बाबरी मस्जिद की नींव की एक एक ईंट तक ध्वस्त कर सकते हो लेकिन इस शौचालय के बाहर खडे़ रो रहे हो

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

जिसे अपने शहीदों के प्रति दर्द होगा,अपने शहीदों द्वारा स्थापित करे जीवन मूल्यों से लगाव होगा वह इस कुकर्म के लिये जिम्मेदार लोगों को अगर बम से उड़ा कर पुनः उन जीवन मूल्यों को पुनर्स्थापित करना चाहे तो क्या हम उसे अपराधी मानेंगे?? क्या जब यह कुकृत्य अंजाम दिया जा रहा था तब हमारे देशप्रेमी सोए हुए थे या राष्ट्रीय समिति के गठन में लगे थे। इसे मैं बिल्कुल खुले शब्दों में कह सकता हूं कि जब ये कुकर्म हो रहा था तब क्यों नहीं रोका और दो-चार अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया ताकि जिस सरकार की देखरेख में ये सब हुआ उसको एहसास हो जाता कि इस देश में अभी भी लोग अपने शहीदों के प्रति सम्मान रखते हैं ये नहीं कि जब हजारों लोग उस जगह हग मूत चुके तब आप उठे देशभक्ति की पिपहरी बजाने। ये बात ऑनलाइन ईमेल भेजने से हल होने वाली नहीं है बल्कि इसके लिये ऑफ़लाइन मैदान में आना होगा आप सब लोगों को वरना कल को ये आपकी छाती पर हगेंगे और मुँह में मूतेंगे तब भी ईमेल भेजना ताकि हम सब एकत्र होकर डलिया और झाड़ू लेकर उस हगे को अपने सिर पर उठा कर लोकतंत्र पर गर्व कर सकें। धिक्कार है.... सिर्फ़ बाबरी मस्जिद की नींव की एक एक ईंट तक ध्वस्त कर सकते हो लेकिन इस शौचालय के बाहर खडे़ रो रहे हो कि इंटरनेट से निकल कर कोई लड़ाई लड़ेगा? जिले के कमिश्नर और कलेक्टर वगैरह की नींद हराम कर दो उनका फोन नंबर भड़ास पर डालो ताकि उनके कानों में उबलता तेल डाल कर खोला जा सके यदि आपकी आवाज उन्हें नहीं सुनाई दी है अबतक.........।
जय जय भड़ास

3 टिप्पणियाँ:

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

आ गये डॉ.रूपेश जी....
ढैन टैणेन... ढिशुम..ढिशुम...
धूम धड़ाम...
विस्फ़ोट...
ब्लास्ट...
ध्वस्त...
नव निर्माण...
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

ह्म्म्मम्म,
बस ऐसे ही बम के धमाके चलें तो रुपेश होने का मतलब पता चलता है.
जय जय भड़ास

अजय मोहन ने कहा…

भाई ने सच लिख दिया तो पट्ठा चुप्पी साध गया। भाईसाहब की तरह सच को लिख पाने और जी पाने के लिये एक चेहरे वाला इंसान होना चाहिये वरना दूसरों की शहादत के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले भला इस रंडीरोने के अलावा और क्या कर सकते हैं
जय जय भड़ास

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