गुफ़रान भाई और दादाजी के आदाब में अंतर
मंगलवार, 12 जनवरी 2010
अब जबकि गुफ़रान भाई भड़ास पर हैं तो इस अभिवादन का दिमाग और दिल दोनो अभ्यस्त हो गये हैं यानि कि "आदाब....."। मुझे अपना बचपन याद आता है जब कि मेरे स्वर्गीय दादाजी जीवित थे और हम सब भाई छोटे-छोटे थे। दादाजी के पैरों में उनकी उम्र के कारण अक्सर दर्द रहा करता था तो वो हम सब भाइयों से बारी बारी से पैर दबवाया करते थे जिसमें हम सबको बड़ा मजा आता था दादाजी के ऊपर खड़े होकर चलने का आनंद ही कुछ और था। जब दादाजी लेटते तो हम सब उनके आसपास मंडराते रहते कि कब हमारा मौका लगे पैर दबाने का, दादाजी अपने खास मथुरा वाले अंदाज में हम सबको नाम लेकर आवाज देते फिर मेरा नंबर आता तो दादाजी आवाज लगाते... अज्जी(मेरा प्यार का नाम जो सिर्फ़ दादाजी ही लिया करते थे)!! आ दाब, अब तेरी बारी है आदाब।
दादाजी का आ दाब इतना ट्यून्ड रहता था कि गुफ़रान भाई के आदाब के करीब जान पड़ा गहरा प्यार भरा। मुझे नहीं पता कि इस अभिवादन आदाब का शाब्दिक अर्थ क्या होता है लेकिन बस दादाजी याद आ गये। गुफ़रान भाई धन्यवाद
जय जय भड़ास
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