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खेल एक बहाना है, लाखों लाख कमाना है
खेल के पीछे खेल, जनता का तेल है
उन्होने सबसे पहले मेडिकल के विस्तार के नाम पर झुग्गियों उजाड़ी, लोगों की मेडिकल का विस्तार जरूरी है,फिर उन्होने स्कूल के विस्तार के नाम पर झुग्गियों उजाड़ी, लोगों को लगा की स्कूल के लिय झुग्गियों हटाई जा सकती है, लोग खामोश रहे, फिर उन्होने हैजा और आंत्रशोध को ख़तम करने नाम पर झुग्गियों उजाड़ी, लोगों को लगा हैजा और आंत्रशोध झुग्गियों से होते है फिर उन्होंने सडक चौड़ी करने के नाम पर झुग्गियां उजाड़ी, रेहड़ी-पटरी हटाई, लोगों को लगा कि चौड़ी सडक जरुरी है. फिर उन्होंने मेट्रो के लिये घर उजाड़े, तब घर वालों को लगा यह गलत है. आज वह खेल के नाम पर 44 झुग्गी बस्तियों को उजाड़ने पर आमादा है लेकिन शहर खामोश है.
मित्रो, दिल्ली सरकार के लिये यह साल इस मायने में बड़ा ही महत्वपूर्ण है क्यूंकि इस वर्ष कोमन वेल्थ खेल कराने है जिसमे पूरी दुनिया के (इनकी तरह के दिमागी गुलामी करने वाले) लोग भाग लेंगे. इन खेलों कि तैयारी में वे पिछले कई सालों से सब काम भुलाकर जुटी पड़ी है. इसकी तैयारी में बहुत सी झुग्गी बस्तियों को हटाया गया, कुछ को वैक्लपिक स्थान भी मिले एवं बहुत से बेघर होकर हर रोज पुलिस के डंडे से परेशान हो रहे है.
जैसे जैसे खेल (अक्तूबर महिना) नजदीक आ रहा है वैसे वैसे सरकार नाकाम और खूंखार होती जा रही है और वह गुस्सा गरीबों पर निकल रही. सरकार ने निर्णय लिया है कि दिल्ली कि 44 झुग्गी बस्तियों को हटा कर राजीव रत्न आवास योजना के तहत उन्हें पुनर्वासित किया जाये जहाँ एक तरफ सरकार पुनर्वास कि बात कर रही है वहीँ दूसरी ओर सरकार के पास राजीव रत्न आवास योजना के तहत बवान, भुरगढ़, नरेला, घोगा और बपरोला में जो आवास बन रहे है उनकी संख्या 7900 है. इसमें एक मजेदार मोड़ यह है कि पुठ्खुर्द, कंझावला, समसापुर, जोनपुर, नगली, सिरसपुर, रोहणी, द्वारका और सवदा घेवरा में इस योजना के तहत जो मकान बनने है, उसमें वर्षों लगेंगे. क्या सरकार का यह इरादा है कि कोमन वेल्थ के बहाने लोगों को दिल्ली से उजाडकर बिना वैकल्पिक स्थान दिय सड़कों पर छोड़ देना चाहती है या फिर उन्हें खदेड़ कर शहर से बाहर भगाना चाहती है? अगर सरकार लोगों को उसकी झुग्गियों से उजाड़ कर सड़कों पर लाना चाहती है तो फिर शहर और सरकार दोनों को इस बात के लिये भी तैयार रहना चाहिए कि इन 44 बस्तियों को उजाड़ने से लगभग 25000 परिवार बेघर होंगे एवं 40000 बच्चों का स्कुल भी छूटेगा.
सरकार को शायद यह समझ में नहीं आ रहा है कि लोग गाँव से शहर रोजगार कि तलाश में आ रहे हैं न कि शहर से दूर किसी ऊँचे घोंसले में बंद होने. बच्चों कि मुद्दे पर सरकार शैतान जैसी भूमिका अदा कर रही है. जहा एक तरफ सभी बच्चों को स्कूल पहुचाने का नाटक कर बिल पास करती है वही दूसरी ओर घर उजाड़ कर बेघर करने का एंव स्कूल से दूर करने की पूरी तैयारी भी करती है. जहा तक मजदूरों का प्रश्न है इन 44 बस्तियों में लगभग 30 से 35 हज़ार कामकाजी लोग रहते होंगे जो शहर को सुचारू रूप से चलाने में भूमिका निभा रहे है. हजारों बच्चों को स्कूल से दूर करना एंव हजारों को रोजगार से वंचित करना क्या सरकार की मंशा है?
आज सरकार कॉमनवेल्थ खेल के किये शहर को सजाने नाम पर झुग्गियों को खत्म करना चाहती है. अगर हम इस मैके पर 1982 में आयोजित एशियाड की बात करें तो सरकार ने एशियाड की तैयारी के लिये पुरे देश में मजदूरों को बुलाया था ताकि वह दिल्ली में आकर निर्माण कार्यों में सरकार की मदद करें. खेल के खत्म होने के बाद सरकार उनके आवास का फिल्ली में ही कोई प्रबंध हनी कर पाई. आज जिन मजदूरों को 44 बस्तियों को कॉमनवेल्थ गेम के लिये सज रहे शहर की खूबसूरती के नाम पर उजाड़ा जा रहा है इनमे एक बड़ा हिस्सा उन मजदूरों का है जीनके बाप दादा एशियाड की तैयारी में दीली में निर्माण कार्य्र करने आए थे.
इस आदेश की दूसरी बड़ी परेशानी यह है की जीन लोगों को सरकार यह फ़्लैट आवंटित करेगी उनसे 60000 रूपये भी लेगी जो झुग्गी वालों के लिये दे पाना बहुत मुशिकल होगा. दरसल यह गरीबों के नाम पर कम कीमत पर आवास प्राप्त करने का सरकार एंव उससे मिले बिचैलिओं का साधन है. राजीव रत्न आवास योजना गरीबों के लिये बनी है. लेकिन वह गरीब जो सचमुच रोज कमाते एंव रोज खाते हैं उनकी तो आमदनी भी इतनी नहीं है की वह पेट भर कर खाना खा सकें तो वह 60000 रूपये घर खरीदने के लिये कहाँ से लाएगे? लोग फिर इन फ्लैटों के पेपर प्रोपर्टी डीलरों के हाथों बेच देने पर मजबूर होगें और सरकार की भी यही इच्छा है.
ऐसा भी सुनने में आया है की दिल्ली सरकार की ओर से एक टीम मुंबई की मल्टी स्टोरी पुनर्वास स्कीम को समझने गयी थी ताकि उसे दिल्ली में लागु कर सके. मुंबई की इस स्कीम को नाकामियों की लम्बी सूचि है लेकिन उनमें सबसे बड़ी विडम्बना यह है की मल्टी स्टोरी पुनर्वास में पानी, बिजली, सुरक्षा, लिफ्ट सफाई आदि पर मासिक खर्च इतना अधिक है की गरीब बस्तियों में रहने वालों की आमदनी ही उतनी नहीं है कि वो चूका सके. साथ ही साथ इन मजदूरों का बड़ा तबका ऐसा भी जो निर्माण मजदूर या रेहड़ी-पटरी का काम करतें है उनके लिये सीढ़ी, ठेला या भारी सामान लेकर तीसरी - चौथी मंजिल पर रहा नहीं जा सकता. इस हालत में लोग अपने रोजगार को ध्यान में रखते हुए एसे मकानों में नहीं रहना ही बेहतर समझते है और मकान बेचकर चले जाते है. ऐसा ही मुंबई में हुआ और सायद दिल्ली सरकार भी यही देखाना चाह रही है. जिन कम आमदनी वाले परिवार के लिया 800 से १००० रूपये प्रतिमाह रख रखाव पर खर्च करना मुश्किल था उन्होंने या तो मकानों को बेच दिया या फिर किराये पर लगाकर खुद कहीं और रहने चले गए. मुमकिन है कि दुनारा वो फिर कहीं झोपड़ी ही डालें जहाँ रख रखाव खर्च उनकी आमदनी के अनुसार हो. बार बार पुनर्वास के बावजूद शहर से झुग्गी बस्ती के ख़तम न होने का एक बड़ा कारण यही है कि मुंबई में रख रखाव आमदनी से अधिक है और दिल्ली में रोजगार से बहुत दूर पुनर्वास.
कोमन वेल्थ खेल - जैसा कि हम जानते है कि कोमन वेल्थ खेल में वह लोग (देश) आतें है जो अंग्रेजों के गुलाम थे, जो लोग अंग्रेजों के गुलाम होने का जश्न मना सकते है इसका साफ़ मतलब है कि इनको या तो गुलामी ही पसंद थी या फिर इस खेल में वो अपना हित देख रहें है. दरअसल, ऐसे लोग (सरकार) हर ज़माने में रहे है जो अपना हित साधने में लगे रहे. आज खेल एक बहाना है, अगर देश में सचमुच खेल को बढ़ावा देना मकसद होता तो सरकार खेल के लिये तरह तरह कि योजनायें बनती. यहाँ तो खेल के नाम पर सरकार अपने ठेकेदारों एवं कम्पनियों कि चंडी कर रही है जिस काम का बजट १०००० करोड़ रूपये थे, आज कम समय के नाम पर वह बढकर न जाने कितना पहुँच गया है. अगर हम शहर के बाकि नुकाषणों कि कीमत लगाने लगें तो गिनती को शर्म आ जाएगी.
सरकार का एक ऐसा आयोजन जिससे न तो खेल का भला होने वाला है न ही आम नागरिकों का, बल्कि यह एक साजिश है जिस पर नहीं संसद में चर्चा कि गयी है. जरूरत इस बात कि है कि इस खेल पर हो रहे बनियावादी खर्च का विरोध करने कि जरोरत है साथ ही साथ खेल के बहाने मजदूरों को शहर से बाहर करने कि इस साजिश को नाकाम करने कि आवश्यकता है.
44 बस्तियों को उजाड़ने के खिलाफ
बस्ती बचाओ अधिवेशन
19 जून 2010 गाँधी शांति प्रतिष्ठान सुबह 10 से 5 बजे तक.
आप तमाम झुग्गी बस्ती में रहने वालों, झुग्गी बस्ती व् शहरी गरीबों एवं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के मुद्दों पर काम करने वाले साथी संघठनों से अपील है कि इस अधिवेशन में तन मन और धन से हिस्सा लें.
धन्यवाद
अभियान समिति.
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Sadre Alam
09868078123, 09212391836
mosadral@yahoo.com,
sadrealam@gmail.com.
तुम आसमाँ की बुलन्दी से जल्द लौट आना
हमें ज़मीं के मसायिल पे बात करनी है
मंजिल पे पहुंचा तो जुनूँ पहुंचा
अक्ल दावा लिए सड़कों पे फिरा करती है
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Regards
M.Ghufran Siddiqui
http://awadhvasi.blogspot.com
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