पुष्पा के साथ स्कूल जा रहे हैं

बुधवार, 17 मार्च 2010

शिरीष खरे

``मैं रात को ये सोचके जल्दी सो जाती हूं कि सुबह जल्दी उठूंगी, और एक और दिन स्कूल जाने को मिलेगा।´´- ऐसा कहना है पुष्पा का, 10 साल की पुष्पा उड़ीसा के कुमियापल्ली गांव से है। हम पुष्पा के साथ स्कूल जा रहे हैं और वह बता रही है- ``हमारी मेडम हमें ऐसी ऐसी बातें बताती हैं, जो हमें पता तक नहीं होती हैं। वो हर रोज नई खिड़की खोलती है, और उसमें से बाहर देखने को बोलती है। हम रात को जो बातें सोचके सोते हैं, दिन को वो पूरा-पूरा बता देती है। हम सोचते है कि यह तो इतना आसान है तो..... ´´

कुछ महीने पहले तक, पुष्पा इतनी खुशी-खुशी स्कूल नहीं जाती थी, न तो उसके दिन इतने महकते थे, न ही रात इतनी चमकती थी। अपने गांव की बहुत सारी लड़कियों की तरह वह तो घर के ढ़ेर सारे कामों से बंधी थी। मां के साथ हाथ बंटाने से लेकर छोटी बहन को सम्भालने तक, कई बड़े सवालों को अपने नन्हे कंधों पर लदे फिरती थी। जहां तक उसके स्कूल का सवाल है तो वहां का हाल यह था कि भवन तो अपनी जगह सही सलामत था, मगर कक्षा में न तो बच्चे हाजिर रहते थे और न ही टीचर। इसलिए हर साल 50 में से 15-20 बच्चे स्कूल छोड़ देते थे। पुष्पा बता रही है- ``मुझे तो इतना तक समझ नहीं आता था कि वहां पढ़ाया क्या जा रहा है, तभी तो मैंने स्कूल जाना छोड़ दिया था।´´ दोपहर के भोजन की बात सुनते ही उसने कहा `बहुत गन्दा था`।

और आज न केवल पुष्पा हमारे साथ स्कूल जा रही है, बल्कि उसके कुछ अरमान भी हैं जैसे आगे बहुत पढ़ना, लिखना, सीखना, समझना, कुछ कर गुजरना इत्यादि। जो उसे पहली बार देखता है वो उसके भीतर आए बदलाव को नहीं जान पाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वो उसे पहली बार जो देख रहा होता है, जबकि उसे क्या पता कि इससे पहले तक यह लड़की क्या थी, उसे तो यह लड़की भी कक्षा की दूसरी लड़कियों जैसी ही हिन्दी-अंग्रेजी पढ़ती नज़र आती है। पर जो उसे शुरू से जानता है वो पुष्पा की वैसी से ऐसी दुनिया में आए अन्तर को भी जानता है। वो जानता है कि पुष्पा आर्थिक-सामाजिक तौर पर कभी न टूटने वाले बंधनों को कैसे तोड़कर आई है। तभी तो पुष्पा की यह कहानी मानो तो एक बड़े अन्तर की कहानी लगती भी है, और न मानों तो नहीं भी लगती है।

पुष्पा को शुरू से जानने वालों के नज़रिए से उसके घर से स्कूल के बीच का अन्तर अब कुछ भी नहीं बचा है और ऐसा `क्राई´ के सहयोग से काम करने वाली संस्था `आधार´ की हौंसलाअफ्जाई से सम्भव हुआ है। गांव के स्कूल की पढ़ाई-लिखाई दुरूस्त हो- गांव का हर आदमी यही तो चाहता था। फिर भी सबकी अपनी-अपनी और रोज-रोज जीने की जद्दोजहद ने इस ओर कुछ करने से रोके रखा था। `आधार´ के कार्यकर्ताओं ने पूरे गांव भर को इस ओर एक तारीख और एक चौपाल पर लाकर मिला भर दिया था। जहां पूरा गांव इस बिन्दु पर एकमत हुआ था कि जब तक स्कूल में कोई टीचर नहीं आएगा तब तक बच्चों की पढ़ाई-लिखाई सुधरने वाली नहीं है। सभी ने फैसला लिया कि जिले के अधिकारियों के सामने जाकर नए टीचरों के लिए मांग की जाएगी। उन्होंने ऐसा किया भी, जिसके चलते गांव के स्कूल में एक पढ़ी-लिखी लड़की मेडम(टीचर) बनकर आई। यहीं से गांव की शिक्षा व्यवस्था के रात-दिन दुरूस्त होने लगे। `आधार´ द्वारा मेडम के जरिए बच्चों के लिए सहभागिता पर आधारित शिक्षण की कई विधियां प्रयोग में लायी गईं। इसके सामानान्तर ज्यादातर परिवारों को शिक्षा के मायने बताने और उनके बच्चों से मित्रता की गांठे पिरोने का क्रम भी चलता रहा। नतीजा यह रहा कि यहां से पढ़ने-पढ़ाने के ऐसे पाठ शुरू हुए कि कुमियापल्ली के इतिहास में अब एक `आदर्श स्कूल´ का अध्याय जुड़ चुका है।

आज पुष्पा के स्कूल में दो टीचर हैं। इसलिए आज पुष्पा की सभी सहेलियां भी स्कूल जा रही है, इसी साल 85 बच्चों को भी स्कूल में दाखिल किया गया है। देश में 14 साल तक के बच्चों के लिए पढ़ने का कानून बन चुका है और कुमियापल्ली गांव में 14 साल तक का एक भी बच्ची-बच्चा ऐसा नहीं है जो स्कूल के रास्ते पर न चलता हो। उन सबके लिए ये रास्ते ये पल इतने हसीन हैं कि उनमें पूरी एक सदी और जिन्दगी की नरम उम्मीदें छिपी हैं। उसके ऊपर ताजा खबर यह है कि अगले साल उसके स्कूल की दो नई कक्षाओं को बनाये जाने और सामुदायिक टीचर चुने जाने को मंजूरी मिल चुकी है।

पुष्पा रोजाना स्कूल जाने वाली उन लड़कियों में से एक है जो अपनी कक्षा में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती हैं। जो अपने पाठ्यक्रम की किताबों से जहां बहुत प्यार करती है वहीं खेलकूद में भी गहरी दिलचस्पी रखती है। तभी तो उसने सरकार द्वारा आयोजित कई क्षेत्रीय खेल प्रतियोगिताओं में बहुत से पुरस्कार जीते हैं। हमेशा पढ़ते रहने की बात पर वह कहती है- ``मैं पढ़ते-पढ़ते जब बड़ी हो जाऊंगी तो मेडम जैसे ही छोटे बच्चों को पढ़ाऊंगी।´´ तो सुना आपने चौथी में पढ़ने वाली यह बच्ची बड़े गर्व से मेडम (टीचर) बनने का ऐलान कर रही है।


भले ही पुष्पा इतनी ऊंचाई पर नहीं पहुंची हो कि स्कूल की दीवारे उसे नज़रें उठाके देखें। मगर उसके समय से रात के अंधेरे ढ़ल चुके हैं और उसके परिवार ने भी यह जान लिया है कि स्कूल की दुनिया बहुत प्यारी और खुशियों से भरी होती है। इसीलिए तो इस रफ़्तार से पुष्पा स्कूल जा रही है कि उसके परिवार की आर्थिक तंगी में उसे रोक नहीं पा रही है। कुमियापल्ली गांव में बहुत सारे समूह हैं जो समुदाय में लिंग, जाति और वर्ग से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए सक्रिय हैं। जो पुष्पा जैसी बच्चियों के परिवार वालों की आर्थिक तंगी दूर करने के लिए उन्हें मनरेगा और पंचायत की दूसरी योजनाओं से जोड़ रहे हैं। तो कुछ इस तरह से यहां के समूह कुमियापल्ली के सभी बच्चों के लिए समान अवसर जुटाने में तत्पर नज़र आ रहे हैं।

सवाल यह नहीं है कि कुमियापल्ली गांव उड़ीसा के किस जिले के किस प्रखण्ड में है, यह तो भारत के अनगिनत गांवों की तरह अंधेरे में डूबा एक ऐसा गांव है जहां सूरज के गर्म होते ही कुछ खाने के लिए कुछ करने का सवाल गर्म होने लगता है। यहां से सबक यह भर है कि कुमियापल्ली गांव में जिस तरीके से समुदाय के नजरिए और विचारों को बदलकर पुष्पा जैसी लड़कियों को स्कूल भेजा जा रहा है, तो उसी तरह के तरीकों से देश की बाकी लड़कियों को भी स्कूल भेजा जा सकता है।

चलते-चलते
पुष्पा के साथ स्कूल जाने वाली कहानियां हमारी आंखों में उम्मीद के दीये जलाती हैं, मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके पड़ोस के गांव सहित देश की 50% से भी अधिक स्कूल पुष्पाओं के नाम तक स्कूलों में दर्ज नहीं हो सके हैं। इनमें से कइयों को 12 साल की उम्र तक आते-आते स्कूल से ड्रापआऊट हो जाना पड़ता है। 2001 की जनगणना के मुताबिक 49.46 करोड़ महिलाओं में से 22.91 करोड़ महिलाएं (53.67%) अनपढ़ हैं। एशिया में अपने देश की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। असल बात तो यह है कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में `लड़कियों की शिक्षा´ को खास स्थान दिए बगैर उनकी स्थितियों में सामान्य बदलाव लाना तक मुमकिन नहीं होगा।

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शिरीष खरे ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ के ‘संचार-विभाग’ से जुड़े हैं।

संपर्क : shirish2410@gmail.com
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As a part of CRY, I dedicate myself to mobilising all sections of society to ensure justice for children.

1 टिप्पणियाँ:

Chhaya ने कहा…

Aap jaise logo ke bare mein padh kar insaan hone pe garv hota hai. Warna kabhi kabhi to janwar bhi humse jyada achche lagte hain.

Very well Done :)

We are all so proud of u!

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