हिन्दी पुरस्कारों पर दिल्ली सरकार को आपति - हिन्दी में गुणवतापूर्ण लेखन को पुरस्कार की घोषणा

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

प्रेषक: Mohan Gupta

विषय: हिन्दी पुरस्कारों पर दिल्ली सरकार को आपति - हिन्दी में गुणवतापूर्ण लेखन को पुरस्कार की घोषणा
It is surprising that Hindi state's Chief Minister has objection in giving awards for Hindi. ajit gupta
हिन्दी पुरस्कारों पर दिल्ली सरकार को ऐतराज

HIMANSHU <rdkamboj@gmail.com>
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
यह बुद्धुजीवियों को कुचलने की क्रूर कला है , जिसमें कुछ साहित्यपिशाच भी सामिल हैं
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Dr.Kavita Vachaknavee <kvachaknavee@yahoo.com>
हिन्दी पुरस्कारों पर दिल्ली सरकार को आपति
दिल्ली सरकार ने इस बार हिन्दी अकादमी की आ॓र से दिये जाने वाले आंशुलेखन, नवोदित लेखन, छात्र प्रतिभा और शिक्षक पुरस्कारों पर रोक लगा दी है। सरकार का कहना है कि हिन्दी के लिए इतने ज्यादा पुरस्कार बांटने की क्या जरूरत है? यह अर्थहीन है? लेकिन वह हर वर्ष दफ्तरों मे हिन्दी पखवाड़े के नाम पर कर्मचारियों के बीच हिन्दी में काम करने के नाम पर उन्हें पुरस्कृत जरूर करना चाहती है। सूत्रों की मानें तो हिन्दी अकादमी की आ॓र से हर वर्ष स्कूली छात्रों को छात्र प्रतिभा लेखन के रूप में दिये जाने वाले पुरस्कारों पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा हिन्दी भाषा में लिखने वाले नये लेखकों को प्रमोट करने के लिए दिया जाने वाला नवोदित लेखक पुरस्कार, गैर स्कूली/कालेजों छात्रों को दिया जाने वाला आंशुलेखन पुरस्कार और हिन्दी के उत्कृष्ट शिक्षकों को दिये जाने वाले शिक्षक पुरस्कारों पर भी रोक लगा दी गई है। सूत्रों की माने तो हिन्दी अकादमी की अध्यक्ष मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इन पुरस्कारों पर यह कहते हुए रोक लगा दी है कि यह अर्थहीन हैं और इन पर पैसा बर्बाद करना कोई होशियारी नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने अकादमी की आ॓र से दिये जाने वाले कुछ प्रतििष्ठत पुरस्कारों पर भी कैंची चलाने की बात कही है। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने केवल हिन्दी अकादमी बल्कि दिल्ली सरकार के तहत आने वाले उर्दू, पंजाबी और सिंधी अकादमियों से भी पुरस्कारों की संख्या पर रोक लगाते हुए इनकी संख्या अधिकतम पांच तक किये जाने का फरमान सुनाया है। हिन्दी अकादमी द्वारा प्रति वर्ष छात्र पुरस्कार के तहत लगभग सात हजार छात्रों को सम्मानित किया जाता था जो अकादमी द्वारा राजधानी के 16 केन्द्रों पर राज्य स्तर पर आयोजित प्रतियोगिता में शामिल होने वाले छात्रों के बीच से चुने जाते थे। इस प्रतियोगिता में 10 हजार से अधिक छात्र शामिल होते थे और अकादमी की आ॓र से दिए गए विषय पर निबंध लिखते थे। तीन वर्गाे में आयोजित होने वाले इस प्रतियोगिता में 6 वर्ष से 35 वर्ष के छात्र और गैर स्कूली छात्र शामिल होते थे। इन्हें अकादमी की आ॓र से सम्मान के रूप में तीन सौ रूपये से 31 रूपये तक की नकद राशि और पुस्तकें दी जाती थी। इसी तरह नये युवा लेखकों के मनोबल को बढ़ाने के लिए दिया जाने वाला नवोदित लेखक पुरस्कारों को भी बंद कर दिया गया है। सूत्रों के अनुसार सरकार की मंशा है दो या तीन प्रतििष्ठत लेखकों को ही सम्मानित करने की है। इस बारे में हिन्दी अकादमी के सचिव डॉ. रविन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि मुझे नही पता कि सरकार ने पुरस्कारों को क्यों कर रोका या बंद किया है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि अभी तक इन सभी पुरस्कारों के वितरण का आदेश उन्हें नहीं मिला है। लेकिन उन्होंने माना कि सरकार ने पुरस्कारों के औचित्य पर केवल सवाल खड़े किए है बल्कि इनकी संख्या कम किये जाने की बात भी कही है। अकादमी के उपाध्यक्ष जानेमाने हास्य कवि प्रो. अशोक चक्रधर ने कहा कि मेरे आने के बाद संचालन समिति की मीटिंग नहीं हुई है इसलिए इस बारे में मै कुछ नहीं कह सकाताhttp://www।google.com/profiles/kavita.vachaknavee
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Dr.Kavita Vachaknavee <kvachaknavee@yahoo.com>
Subject: [ [हिन्दी-भारत] हिन्दी में गुणवतापूर्ण लेखन को पुरस्कार की घोषणा

हिन्दी में नेट पर गुणवतापूर्ण लेखन को पुरस्कार की घोषणा

Google और LiveHindustan.com ने गत दिनों नेट पर गुणवत्तापूर्ण लेखन को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कारों की घोषणा की है क्योंकि गूगल को हिन्दी में अच्छा कंटेंट होने की शिकायत है| और अच्छे लेखन को प्रश्रय देने / बढ़ावा देने के प्रयोजन से इन पुरस्कारों का आयोजन किया जा रहा है| जब मैंने कल यह समाचार पढ़ा कई परिचितों को अग्रेषित किया तो उद्देश्य था कि किसी किसी प्रकार नेट पर हिन्दी के समग्र लेखन को सहेजने सुरक्षित रखने की दिशा में कोई कोई थोड़ा बहुत यत्न ही सही, कुछ करें अवश्य ; अन्यथा ऐसी भाषा के प्रयोक्ताओं के कारण पूरे भाषासमाज उस भाषासमाज के अवदान की गलत छवि बनती है | (समाज-भाषाविज्ञान में `प्रयोक्ता का भाषिकचरित्र और भाषासमाज का इतिहास' जैसे विषय की अवधारणा मानो मन में जन्म ले रही है )|

तिस पर इसी बहाने हिन्दी लेखन, नेट पर हिन्दी सामग्री, उस की गुणवता, पुरस्कारों की धक्कमपेल (राजनीति / बल्कि छद्म) अदि कई विषय एक साथ गड्ड मड्ड हो रहे हैं | मेरा कहना यह नहीं है कि इस आयोजन के भागीदार बनें| बनें| अवश्य बनें| किन्तु इस विचार के साथ चलते हुए बनें कि -

) अन्य भाषाओं विशेषतः अंग्रेजी, फ्रेंच जर्मन से आनुपातिकता की दृष्टि से हिन्दी में गंभीर सामग्री की नेट पर विद्यमानता के सन्दर्भ में इस आकलन से बहुधा सहमत हूँ.


) गत एक वर्ष में हिन्दी की नेट पर स्थिति कुछ बदली है, कई गंभीर लेखक उपक्रम इस दिशा में कार्यरत हैं|


) मेरे विचार से सामग्री की नेट की आनुपातिक कमी का कारण संसाधनों की कमी अथवा गंभीर लेखकों का संसाधनों के प्रति कथित दुराव ही वे कुछ कारण नहीं हैं और ही उपक्रमों से लोग बेखबर है, अपितु कारण कुछ और भी हैं, इनमें -

) उपक्रमों लेखकों, विचारकों के बीच एक `सकारण' की दूरी भी बड़ा कारण है|

) तिस पर छपास की बीमारी के चलते तथाकथित लेखक केवल और केवल अपने लेखन पर ही अपना सारा श्रम, ऊर्जा, धन, समय लगाना चाहते हैं| मानो आज और उन से पहले भाषा में कभी कोई सार्थक लेखन कर के ही नहीं गया, जिसे सुरक्षित रखा जाना अनिवार्य हो| नेट उनके हाथ में एक उस्तरे की मानिंद गया है; सो, कहावत तो पूरी होगी ही|


) जिस देश में पुरस्कार की राशि अपनी जेब से देकर ( ..आदि जैसे हजारों काले कारनामें कर के ) कुछ ज्ञात /सर्वज्ञात/अल्पज्ञात, बहुकालिक/अल्पकालिक/टुच्चे/ श्रेष्ठ आदि सभी प्रकार के पद, पुरस्कार, प्रकाशन हथियाने की बिसातें बिछती हैं वहाँ उस जाति ( हुँह, हिन्दीजाति) से भला क्या और कैसा लेखन सुरक्षित करने की आशा की जाए? इनकी पूरी जाति में तो केवल और केवल वे स्वयं ही महान हुए हैं|


अन्यथा गूगल का पुरस्कार भी तो एक पुरस्कार ही है, इस पुरस्कार के लिए भी बिसातें बिछ रही होंगी, क्या प्रमाण है? (बस अंतर यह है कि इस पुरस्कार की होड़ में भीड़ कम होगी, क्योंकि केवल नेट प्रयोक्ता ही इस मैराथन में भाग लेंगे) और बिसातें सही तो छद्म तो अनिवार्य ही होंगे| प्रदाताओं के पास तक, नहीं तो पाने की तिकड़म तक |

यह तय है |

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