लो क सं घ र्ष !: या रब, न वह समझें हैं, न समझेंगे मेरी बात
मंगलवार, 13 अप्रैल 2010
खाना, कपड़ा, मकान, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की समस्यायें ही क्या कम है, अब पानी, बिजली और एल0 पी0 जी0 का हाहाकार भी आम जनता के मन को मथे डाल रहा है, जल निगम गाँव-गाँव नलों का जाल बिछा रहा हैं मगर लगभग सभी जगह से कुछ ही दिन में यह शिकायत मिलती है कि नलों नें पानी देना बन्द कर दिया। विद्युत विभाग नें सुदूर ग्रामों, पुरवों तक खम्बे गाड़ दिये, तार दौड़ा दिये बिजली आज तक न आई। वित्तीय वर्ष खत्म होते ही ठेकेदारों के भुगतान हो जाते है, अफसरों की जेबें कमीशन से गर्म हो जाती हैं, आँकडे़ आ जाते हैं-देश-प्रदेश का विकास हो रहा है, जनता सुखी होती जा रही है।
शूल-त्रिशूल की यह कहानी आगे बढ़ती है, पेट्रोलियम मंत्रालय अब ग्रामीण जनता पर (डीज़ल के मंहगा करने के बाद) गैस सिलेन्डर देने हेतु इनायत की नज़र डालने जा रहा है-दाम वही लिये जायेंगे जो शहरी उपभोक्ताओं से लिये जाते हैं-इस सुविधा का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को लकड़ी, कंडों के सुलगाने की परेशानी को दूर करना है।
शहरों का हाल सभी जान रहे हैं कि गैस मिलने में इतनी दिक़क़तें आ गई है कि अनेक लोग फिर लकड़ी कोयला जलाने के लिये मजबूर हो गये।
इधर पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा बेचारे तेल कम्पनियों के हित में ही मुरली बजाते हैं-उनके भी कुछ हित होंगे।
खबर यह है कि दाम बढ़ाने के लिये किरीट पारेख समिति की रिपोर्ट ढूँढी जा रही है। ताकि पेट्रोल पर लगभग 7 रूपये, ड़ीजल पर 5 रूपये, मिटटी के तेल पर 19 रूपये प्रति लीटर तथा रसोई गैस पर 275 रूपये प्रति सिलेन्डर का जो घाटा तेल कम्पनियों का हो रहा है उसकी भरपाई की जा सके।
मज़ेदार खबर यह भी है कि दाम बढ़ाने से पहले ‘समझाओं अभियान‘ पर कम्पनियाँ 20 करोड़ रूपये खर्च करेंगी। जनता बेचारी जो पहले ही से हौलाई हुई है, क्या समझ पायेगी-कोई मुझको यह तो समझा दें,कि समझायेगें क्या।
तेल कम्पनियों और देवड़ा जी को जनता के लिये ग़ालिब की ज़बान में यह ‘कोरस‘ पढ़ना चाहिये-शहरों का हाल सभी जान रहे हैं कि गैस मिलने में इतनी दिक़क़तें आ गई है कि अनेक लोग फिर लकड़ी कोयला जलाने के लिये मजबूर हो गये।
इधर पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा बेचारे तेल कम्पनियों के हित में ही मुरली बजाते हैं-उनके भी कुछ हित होंगे।
खबर यह है कि दाम बढ़ाने के लिये किरीट पारेख समिति की रिपोर्ट ढूँढी जा रही है। ताकि पेट्रोल पर लगभग 7 रूपये, ड़ीजल पर 5 रूपये, मिटटी के तेल पर 19 रूपये प्रति लीटर तथा रसोई गैस पर 275 रूपये प्रति सिलेन्डर का जो घाटा तेल कम्पनियों का हो रहा है उसकी भरपाई की जा सके।
मज़ेदार खबर यह भी है कि दाम बढ़ाने से पहले ‘समझाओं अभियान‘ पर कम्पनियाँ 20 करोड़ रूपये खर्च करेंगी। जनता बेचारी जो पहले ही से हौलाई हुई है, क्या समझ पायेगी-कोई मुझको यह तो समझा दें,कि समझायेगें क्या।
या रब, न वह समझें हैं, न समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जु़बाँ और।
मेरे खयाल से यही शेर जनता को देवड़ा के लिये भी पढ़ना चाहिये। देवड़ा जी की समझ में आखिर यह क्यों नहीं आता कि वह गरीब जनता को कब तक कसेंगे ? कब तक खून के आँसू रूलवायेंगे? और तेल कम्पनियों से दोस्ती कब जारी रखेंगे? यह भी समझाना चाहिये कि चुनाव में कम्पनी चंदा तो जरूर देगी लेकिन वोट जनता के हाथ में होगा-दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जु़बाँ और।
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
- डा0 एस0 एम0 हैदर
loksangharsha.blogspot.com
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