फकीर है झोला उठा कर चल देगा
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एक राज्य का राजा मर गया। अब समस्या आ गई कि नया राजा कौन हो? तभी महल के बाहर
से एक फ़क़ीर गुजर रहा था। किसी ने सलाह दी कि इस फ़क़ीर को बना दो, न इसके
कोई आ...
1 दिन पहले
3 टिप्पणियाँ:
हैदर साहब ने बिल्कुल सही लिखा है हम तो सहमत हैं भाई। अगर किसी जगह चोर डाकुओं की अधिकता हो तो गया न तेल लेने प्रजातन्त्र.... शरीफ़ आदमी की तो ये रोज उठते बैठते लिया करेंगे
जय जय भड़ास
अरे भाईसाहब वेतन आयोग की सिफ़ारिशों पर जो पगार बढ़ जाती है तो आयकर की सीमा का क्या करेंगे जो सरकार आपसे इस रास्ते से दिया पैसा वापिस खींच लेती है। साला बारह महीने काम करा कर साढ़े दस माह की ही पगार हाथ आती है बाकी इन सुअरों की चर्बी में तब्दील होने के लिये वापिस चली जाती है
जय जय भड़ास
ये सब है माया' की माया ,उनको है वह सींचती जो है उसका सरमाया ।
अब पेले दण्ड ,लगाये तेल .यह हैं भय्या बहुमत का खेल .
पहले भगाई अपनी गरीबी ,अब खाएं मलाई उहके करीबी ...
प्रजातंत्र ---आबाद होने का यंत्र ...बहुमत -----लूटने का संयंत्र ॥
........सुंदर रचना
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