अनूप मंडल का बजा बजा

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

"राक्षसों ने ब्लागरों को लपेटा अपने मायाजाल में, मुंबई ब्लागर मीट"
20 टिप्पणियाँ - मूल पोस्ट छिपाएँ टिप्पणियों को संकुचित करें
पिछले दिनों मुंबई में ब्लोगर मीट हुई थी. उसमे नामी-गिरामी चिठाकारो ने अपनी हिस्सेदारी निभाई थी. विवेक रहस्तोगी जी के निमंत्रण पर मै भी पहुचा उपरोक्त मीट में. मुझसे जो बन पडा सहकार किया.
जब मै आज मुंबई पहुचकर देखा की एक हिंदी ब्लॉग " भडास" में किसी अनुप मंडल ने घटिया तरह की भाषा का उपयोग कर कुछ यू लिखा की दोस्तों मेरा मन ही टुटा सा गया. आप भी पढ़े इस लिंक कों दबाकर.
राक्षसों ने ब्लागरों को लपेटा अपने मायाजाल में, मुंबई ब्लागर मीट
इस तरह की बातो से हिंदी चिठाकारी से में उकता गया हू. सोच रहा हू. अब
हिंदी चिठाकारी से अलविदा कहने का मेरा समय आ गया है. शायद यहाँ अब शरीफ आदमियों के लिए कोई जगह ही नहीं बसी है. बड़ी दुर्भाग्य की बात है की कुछ लोग कुंठित मन से आरोप प्रत्यारोप करने से पहरेज नहीं करते . भले आदमी की इज्जत लेना अब यहाँ रिवाज बन पड़ा है.
ओर मजेदार बात तो यह है की कोई नामचिन्ह ब्लोगर उपरोक्त पोस्ट पर कमेन्ट के माध्यम से लिखता है "नाईस"अब इस पर अधिक क्या लिखू समझ के परे है.

HEY PRABHU YEH TERA PATH द्वारा 4:44 AM पर Dec 12, 2009 को पोस्ट किया गया

ब्लॉगर शरद कोकास ने कहा…

भई टाइगर को यह चिंता करने की क्या ज़रूरत ? हिन्दी ब्लॉगिंग इस समय उन्नति के पथ पर अग्रसर है आलोचना तो होगी ही ।

१२ दिसम्बर २००९ ५:३२ AM
ब्लॉगर Suman ने कहा…

thik hai .

१२ दिसम्बर २००९ ६:१७ AM
ब्लॉगर अविनाश वाचस्पति ने कहा…

मीट हटा दें, मिलन जमा दें
मीट लिखा होने से राक्षसी प्रवृति हावी हो जाती है
इसमें अनोप मंडल का कोई दोष नहीं
दोषी तो अविनाश वाचस्‍पति हुआ
जो इतना भी नहीं समझा पाया सबको।

१२ दिसम्बर २००९ ६:५७ AM
ब्लॉगर Udan Tashtari ने कहा…

आप भी कहाँ जबरदस्ती की बात करते हैं. आप अपना काम करिये न...कोई आपके बारे में क्या कहता है, उससे अगर आप विचलित हो गये तो कहने वाले का तो काम बन गया. वो तो कह ही इसीलिए रहे हैं. आप निश्चिंत हो लिखिये.

शुभकामनाएँ.

१२ दिसम्बर २००९ ६:५७ AM
ब्लॉगर Vivek Rastogi ने कहा…

महावीर भाई आपका आभारी हूँ कि आपने बहुत मेहनत की और ब्लॉगर मिलन को सफ़ल बनाया, अब सफ़लता पर कुछ लोग नाराज तो होते ही हैं यह तो आपको आम जिंदगी में भी देखने को मिल जायेगा, कोई सामाजिक होता है कोई नहीं, किसी को किसी भी चीज में मीन मेख निकालने की आदत होती है, और यही आम आदमी ब्लॉगर भी है तो आदत तो जायेगी नहीं न, ब्लॉग विचारों की दुनिया है, शब्द अस्त्र हैं। शरद भाई की टिप्पणी पर मंथन कीजिये। सब छोड़िये और ब्लॉगिंग करिये, ये nice वालों को शायद पता नहीं था कि टिप्पणी कहाँ करना चाहिये और कहाँ नहीं। बस उनको तो करने से मतलब है, वैसे भी एक टिप्पणी के ऊपर बहुत बड़ा हंगामा हो चुका है।

छोड़िये इन सब चीजों को और शब्दों को ताकत दीजिये।

१२ दिसम्बर २००९ ७:२१ AM
ब्लॉगर 'अदा' ने कहा…

क्या टाइगर साहब,
जरा-जरा सी बात से घबराना ठीक नहीं...
अब ऐसा है....१०-१२ हज़ार ब्लोग्स में से २-४ तो ऐसे निकलेंगे ही न....और आपलोग उन्हीं पर ध्यान दे रहे हैं....ध्यान ही देना है तो उनपर दीजिये...जिन्होंने अच्छी बातें कहीं हैं....
मुंबई ब्लोग्गेर्स मीट अभी तक की सबसे सफलतम मीट है.....आपलोगों को इस बात से खुश होने चाहिए...और स्वयं पर गर्व....बस...बाकी ....जिसे जो कहना है कहने दीजिये......

१२ दिसम्बर २००९ ७:४६ AM
ब्लॉगर 'अदा' ने कहा…

क्या टाइगर साहब,
जरा-जरा सी बात से घबराना ठीक नहीं...
अब ऐसा है....१०-१२ हज़ार ब्लोग्स में से २-४ तो ऐसे निकलेंगे ही न....और आपलोग उन्हीं पर ध्यान दे रहे हैं....ध्यान ही देना है तो उनपर दीजिये...जिन्होंने अच्छी बातें कहीं हैं....
मुंबई ब्लोग्गेर्स मीट अभी तक की सबसे सफलतम मीट है.....आपलोगों को इस बात से खुश होने चाहिए...और स्वयं पर गर्व....बस...बाकी ....जिसे जो कहना है कहने दीजिये......

१२ दिसम्बर २००९ ७:४६ AM
ब्लॉगर निर्मला कपिला ने कहा…

ालोचना वहाँ की होती है जहाँ कुछ काम हो रहा हो जहाँ कुछ भी न हो वहाँ के क्या और क्यों आलोचना होगी ? निस्सन्देह ब्लाग जगत मे बहुत कुछ अच्छा हो रहा है बधाई और शुभकामनायें

१२ दिसम्बर २००९ ९:३७ AM
ब्लॉगर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…

असन्तुष्ट जब अपने काम में तल्लीनता से लगे हैं तो हम अपना काम क्यों छोड़ें??

१२ दिसम्बर २००९ १०:२५ AM
ब्लॉगर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…

अरे हाँ!
एक बात तो लिखना ही भूल गया-
NICE.

१२ दिसम्बर २००९ १०:२६ AM
ब्लॉगर RAJNISH PARIHAR ने कहा…

कुछ तो लोग कहेगे..लोगों का काम है कहना....आप अपने लक्ष्य की और अग्रसर रहिये..happy bloging...

१२ दिसम्बर २००९ १०:३७ AM
ब्लॉगर संजय बेंगाणी ने कहा…

इसे हमारी ब्लॉगरी भाषा में टंकी पर चढ़ना कहते है. लगभग सभी सफल ब्लॉगर एक न एक दिन टंकी पर चढ़ा है.

मगर जिस बात पर पेट पकड़ कर हँसा ही जा सकता है, उसके लिए टंकी पर काहे चढ़ना?

१२ दिसम्बर २००९ १०:४३ AM
ब्लॉगर कुश ने कहा…

अरे महावीर जी आप तो खालिस मारवाड़ी आदमी है.. आप कहाँ पीछे हट रहे है.. आपने अपना काम इमानदारी से किया ये आप जानते है.. फिर दुसरे कुछ भी कहे उस से क्या फर्क पड़ता है.. ? कुछ लोगो के ख़राब होने से क्या होता है.. जो लोग अच्छे है उनका तो ख्याल करिए.. अपना मन ख़राब मत करिए..

१२ दिसम्बर २००९ १२:०७ PM
ब्लॉगर rashmi ravija ने कहा…

लगता है, यह कोई 'अलविदा सप्ताह' चल रहा है.महावीर जी से इस भावुकता की उम्मीद नहीं थी....कौन सी जगह..स्वच्छ,सुन्दर और मनोरम है??...हर जगह, हर तरह के लोग हैं..कहाँ कहाँ से भाग सकते हैं हम??

१२ दिसम्बर २००९ १२:२८ PM
ब्लॉगर सतीश पंचम ने कहा…

महावीर जी, किसी के कहने से इतना डिस्टर्ब नहीं होना चाहिये। हां इस तरह की बातें तकलीफ तो देती ही हैं पर क्या किया जाय़ ।
लोग तो कहते ही रहते हैं, उनका काम है कहना। बाकि तो हम लोगों का काम है कर्म करना।
ब्लॉगर बैठकी को कितना पसंद किया गया यह तो आपको लोगों के स्नेह भरी टिप्पणियों से ही पता चल गया होगा। सो छोडिये इन बेकार की बातों को।
जमाये रहिये। हम तो आप के द्वारा तीन मूर्ति मंदिर में किये गये इंतजाम और आप के द्वारा लोगों को आग्रह कर के जलपान करवाने को देख मन ही मन मुदित हुए कि देखिये कैसा सरल प्रेम छलक रहा है।
इन बातों पर ध्यान न दें।

१२ दिसम्बर २००९ ७:४१ PM
बेनामी ab inconvinienti ने कहा…

अनूप मंडल एक अन्धविश्वासी कम्युनिस्ट संप्रदाय है, जो जैनों को शोषक पूंजीपति बनिया वर्ग का मानता है जो सर्वहारा गरीब आदिवासी किसानों का शोषण करते हैं. यह संगठन जोर शोर से जैनों के खीलाफ़ अन्धविश्वासी बातें फ़ैलाने में लगा है, जैसे जैन राक्षस वंश के होते हैं, वे पैशाचिक शक्तियों की साधना करते हैं, तीर्थंकर काल्पनिक हैं, चौमासा में मुनि तंत्र साधना करते हैं जिससे फसल नष्ट हो जाती है और शोषक वर्ग को लाभ होता है.

१२ दिसम्बर २००९ ८:३० PM
ब्लॉगर महेन्द्र मिश्र ने कहा…

आप अपना काम करिये न...

१२ दिसम्बर २००९ ९:०८ PM
ब्लॉगर महफूज़ अली ने कहा…

क्या टाइगर साहब,
जरा-जरा सी बात से घबराना ठीक नहीं...

१२ दिसम्बर २००९ १०:४९ PM
ब्लॉगर राजीव तनेजा ने कहा…

कुछ तो लोग कहेंगे...लोगों का काम है कहना...


लगे रहें...जमे रहें...डटे रहें....

१२ दिसम्बर २००९ ११:२३ PM
ब्लॉगर पं.डी.के.शर्मा"वत्स" ने कहा…

हम तो बस इतना कहेंगें कि किसी के भी कहने सुनने की चिन्ता छोडिए ओर बस अपने ध्येय(ब्लाग लेखन) में लगे रहिए ।
हम अब आपकी आगामी पोस्ट की प्रतीक्षा कर रहे हैं....

१२ दिसम्बर २००९ ११:२६ पम


इस पुरी पोस्ट को आप यहाँ पढ़ सकते है

6 टिप्पणियाँ:

मनोज कुमार ने कहा…

maanjhi tere naao ke talabgaar bahot hain !
kuchh is paar, to us paar bahot hain !!
jis shahar me kholee hai tu ne,
sheeshe kee dukaan,
us shahar me patthar ke khareedar bahot hain !!

मनोज कुमार ने कहा…

maanjhi tere naao ke talabgaar bahot hain !
kuchh is paar, to us paar bahot hain !!
jis shahar me kholee hai tu ne,
sheeshe kee dukaan,
us shahar me patthar ke khareedar bahot hain !!

मनोज कुमार ने कहा…

maanjhi tere naao ke talabgaar bahot hain !
kuchh is paar, to us paar bahot hain !!
jis shahar me kholee hai tu ne,
sheeshe kee dukaan,
us shahar me patthar ke khareedar bahot hain !!

मनोज कुमार ने कहा…

maanjhi tere naao ke talabgaar bahot hain !
kuchh is paar toh us paar bahot hain !!
jis shahar me kholee hai tu ne sheeshe kee dukaan,
us shahar me pattahar ke khareedaar bahot hain !!

Randhir Singh Suman ने कहा…

sriman ji,

aap chidiyaghar(zoo) k tiger hain ya jangal k tiger hain ya manviy samaj mein rehne vaale tiger hain .main nahi janata. agar aap manav hain to main aap ka bahut samman karta hoon aur aap ko ek sher samarpit kar raha hoon , Dr Kunvar bechain ka:

dil pe bahut muskil hai , dil ki kahani likhna.
jaise behte hue paani pe, paani se likhna

manav ko sadar pranam, tiger ko nahi

अनोप मंडल ने कहा…

घोर आश्चर्य है कि हम लोग सोचते हैं कि हम कदाचित ab inconvinienti को समझदार मान रहे थे लेकिन ये तो अव्वल दर्ज़े के अंधविश्वासी निकले। इन महाशय को जैनों के द्वारा अहिंसा और भोलेपन की आड़ में चलाया जा रहा "काला जादू" हमारा अंधविश्वास और कम्युनिज़्म प्रतीत हो रहा है। महाशय जरा तर्कों और तथ्यों की तरफ मुड़ने का साहस जुटाइये और पिछली तमाम पोस्ट्स पढ़ लीजिये। संजय बेंगाणी, अमित जैन,महावीर सेमलानी जैसे लोगों से जब उठाए गये सवालों पर चर्चा करो तो इन्हें सांप सूंघ जाता है चार-पांच माह तक भड़ास का नाम तक लेने में जुलाब होने लगता है। अमित चुटकुले लिखने लगता है और अब गाल बजाने आ गये। संजय बेंगाणी! अगर सचमुच मानव हो तो जरा खुल कर सामने आओ अनूप मंडल तुम्हें ललकार रहा है
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

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