महिला की बेनामी टिप्पणी
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
पहली बार किसी महिला की बेनामी टिप्पणी आयी है हो सकता है कि ये किसी महिला की टिप्पणी न होकर किसी ऐसे माहिल की हो जो कि अपने मन में महिला बनाने की तमन्ना दबाए बैठा हो तभी तो बेनामी टिप्पणी में भी उसकी दबी चाहत निकल कर आ गयी है। वैसे भड़ास पर बेनामी टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं करा जाता है लेकिन इस टिप्पणी में हमें जिस तरह स्त्रियोचित अंदाज में गरिआया गया है उस पर हमें ये लगा कि इसका प्रकाशन अनिवार्य है वरना उस बेचारी महिला/माहिल की भावनाएं आहत होंगी, हमारा क्या है हमारे लिए तो गालियाँ हमारे कार्य के प्रतिसाद स्वरूप हुई एक प्रतिक्रिया मात्र है बस थोड़ी सी कठोर है। हम स्त्रीत्व का सम्मान करते हैं कहते वह आक्रोश में गरिया ही क्यों न रहा हो।
जय जय भड़ास
जय जय भड़ास
3 टिप्पणियाँ:
गुरुदेव, इसे देख कर मैंने अनदेखा कर दिया मगर आपने जिस गूढता को पकड़ा उस से तो हमें जाना पहचाना बेनामी लगा जिसने पहले भी गन्दी लड़की का गंध फैलाया था, मानसिक बीमार और दिवालिया हो चुके इन महाशय या महाशयी या फिर आप ही उचित शब्द दें को हम नि:संदेह सम्मानित करते यदि ये गुमनाम होते हुए भी अपने पहचान से आते.
मगर सामाजिक चूतिये अपनी चुतियापा से बाज थोड़े ना आते हैं और अपनी हड्कतों को ऐसे ही नजाम देते हैं .
जय जय भड़ास
भाई ये गन्दी लड़की के नाम से लिखने वाला और स्त्रीत्व को बौद्धिक सामान की तरह ब्लागिंग में बेचने वाला यशवंत सिंह हो सकता है लेकिन मानना पड़ेगा हमारे बड़े भाई साहब को जिन्होंने भड़ास के दर्शन को एकबार फिर स्पष्ट कर दिया
जय जय भड़ास
...आपने बहुत ही सभ्य भाषा का इस्तेमाल किया रुपेश जी आप धन्य हैं.... शुक्रिया आपका..।
प्रणव सकसैना amitraghat.blogspot.com
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