आय वान्ट टु शूट जस्टिस टहिलयानी
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
मैं पहले आप सबकी जानकारी के लिये बता दूं कि जस्टिस टहिलयानी कौन हैं जिन्हें मैं शूट करना चाहता हूं। ये महाशयएक न्यायाधीश हैं जो कि मुंबई हमले के गिरफ़्तार जीवित आरोपी अजमल आमिर कसाब के ऊपर चल रहे मुकदमें की सुनवाई कर रहे हैं। तुकाराम ओंबले जैसे बहादुर शहीद ने अपनी जान दांव पर लगा कर कसाब को गिरफ़्तार करवा दिया। हमारी आदरणीय संवैधानिक प्रणाली अभी तक ये सिद्ध नहीं कर पायी है कि कसाब दोषी है या नहीं। उसे मुहैया कराए गये हमारे स्वदेशी कानूनवेत्ता रोजाना नयी नयी तरकीबें सुझाते हैं जिसके चलते मुकदमा है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। मीडिया को कानूनी प्रक्रिया से दूर रखा जाता है और मीडियाई भोंपू सिर्फ़ वकीलों को चाट कर जो उगलते हैं जनता तक वही आ पाता है जैसे कि कसाब को रोजा रखना है, उसे मटन बिरयानी चाहिए, वो मराठी बोल रहा है वगैरह ....वगैरह.....वगैरह। न्याय की प्रक्रिया एक बंद कमरे में करी जाती है जहां वकील और जज के साथ आरोपी क्या कबड्डी खेल रहे हैं ये जानने का अधिकार अब तक हमारे लोकतंत्र(?) ने जनता को नहीं दिया है वो जनता जो सरकार बनाती है।
मेरी दिली तमन्ना है कि मैं कसाब के ऊपर चल रहे मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस टहिलयानी जी को उस न्यायिक प्रक्रिया के दौरान कैमरे पर शूट करूं और जनता को दिखाऊं कि देखिये हमारी न्याय प्रणाली क्या है और उसमें क्या मजबूती या कमी है जिसके कारण मामले इतने विलंबित हो जाते हैं। जब लोकसभा राज्यसभा आदि की कार्य प्रणाली का सीधा प्रसारण करा जा सकता है कि हमारे चुने हुए प्रतिनिधि सदन में क्या व्यवहार कर रहे हैं तो फिर क्या वजह है कि जो न्याय हमारी भारतीय सभ्यता में सदा से ही खुले प्रांगण में जनता के सामने होता आया है वह ऊंचे स्तर पर जाकर कमरे में बंद और गोपनीय क्यों हो जाता है यहां तक कि ईश्वरीय न्याय तक एक दम खुला है कि जो बोओगे वहीं काटोगे तो फिर हमारी न्याय प्रणाली में क्या ऐसा है कि उसे गोपनीयता दी जा रही है। यही जानने की इच्छा बाध्य कर रही है कि मैं इस मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश जस्टिस टहिलयानी को कैमरे पर शूट करूं। धीरे धीरे मंहगाई गरीबी और बेकारी जैसे मुद्दे शाहरुख खान की ओट में चले जाते हैं कसाब का मामला तो लोग भूल से गये हैं जैसे अफ़जल गुरू को नयी पीढ़ी जो कि वैलेन्टाइन डे मना रही है भुला चुकी है या जानती ही नहीं।
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
sach me .... sirf isi ek ko marne se kaam nahi chalega....
ese kamjarfon ki kami nahi bhagwan ki daya se apne desh me...
fir ek khoon ko saja bhi wo hi hai jo 500-1000 khoon ki hai...
to ek kamre men ese logo ko jama karke uda dene chahiye...
na rahega paapi na hoga paap...
शीर्षक ने तो डरा ही दिया था जी, कि डाक्टर साहब क्या कह रहे हैं। पता नहीं हमारी न्याय प्रणाली में ऐसे ही कब तक चलता रहेगा और लोग भूलते चले जाते हैं।
प्रणाम
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