बाबरी मस्जिद टूटने के दौरान दो राक्षस कोठारी जैन मरे थे उनका वहाँ क्या काम था?
बुधवार, 31 मार्च 2010
बाबरी मस्जिद को गिराने वालों में जैन राक्षसों का क्या काम था कभी न तो किसी हिंदू ने सवाल करा न ही किसी मुसलमान ने। आप सब जानते हैं कि जैन हिंदू नहीं होते हैं वे मूर्तिपूजक होते हैं लेकिन वेदों को नहीं मानते उनके अपने नग्न देवी-देवता हैं(दुनिया में शायद ही कोई सभ्यता नग्नता को उपास्य बताती हो लेकिन इन लोगों ने हिन्दुओं में भी मूर्तिपूजा,लिंगपूजा आदि घुसा दिया,इनके राक्षस साधुओं के वेश में अनेक सम्प्रदाय बना कर हिन्दू बने बैठे रहे जिससे कि वेदों को मानने वाले निराकार ब्रह्म के उपासक भी नग्नता से जुड़े माने जाएं और इनको सम्बल मिले) मुस्लिम लोग इन्हें हिंदू ही मानते हैं ये उनका भ्रम है। अब देखिये कि किस तरह इन राक्षसों ने बाबरी मस्जिद के टूटने के प्रकरण में अपना राक्षसी कार्य करा है। आप सब जानते हैं कि कारसेवकों में दो कोठारी बन्धु थे जो कि मारे गए, बाबरी मस्जिद के टूटने के बारे में यदि सत्य विवरण जानना है तो उस समय अयोध्या में तैनात एस.एस.पी. श्री देवेन्द्र बहादुर राय की लिखी पुस्तक पढ़ें( अयोध्या-६ दिसम्बर का सत्य, प्रकाशक- सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली ११०००२)। पुस्तक के लेखक लिखते हैं कि कारसेवा सामान्य तरीके से प्रतीकात्मक हो रही थी तभी कुछ उपद्रवी लोगों ने बैरीकेड तोड़ कर विवादित स्थल पर तोड़फोड़ शुरू कर दी। हम दावे के साथ कह सकते हैं कि ये उपद्रवी कोई और नहीमं बल्कि कारसेवकों के बीच में रामभक्त बन कर घुसे राक्षस ही थे जिनमेम से दो राक्षस कोठारी बंधु(जैन) मारे गये लेकिन इन राक्षसों ने आत्मघाती तरीका अपना कर भारत के निर्मल लोकतांत्रिक चेहरे पर कलंक लगा दिया बाबरी मस्जिद को तुड़वा कर। अब ये समस्या कभी नहीं सुलझेगी और राक्षसों का मनोरथ पूरा हो गया है हिन्दू-मुसलमानों मे बीच जो दूरी अंग्रेजों ने लायी थी उसे शायद समय मिटा देता लेकिन ये राक्षसी घाव कभी नहीं भरेगा। आप लोग हिन्दू धार्मिक कार्यों में जैनों की मौजूदगी को क्यों नहीं समझते???????
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
15 टिप्पणियाँ:
उपरोक्त लेखक दिमागी तौर पे शायद दिवालिया हो चूका है
बेटा मक्कार लोकेश नाम के चिरकुट अगर तेरे पास दिमाग है और दम है जो कि दिवालिया नहीं हुआ है तो जरा अपनी सही पहचान के साथ सामने आ। तुझमें कितना साहस है सच स्वीकारने का ये तो दिखता है कि तेरा कोई प्रोफ़ाइल ही नहीं है तेरे नाम पर क्लिक करने के बाद तेरे बापों का नाम तक नहीं मिलता
जय जय भड़ास
jankari durust kijiye...kothari bandhu 2 nov. 1990 ko ayodhya me police kee goli ka shikar hue the..babri demolition 1992 ko hua
bahut sahi. mara chhakaa. ho gaye sab bhauchakka
@Abul bashar
महाशय जी,आश्चर्य है कि आप ने जितनी बारीकी से इस पोस्ट में ये देखा है कि कोठारी(जैन)बंधु कब और कहां मारे गए थे उतनी ही बारीकी से अगर इस जहालत को दूर कर पाते कि कारसेवा में जैनियों का क्या काम जब कि ये हिन्दू हैं ही नहीं,ये राक्षस कब से राम भक्त हो गये? क्या पूरी पोस्ट में कहीं भी ये लिखा है कि इन राक्षसों ने इस आग को लगाने के लिये यह आत्मघाती प्रयोग कब और किस समय करा है जरा ये तलाश कर तो बताइये। इन राक्षसों की मौत को आप कारसेवा से तो जोड़्ते हैं लेकिन बाबरी मस्जिद शहीद होने के प्रकरण से बिलकुल बरी कर रहे हैं ये आपकी उदारता है कि आपकी शत्रुता सिर्फ़ हिन्दुओं से है।
रही बात एजाज़ एहमद इदरीसी जी कि तो मैंने एक टिप्पणी सच्चे दिल से इनकी पोस्ट पर क्या लिख दी बौखला कर भड़ास पर भागे चले आए इससे पहले शायद जानते ही न होंगे कि भड़ास भी कोई पत्रा है इन्हें भी सिर्फ़ एक ही राग आता है जिसमें से एक आवाज आती है कि सारे मनुष्य मुसलमान बन जाएं और फिर औरतों को रगड़ें चरित्रवान बनने की घुट्टी पिला कर खुद चाहे कुछ भी करें। भड़ासी इन महोदय के पत्रा पर मेरी टिप्पणी पर जरा नजर मारें।
जय जय भड़ास
दिमाग का दही मत बना भाई अनूप मंडल , तुम सिर्फ पागल ही नहीं महा ............. भी हो ,तुम्हारा पागल अनूप तुम्हे सद्बुधि दे , पर उस के ही पास नहीं थी तो तुम्हे क्या देगा
फरहीन नाज बहन आप के कहने का मतलब है की यदि जैन हिंदू है ही नहीं तो वह क्या काम , मतलब या तो जैन हिंदू है या राक्षसहै , इस का मतलब जितने भी आतंकवादी हमले भारत में याबहर देशो में होते है , वह ज्यादातर मुस्लमान ही साथ में होते है , आप के अनुसार या तो वो मुस्लमान ही नहीं है या वो आतंकवादी है , अगर मै कही गलत हू या सझने में गलती की है तो जरा इस विचार विमर्श को आगे बढ़ा देना
मैडम आप जो भी हैं पर आपने जो बार बार जैन धर्मावलम्बियों को राक्षस कहा है ये एक नए झगडे की शुरुआत कर रही हैं जिसकी कोई जरूरत अब नहीं जान पड़ती
पहले ही भारत में धर्म के नाम पर काफी दंगे होते रहे हैं और शायद भारत की किस्मत इतनी अच्छी नहीं की आगामी भविष्य में ये दंगे बंद ही हो जाएँ
तो फिर क्या जरूरत है इन सब गलत शब्दों की
दूसरी बात
बाबरी मस्जिद बाबर जैसे आक्रान्ता का स्मारक जैसा था तो फिर इसके टूट जाने पर इतनी गुहार क्यूँ?
ये मत समझिये की मै मुस्लिम विरोधी हूँ
मेरे दोस्तों में ७०% मुस्लिम हैं
मेरा बेस्ट फ्रेंड भी मुस्लिम ही है
पर जो बात सही है वो हर दशा में सही रहेगी
वैसे भी भारत में जितने मस्जिद हैं उतने विश्व के किसी मुस्लिम देश में भी नहीं हैं पर अगर बाबरी स्मारक गिराया गया तो इसलिए की वो मस्जिद नहीं बल्कि एक आक्रान्ता द्वारा निर्मित स्मारक था
अतः इस बात को यही ख़तम कर देना उचित है
जय हिंद
मैडम आप जो भी हैं पर आपने जो बार बार जैन धर्मावलम्बियों को राक्षस कहा है ये एक नए झगडे की शुरुआत कर रही हैं जिसकी कोई जरूरत अब नहीं जान पड़ती
पहले ही भारत में धर्म के नाम पर काफी दंगे होते रहे हैं और शायद भारत की किस्मत इतनी अच्छी नहीं की आगामी भविष्य में ये दंगे बंद ही हो जाएँ
तो फिर क्या जरूरत है इन सब गलत शब्दों की
दूसरी बात
बाबरी मस्जिद बाबर जैसे आक्रान्ता का स्मारक जैसा था तो फिर इसके टूट जाने पर इतनी गुहार क्यूँ?
ये मत समझिये की मै मुस्लिम विरोधी हूँ
मेरे दोस्तों में ७०% मुस्लिम हैं
मेरा बेस्ट फ्रेंड भी मुस्लिम ही है
पर जो बात सही है वो हर दशा में सही रहेगी
वैसे भी भारत में जितने मस्जिद हैं उतने विश्व के किसी मुस्लिम देश में भी नहीं हैं पर अगर बाबरी स्मारक गिराया गया तो इसलिए की वो मस्जिद नहीं बल्कि एक आक्रान्ता द्वारा निर्मित स्मारक था
अतः इस बात को यही ख़तम कर देना उचित है
जय हिंद
पहले वही बात anonymous जी ने लिखी फिर वही बात आनंद जी ने क्या गड़बड़झाला है या बेनाम महाशय ने अपना नाम रख लिया कमेंट देने के लिये?
जय जय भड़ास
हरामखोर तू जरुर कोई मुसलमान है जो हिंदुओ को आपस मे लड़वाना चाहता है
तो सुन जैन हिन्दु ही होते है.
और कोठारी बंधु राम मंदिर के लिये शहीद हो गये थे.
जिन पर हमे गर्व है
बाबर के वन्सजो पाकिस्तान के भाड खाऊऔ महाराक्षसौ कुछ तो शमं करो
बाबर के वन्सजो पाकिस्तान के भाड खाऊऔ महाराक्षसौ कुछ तो शमं करो
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण परमहंस
दक्षिणेश्वरमधे रामकृष्ण
पूर्ण नाव रामकृष्ण परमहंस (जन्मनावः गदाधर चट्टोपाध्याय)
जन्म फेब्रुवारी १८, १८३६
कामारपुकुर, पश्चिम बंगाल
मृत्यू ऑगस्ट १६, १८८६ (वयः ५०)
काशीपूर, कलकत्ता
तत्त्वप्रणाली अद्वैत वेदान्त, भक्ती
प्रभावित स्वामी विवेकानंद
वडील क्षुदिराम चट्टोपाध्याय
आई चंद्रमणीदेवी
रामकृष्ण परमहंस (बंगाली : রামকৃষ্ণ পরমহংস) (पूर्वाश्रमीचे नाव गदाधर चट्टोपाध्याय)[१] (फेब्रुवारी १८,१८३६ - ऑगस्ट १६,१८८६) हे एकोणिसाव्या शतकातील भारतात बंगालमध्ये होऊन गेलेले जगद्विख्यात गूढवादी सत्पुरुष होते. [२] स्वामी विवेकानंद हे रामकृष्ण परमहंसांचे प्रमुख शिष्य होते.[३][४][५] आधुनिक भारतीय धर्मप्रबोधनात त्यांनी मोलाची कामगिरी बजावली.[६][७][८] ते त्यांच्या शिष्यांमध्ये ईश्वराचे अवतार मानले जातात.[९]
रामकृष्ण परमहंस ग्रामीण बंगालमधील एका गरीब वैष्णव ब्राह्मण परिवारात जन्मले. कोलकात्याच्या दक्षिणेश्वर मंदिरात त्यांनी काही काळ पौरोहित्य केले, त्यानंतर शाक्तपंथीयांच्या प्रभावाने काली आराधना सुरू केली.[१] रामकृष्णांच्या आरंभीच्या काही प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरूंमध्ये भैरवी ब्राह्मणी या साध्वीचा समावेश होतो. तंत्र व वैष्णव भक्तीमध्ये भैरवीला गती होती. नंतर रामकृष्णांच्या म्हणण्यानुसार एका अद्वैत वेदान्तीच्या मार्गदर्शनाखाली त्यांना निर्विकल्प समाधी अनुभवता आली. रामकृष्णांनी इतर धर्मांबाबतही, विशेषतः इस्लाम व ख्रिश्चन धर्माबाबत प्रयोग केले आणि हे सर्व धर्म एकाच ईश्वराकडे घेऊन जातात असे म्हटले.
ग्रामीण बंगाली भाषेतील छोट्या छोट्या कथांचा तेथील जनतेवर बराच प्रभाव पडला. त्यामुळे रूढार्थाने अशिक्षित असतानाही रामकृष्ण बंगाली विद्बज्जन समाजाचे व शिक्षित मध्यमवर्गाचे लक्ष वेधण्यास यशस्वी ठरले. १८७० च्या दशकाच्या मध्यापासून पाश्चात्य शिक्षण घेतलेल्या बुद्धिजीवींवर त्यांचा प्रभाव पडला व नंतर ते बंगालमधील हिंदू प्रबोधनाचे उद्गाते ठरले.[१०]
सर्व धर्मीयांसाठी त्यांचा “जतो मत, ततो पथ” (जितकी मते, तितके पंथ) हा उपदेश सहिष्णुतेचे प्रतीक आहे.[१] परमहंसांचे खालील उद्गार प्रसिद्ध आहेत.
“ माझा धर्म बरोबर, दुसऱ्यांचा धर्म चूक – हे मत योग्य नाही. ईश्वर एकच आहे, त्याला वेगवेगळे लोक भिन्न भिन्न नावाने पुकारतात. कोणी म्हणते गॉड, कोणी अल्ला, कोणी म्हणते कृष्ण, कोणी म्हणते शिव, कोणी म्हणते ब्रह्म. तळ्यात पाणी असते पण कोणी त्याला पाणी म्हणते, कोणी वॉटर तर कोणी जल. हिंदू त्याला जल म्हणतात, ख्रिश्चन वॉटर, मुसलमान म्हणतात पाणी, - पण वस्तू एकच असते. एक-एका धर्माचे एक-एक मत असते, एक-एक पथ असतो - परमेश्वराकडे घेऊन जाण्यासाठी; जशी नदी नाना दिशांहून येऊन एकाच सागरात विलीन होते.[११] ”
अनुक्रमणिका [लपवा]
१ चरित्र
१.१ जन्म व बालपण
१.२ दक्षिणेश्वर येथे पौरोहित्य
१.३ विवाह
१.४ साधना
१.४.१ भैरवी ब्राह्मणी व तंत्रसाधना
१.४.२ वैष्णवीय भक्तिसाधना
१.४.३ तोतापुरी व वेदान्तिक साधना
१.५ इस्लाम आणि ख्रिश्चन धर्म
२ ग्रंथसूची
३ संदर्भ
४ बाह्य दुवे
चरित्र[संपादन]
जन्म व बालपण[संपादन]
कामारपुकुर गावातील ह्या छोट्या झोपडीत रामकृष्ण परमहंस राहत असत (मध्यभाग). डावीकडे कौटुंबिक देवघर, उजवीकडे जन्मस्थळ. तेथे सध्याचे श्रीरामकृष्ण मंदिर आहे.
पश्चिम बंगालच्या हुगळी जिल्ह्याच्या आरामबाग परिसरातील कामारपुकुर ग्रामी १८३६ साली एका दरिद्री धर्मनिष्ठ ब्राह्मण परिवारात रामकृष्ण परमहंसांचा जन्म झाला. वडील क्षुदिराम चट्टोपाध्याय व आई चंद्रमणीदेवी यांचे ते चौथे अपत्य होय. त्यांच्या जन्मापूर्वी आईवडिलांनी अनुभवलेल्या अनेक अलौकिक घटना सांगितल्या जातात. उदाहरणार्थ गरोदर चंद्रमणीदेवींच्या गर्भाशयात एका शिवलिंगापासून निघालेल्या ज्योतीने प्रवेश केला होता. जन्मकाली गयेस तीर्थयात्रेस गेलेल्या क्षुदिराम यांना गदाधर विष्णूचे स्वप्नात दर्शन झाले, म्हणून या बालकाचे नाव गदाधर ठेवण्यात आले.[१२]रामकृष्ण लहानपणी गदा या नावाने ओळखले जात. मातीच्या मूर्ती बनवण्यात त्यांचा हातखंडा होता. शालेय शिक्षणात त्यांना रुची नव्हती. तत्कालीन ब्राह्मण समाजात प्रचलित असलेल्या संस्कृत शिक्षणाचा ते “चालकला-बाँधा बिद्या” (अर्थात ब्राह्मणाची पोटभरू विद्या) असा उपहास करीत.[१३][१४] गायन, वादन, कथेचे निरूपण आदि गोष्टींमध्ये त्यांनी प्रावीण्य मिळवले.[१५] तीर्थयात्री, संन्यासी व गावातील पुराणिकांकडून कथा ऐकून त्यांची अल्पवयातच पुराण, रामायण, महाभारत व भागवत आदी ग्रंथांशी ओळख झाली.[१६] मातृभाषा बंगाली ते वाचू शकत असत;[१७] पण संस्कृत समजत असली तरी ते बोलू शकत नसत.[१८] पुरीच्या मार्गावर असलेल्या कामारपुकुर गावात आरामासाठी थांबलेल्या संन्याशांची सेवा करून त्यांची धर्मचर्चा ते ऐकत असत.
रामकृष्णांच्या स्मृतीनुसार सहा-सात वर्षांचे असल्यापासूनच त्यांच्यात आध्यात्मिक भावतन्मयता दिसू लागली. एकदा शेतात चालता चालता आकाशातील काळ्य
Abe Mullon koi aur kahaani bana lo. Koi paagal hi hoga jo upar likhe gye post pe yakin karega. Tum gire huye log, hindu aur jain kabhi alag the kya?? Ek hi gaddar kaum h poori duniya me. Wo hai Musalman.
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