पत्नी उर्मिला मेरे भाई मंजीत और गुरमीत को अपने बच्चों की तरह मानने लगे। हालांकि, उर्मिला को अपने पति और सुखवीरी के शारीरिक संबंधों की जानकारी थी, फिर भी वह कोई ऐतराज नहीं करती थी। इसकी वजह उसका बेऔलाद होना था। वह अपने पति को हर हालत में खुश देखना चाहती थी और सुशील भी उसका पूरा ख्याल रखता था।

12वीं पास करने के साथ ही मेरा परिवार मेरी शादी के बारे में सोचने लगा। मेरी मां को एक मेहनती, सुशील लड़का निरंजन मिला। मेरे पिता शराब की आदत से काफी कमजोर हो चुके थे। वे भी दुनिया से रुखसत होने से पहले मेरी शादी करना चाहते थे और इसलिए निरंजन के साथ मेरा रिश्ता पक्का हो गया। मेरी शादी में सुशील और उसकी पत्नी उर्मिला ने काफी पैसा खर्च किया और मेरा कन्यादान भी मेरी मां और सुशील ने मिलकर किया। मेरे ससुराल वालों को यह अटपटा तो जरूर लगा, लेकिन उन्होंने ज्यादा आपत्ति नहीं की। बाद में मेरे पति को जब मेरी मां और सुशील के रिश्तों के बारे में पता चला, तो उसने मेरी मां से रिश्ता न रखने का फैसला कर लिया। मेरे सास-ससुर और दूसरे लोग मुझे बहुत अच्छे-से रखते थे। मैं भी उनकी खूब सेवा करती थी। लेकिन इधर जब मैं काफी दिनों तक मां के पास नहीं जाती, तो उसे बहुत बुरा लगता था। उसने मेरे ससुरालवालों के खिलाफ मुझे भड़काना शुरू कर लिया। उसकी हरकतों से तंग आकर मेरी सास ने नव ज्योति परिवार परामर्श केंद्र से सहायता की गुहार लगाई। काउंसलर ने मेरी मां को खूब फटकार लगाई और उसे बेटी का घर बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार माना।

मेरी सास और सलाहकार के हस्तक्षेप से मेरी मां रास्ते पर आ गई और मेरा भरा-पूरा परिवार बिखरने से बच गया। इसके और मेरी बेटी माही के जन्म के बाद मेरे घर में फिर से खुशियां लौट आईं।

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कॉमेंट:
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rampal का कहना है: November 08, 2009 at 04:47 PM IST

हम भारत मे रहते है जहा सभी धर्मो ऐवम भाषाओ का आदर किया जाता है.कोई भी नागरिक किसी भी धर्म को अपना सकता है तथा कोई भी भाषा मे लिख पढ़ सकता है. स्वतंत्रता के बास्ट साल गुजरने के बाद भी अभी हिन्दी रास्ट्र भाषा होने के उपरांत भी पूरे देश मे न तो सर्वव्यापी रूप से लिखी ,बोली तथा पढ़ी जाती है.न ही सरकार की ओर से सार्थक प्रयास किए गये नज़र आते हैं.इस दिशा मे बहुत कुछ करना अभी बाकी है.
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archana का कहना है: November 08, 2009 at 04:52 PM IST

मेरी राय है की लड़की ने फ़ैसला बिल्कुल सही लिया है.
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Neetu Banga का कहना है: November 08, 2009 at 09:04 PM IST

It is right, sometimes mistake of parents effect their children life. For you, I think you should not keep relation with your mother, if you want to keep your married life happy. Mother-in-law is like a mother. She will give you love , blessing for rest of life and fill the gap of real mother.
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rajendra का कहना है: November 08, 2009 at 11:55 PM IST

सब कुछ समझदारी से निबट गया.वरना लड़की के घर वाले 498 का उपयोग करते.जैसा की
आज-कल हो रहा है.घर बर्बाद हो जाता ओर लड़की कही की नहीं रह जाती.सरकार को चाहिए,की ४९८ए को जमानती बनाए.
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madhavi का कहना है: November 09, 2009 at 08:55 AM IST

हम आप को सलाम करते है आपने बहुत हिम्म्त का काम किया है
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tejpal Singh DUBAI का कहना है: November 09, 2009 at 01:01 PM IST

मेरी राय है की लड़की ने फ़ैसला बिल्कुल सही लिया है उसक़ घऱ बस गया औंऱ मौ को सज़ा

1 टिप्पणियाँ:

Vinashaay sharma ने कहा…

सहमत हूँ,अमित जैन जी से ।

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