लो क सं घ र्ष !: तूने जो मूँद ली आँखें

सोमवार, 29 मार्च 2010

पलक झपकते ही तूने जो मूँद ली आँखें,
किसे खबर थी कभी अब ये खुल पाएंगी
मेरी सदाएँ, मेरी आहें, मेरी फरियादें,
फ़लक को छूके भी नाकाम लौट आएँगी

जवान बेटे की बेवक्त मौत ने तुझको,
दिए वो जख्म जो ता़ज़ीश्त मुंदमिल हुए
मैं जानता हूँ यही जाँ गुदाज़़ घाव तुझे,
मा-आलेकार बहुत दूर ले गया मुझसे

वह हम नवायी वाह राज़ो नियाज़़ की बातें,
भली सी लगती थी फहमाइशें भी मुझको तेरी
एक-एक बात तेरी थी अजीज तर मुझको,
हज़ार हैफ् ! वो सव छीन गयी मता--मेरी

हमारी जिंदगी थी यूँ तो खुशग़वार मगर,
जरूर मैंने तुझे रंज भी दिए होंगे
तरसती रह गयी होंगी बहुत तम्मानाएँ,
बहुत से वलवले पामाल भी हुए होंगे

ये सूना-सूना सा घर रात का ये सन्नाटा,
तुझी को ढूँढती है बार-बार मेरी नज़र
राहे-हयात का भटका हुआ मुसाफिर हूँ,
तेरे बगैर हर एक राह बंद है मुझपर

मगर यकीं है मुझे तुझको जब भी पा लूँगा,
खतायें जितनी भी हैं सारी बक्श्वा लूँगा

ता़ज़ीश्त-आजीवन, मुंदमिल- धुन्धलाना, वलवले- भावनाएँ, हैफ् - अफ़सोस, मता-- सम्पत्ति

महेंद्र प्रताप 'चाँद'
अम्बाला
भारत

पकिस्तान के रावलपिंडी से प्रकाशित चहारसू (मार्च-अप्रैल अंक 2010) से श्री गुलज़ार जावेद की अनुमति से उक्त कविता यहाँ प्रकाशित की जा रही हैजिसका लिपिआंतरण मोहम्मद जमील शास्त्री ने किया है

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

0 टिप्पणियाँ:

प्रकाशित सभी सामग्री के विषय में किसी भी कार्यवाही हेतु संचालक का सीधा उत्तरदायित्त्व नही है अपितु लेखक उत्तरदायी है। आलेख की विषयवस्तु से संचालक की सहमति/सम्मति अनिवार्य नहीं है। कोई भी अश्लील, अनैतिक, असामाजिक,राष्ट्रविरोधी तथा असंवैधानिक सामग्री यदि प्रकाशित करी जाती है तो वह प्रकाशन के 24 घंटे के भीतर हटा दी जाएगी व लेखक सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी। यदि आगंतुक कोई आपत्तिजनक सामग्री पाते हैं तो तत्काल संचालक को सूचित करें - rajneesh.newmedia@gmail.com अथवा आप हमें ऊपर दिए गये ब्लॉग के पते bharhaas.bhadas@blogger.com पर भी ई-मेल कर सकते हैं।
eXTReMe Tracker

  © भड़ास भड़ासीजन के द्वारा जय जय भड़ास२००८

Back to TOP