यदि सरकार की नजर में कुत्ते हैं तो हम भौंक कर अपना विरोध दर्ज कराएं

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

अभी हाल ही में मैंने भड़ासियों की तरफ़ से हमारे लोकसंघर्ष के महायोद्धा वकील साहब श्री रणधीर सिंह सुमन जी से फोन पर बात करी ये जानने के लिये कि आखिर ये क्या चल रहा है। उन्होंने जो कुछ भी बताया वह अत्यंत क्षुब्ध कर देने वाला है। बहन सीमा और उनके पति विश्वविजय के साथ ही एक सहयोगी आशा बहन पर भी सरकार के विरोध में विधि-विरुद्ध गतिविधियों में सलग्न होने का मामला दर्ज करा कर जेल में ठूंस दिया है अभी तक जमानत नहीं हुई है। आप जानते हैं कि ये "सरकार के विरोध में विधि-विरुद्ध गतिविधियां" क्या कहलाती है? भाई सुमन जी ने कानून के जानकार होने के नाते बताया कि यदि आप ये कहते हैं या लिखते हैं कि मौजूदा सरकार भ्रष्ट है,मिलावटखोरों की सरकार है या ऐसे ही कुछ अपने दिल की पीड़ा को बयान कर देते हैं तो बस तैयार हो जाइये सजा भुगतने के लिये वो भी कितनी....??? आजीवन कारावास तक हो सकता है। अगर किसी की ये जान कर फटने लगी हो तो मेहरबानी करके भड़ास की तरफ का रुख न करे क्योंकि हम तो जनसामान्य का रोष और आक्रोश यहां शब्दों में दर्ज करते हैं इसके लिये एक जीवन नहीं जब तक दुनिया बनाने वाला इस दुनिया में भेजता रहेगा तब तक जेल में ही जन्म लेने को तैयार हैं, इसे पागलपन कहिये या देशप्रेम लेकिन ये भड़ास के दर्शन का आधार है कि यदि हमें कभी वैचारिक सर्जरी के आरोप में सजा हो तो बेहतरी के लिये हम भुगतने को हंसते हुए तैयार रहें। देश और देशवासियों के लिये ये करने का निमित्त यदि ईश्वर ने हमें चुना है तो ये सौभाग्य है। भाई सुमन जी ने बताए के हिसाब से देखें तो स्थिति तो ये है कि एक दिन ऐसा आ जाएगा कि आप गूंगे,बहरे और अंधे बन कर रहें तभी जी सकते हैं यदि जरा भी चूं-चां करी तो आपकी ऐसी ली जाएगी कि सारी क्रान्ति का इरादा पिछवाड़े घुस जाएगा।
हम यदि सरकार की नजर में कुत्ते हैं तो हम भौंक कर अपना विरोध दर्ज कराएं क्योंकि हम गैंडे जैसी खाल वाली सरकार को काटने के चक्कर में अपने दांत गंवा बैठेंगे इसलिये भौंकिये,कांव-कांव करके सत्ता के प्रमाद में आकर बहरी और बेसुध हो चुकी सरकारें बौखला जाएं, ज्यादा से ज्यादा जान जाएगी यार..... कोई बात नहीं वो तो जानी ही है कौन साला हमेशा रहना है इसी काम के निमित्त ही सही...।
महामहिम राष्ट्रपति को उनकी वेबसाइट पर जाकर इस घटना की निंदा कड़े से कड़े शब्दों में निडर होकर दर्ज कराएं ताकि पहले नागरिक को पता तो चले कि आखिरी नागरिक नाखुश है,आक्रोश में है,पीड़ित है,उत्पीड़ित है और वो कानून के दांवपेंच नहीं समझता इसलिये सड़कों पर आकर पत्थर चलाने लगता है ये न हो इससे पहले इस दर्द का उचित इलाज तलाश लिया जाए न कि कराहने वालों को मार ही डाला जाए और ये कानून बना दिया जाए कि अब से स्वतंत्र भारत में कराहना जुर्म है।
आवाज उठाओ यारों वरना इसी तरह लोकतंत्र की रक्षा के लिये बने कानूनों को तुम्हारे ही खिलाफ़ दमनकारी शस्त्र की तरह प्रयोग करा जाता रहेगा।
बहन सीमा,बहन आशा और भाई विश्वविजय हम नैतिक तौर पर आपके साथ हैं बस हिम्मत हारना.....
जय जय भड़ास

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