लो क सं घ र्ष !: हिन्दी राष्ट्रीय भाषा नही है ?

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा मानने से इनकार कर दिया है और उन्होंने कहा है की हिन्दी राष्ट्रीय भाषा नही है अपितु सरकारी भाषा हैयह बात शिव सेना, मनसे के अतिरिक्त किसी अन्य ने कही होती तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ , भाजपा सहित उनखे तनखैया पत्रकारों का हिन्दी प्रेम जाग्रत होकर एक उन्माद पैदा करने का कार्य कर रहे होते चूँकि, मामला उन्ही लोगों से सम्बंधित है , इसलिए उनका हिन्दी प्रेम नदारद हैहमारा पहले से ही सुस्पष्ट विचार है की ऐसे तत्व विघटनकारी तत्व हैं जो देश की एकता और अखंडता को कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर, कभी भाषा के नाम पर, कभी प्रान्त के नाम पर नष्ट करना चाहते हैंआज जरूरत इस बात की है कि ऐसे तत्वों को चिन्हित किया जाना आवश्यक है

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

4 टिप्पणियाँ:

संजय बेंगाणी ने कहा…

राजठाकरे तो राजनेता है अपने स्वार्थ के लिए देश को बेच दे, मगर आपकी जमात जो खुद को परम पवित्र समझती है सबसे पहले हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं है का राग अलापने लगी थी. जरा अपनी इस बिकी हुई अंग्रेजीदा पत्रकार कौम के बारे में भी लिखें. नाम दूँ क्या किसने कहा?

गुफरान सिद्दीकी ने कहा…

सुमन जी ऐसे लोगों को पहचानने की ज़रूरत ही नहीं है दरअसल ये खुद ही ऐसे विवाद पैदा कर लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने में लगे हैं वैसे भी बात अगर देश की हो तो ये मराठी मानुष या ये तथाकथित देशभक्त संगठन जिनका जिक्र आपने किया है चूहे के बिल में छुप जाते हैं या खुद विमान में आतंक वादिओं को सवार करके उनके घर दावत भी उड़ा आते हैं और यही काम अगर इनके सिवा कोई और कर दे तो हाय तौबा मचाने लगते हैं और इन कफ़न बेचने वालों से उम्मीद ही क्या की जा सकती है...


आपका हमवतन भाई गुफरान सिद्दीकी (अवध पीपुल्स फोरम अयोध्या फैजाबाद)

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भाईसाहब संविधान निर्माताओं ने हिन्दी को देवनागरी लिपि के साथ राजभाषा का दर्जा दिया था उस समय शंका न थी कि अगले पंद्रह साल में भी हिंदी को पूरी तरह स्थापित न करा जा सकेगा। संविधान लागू होने के पांच साल बाद आयोग गठित हो जो कि राष्ट्रपति को अपनी सिफ़ारिशें दे ऐसी व्यवस्था करी गयी लेकिन प्रभु तब भी भाषाई विवाद ऐसा ही था तभी तो फ़्रेंक एन्थोनी और एम.सी.छागला आदि अपनी राजनीति चमकाए रहे थे।
रजुआ और बलुआ ठाकरे शठ हैं उनके प्रलाप पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
पत्रकारिता की जमात में आने वाले लोग पेड़ से नहीं टपकते संजय भाई तो इनसे भी कुछ अलग चमत्कारिक उम्मीद नहीं करनी चाहिये। जिसे देखो वही तो साला शिक्षा, समाजसेवा, पत्रकारिता को सीढी बना कर नेता बनना चाहता है
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

सही कहा गुरुदेव आपने,
सबका अपना अपना राग है, मगर हम देश हित को छोड़ इन छुटपन पर ध्यान क्यूँ दे रहे हैं.

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