आज़ादी बचाओ आंदोलन हुआ भ्रष्ट बन गया भारत स्वाभिमान ट्रस्ट - 2

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

रामदेव सदा से ही प्राणायाम और आसन आदि की यौगिक मर्यादा के साथ बलात्कार करते रहे हैं जो कि एक साधारण व्यक्ति मात्र शारीरिक स्वास्थ्य के लोभ में बहक कर देख ही नही पाता। पढ़ने वालों को लग रहा होगा कि मैं किसी कठोर दुराग्रह के कारण अथवा किसी दुष्प्रेरणा से ऐसा शब्द प्रहार कर रहा हूं लेकिन ये सत्य नहीं है। आप जान लीजिये कि योग एक अत्यंत गूढ़ विषय है जिसे कि सीडी आदि सिखाना महामूर्खता है। विचार करिये कि जब आप साइकल चलाना या तैरना बिना प्रत्यक्ष गुरू के नहीं सीख सकते तो योग के प्राणायाम कैसे सीखेंगे क्योंकि प्राणायाम मात्र सांस से फुस्स-फस्स करना न होकर देह में व्याप्त पंचमहाभूतों में से एक वायु के वातरूप के भिन्न प्रकारों अपान, उदान, व्यान, समान और प्राण में से एक प्राणवायु के विभिन्न आयामों को नियंत्रित तरीके से संचालित कर पाना सीखने की बात है। इस प्रक्रिया में शरीर की स्थिति के साथ ही श्वांस के समन्वय और मन की स्थिति का आधार रहता है , मन के आधार पर धारणा लेकर प्राणायाम के लाभदायक परिपथ(सर्किट) की पूर्णता होती है। इस बात की सत्यता का प्रमाणन आप गायत्री परिवार द्वारा ब्रह्मलीन आचार्य श्रीराम शर्मा जी की पुस्तकों में देख सकते हैं। मन की स्थिति यानि पुष्ट और स्पष्ट धारणा के अभ्यास के करा गया श्वांस अभ्यास लाभकारी नहीं होता। ऐसे में आप जो लाभ प्रत्यक्ष देखते हैं वह प्राणायाम के कारण न होकर आपके सतत विचार धारणा के कारण रहता है, आप एक स्वसम्मोहित सी अवस्था में रहते हैं जिसके कारण आपका अवचेतन मन आपके एण्डोक्राइन सिस्टम पर प्रभाव डाल कर लाभकारी हार्मोन्स का उत्सर्जन करा देता है जैसे कि आप सपने में स्वस्थ हो जाए। इसके बाद कुछ अंतराल के बाद पुनः स्वप्न टूट जाने पर वैसी ही स्थिति दोबारा आ जाए। सब देखते हैं कि रामदेव का मुंह प्राणायाम सिखाते समय बंद नहीं रहता और प्रवचन चालू रहते हैं ऐसे में उनके मन की क्या स्थिति रहती होगी अनुमान लगाया जा सकता है। यौगिक मर्यादा से बलात्कार का कठोर शब्द प्रयोग करने का कारण ही यही है।
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