आस्था और भोजन का जुड़ाव के भी चिन्ह हैं हमारे पास

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010



हो सकता है कि आप में से कई लोगों ने देखा और खाया होगा लेकिन मैंने कल पहली बार "रामफल" देखा और खाया। जो आदिवासी महिला सड़क पर वो फल बेच रही थी उसने भावविभोर होकर बताया, दादा ! जब भगवान राम वनवास के दौरान महाराष्ट्र आए थे तब उन्होंने, माता सीता और लक्ष्मण जी ने जंगली फल खा कर ही समय निकाला था बड़े कष्ट में दिन गुजारे थे। याद आता है कि जब रमजान माह आता है तो रोज़ा खोलते समय भी खजूर का फल हाथ में आने पर ऐसी ही चर्चा अक्सर निकल पड़ती थी कि नबी मुहम्मद साहब ने भी अपने कष्ट के दिनों में इस फल पर दिन गुजारे थे। आस्था की जड़े समाज में इतनी गहरी होती हैं कि हर आयाम में समाई हुई हैं हमारे आचरण से लेकर भोजन तक में इसके निशान हैं। मुनव्वर आपा ने मुस्करा कर कहा कि देखिये भगवान राम के अस्तित्व पर हमारी सरकार सवालिया निशान लगा सकती है लेकिन इस बात का क्या करेंगे कि उनके वजूद की छाप हमारे देश में जगह-जगह है। रामफल खाकर हमने भी भगवान राम को एक बार याद कर ही लिया जिन्होंने आर्यों के समाज में एक आदर्श स्थापित करा है।
जय जय भड़ास

2 टिप्पणियाँ:

हरभूषण ने कहा…

मटन खाकर दारू पीकर रावण को याद कर लेना चाहिये उसके द्वारा लिखित क्रष्ण यजुर्वेद में ये सब जायज कर दिया गया था। अनूप मंडल वाले सही कहते हैं कि आजकल हम जो ग्रन्थ पढ़ रहे हैं उनमें घालमेल करा गया है
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

वाह बहुत खूब,
हम तो खाने से रह गए लेकिन भड़ास माता और गुरुदेव ने चखा तो हम भी तृप्त हो गए.
नि:संदेह आस्था का ये सागर ही है जो देश के विघटनकारी, आतंकी देशद्रोही और वैमनाश्वी लोगों को पनपने का मौका देती है.
जय जय भड़ास

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