लो क सं घ र्ष !: न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

1 टिप्पणियाँ:

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

जब तक श्रम और पूँजी के बीच लाभ के समीकरण निश्चित नहीं हो जाते सब इसी तरह घसड़-पसड़ होता रहेगा। मजदूर जीत के मुग़ालते में रहेंगे और धनवान उन्हें चूसते रहेंगे।
एक और पक्ष है जो सपना लाल झंडा उठा कर कुछ लोग मजदूरों के नुमाइंदे बन रहे हैं उनमें से कितने लोग तो खुद ही मजदूरों का खून पाइप लगा कर पीते हैं। साम्राज्यवाद बनाम समाजवाद में ये भी अपनी चाँदी काटने से नहीं चूकते मजदूरों के हिमायती होने का खुला ढोंग करके। लाल झंडा लेकर आज देश में क्या नंगनाच चल रहा है ये किस अंधे से छिपा है???
जय जय भड़ास

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