विचारधारा समझी जाती है पूछी नहीं !
सोमवार, 21 जून 2010
संजय जी आप ने शायद समझा नहीं 'गुफरान सिद्दीकी की विचारधारा उसकी कलम से निकलती है'मुझे कोई भी विचारधार प्रभावित नहीं करती पहली बात और जहाँ तक बात सुमन जी की की वकालत करने की है तो उसका उत्तर मै दे चूका हूँ अब बात करते हैं आपके ज्ञान की तो जनाब अभी भी आप कूप मंदूपों की तरह ही उल्टियाँ कर रहे हैं जहाँ तक किसी की शैली कॉपी करने की बात है तो मैंने नाम थोड़े ही लिया था किसी का अगर आपको लगता है की आप रुपेश भाई की शैली कॉपी कर रहे हैं तो वाकई ये गर्व की बात है पर संदेह अभी भी बना हुवा है बुरा न मानियेगा भड़ास का मंच कुछ ऐसा ही है यहाँ संदेह हमेशा बना ही रहता है आपको स्वयं को साबित तो करना ही पड़ेगा जनाब कम से कम अपना मुखौटा तो हटाना ही पड़ेगा मै देख रहा हूँ और समझ रहा हूँ आपकी बिमारी भड़ास के डॉक्टर आपके इलाज के लिए हर संभव मदद करेंगे इसका मै आपको विशवास दिलाता हूँ जहाँ तक आपके पिता जी की बात है तो आपने उनको डैडी बना कर ठीक किया क्योंकि सबसे बड़े सर्जन वही हैं बाकि तो आप उनके बारे में तफसील से जान ही चुके होंगे और एक बार फिर महोदय अपने आधे अधूरे ज्ञान को पूरा करें और..........की जगह पूरी बात स्पष्ट करें भड़ास का मंच है डरने की ज़रूरत नहीं जहाँ तक जस्टिस आनंद सिंह की बात है अपवाद हर जगह होते हैं अब इस पर खीज मत जाइयेगा नहीं तो फिर मरोड़ उठने लगेगी आप तो कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर को भी आतंकी कहने में पसीने छोड़ देंगे लेकिन हजारों की संख्या में ऐसे मुसलमानों को जेल में रखने की वकालत करेंगे जिन पर कई साल बीत जाने के बाद भी मुक़दमे तक शुरू नहीं हुए और बाल ठाकरे राज ठाकरे को गरियाने से कुछ नहीं होगा महोदय मुझे मज़हबी कहने से पहले अपने घर में उत्तर/दक्षिण भारतियों पर हो रहे आतंकी हमलों को रोकने के लिए उनके सरगनाओ के खिलाफ मुकदमा कराएँ (बिना फीस के भी वकील मिल जायेंगे) बस बात है आपके अन्दर कितनी इमानदारी है देशवासियों के लिए लड़ने की चिल्ला चिल्ली से काम नहीं चलेगा अपनी कायरता को शब्दों के पीछे छुपाना बंद करें.भीड़ का हिस्सा बनने वाले भड़ास के मंच पर नहीं होते वो चापलूसी की भाषा के साथ अपने आका को महिमा मंडित करते रहते हैं जैसा आपने ठाकरे जैसे दलालों को अप्रत्यक्ष रूप से नेता बनाने की ठानी है. विचारधारा समझी जाती है पूछी नहीं जाती ये भड़ास का मंच है यहाँ जो किसी को नंगा करने आता है उसके तन पर क्या बचता है डैडी से पूछिए आपकी बिमारी लाइलाज नहीं है परेशान होने की ज़रूरत नहीं जल्द ही आप ठीक हो कर भड़ास परिवार में शामिल हो जायेंगे इसके लिए चापलूसी की ज़रूरत नहीं रुपेश भाई को यही हज़म नहीं होती....,
आपका हमवतन भाई गुफरान सिद्दीकी
(अवध पीपुल्स फोरम अयोध्या फैजाबाद)
3 टिप्पणियाँ:
क्या कटारनवरे जी ने अपनी किसी भी बात में बाल ठाकरे या राज ठाकरे को नेता स्वीकारा है वो तो खुद इन दोनो चूतिया और महाचूतिया को गरिया रहे हैं। गुफ़रान भाई आप क्या किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं जो आप लिख रहे हैं कि इन महाशय को प्रज्ञा ठाकुर या कर्नल पुरोहित को आतंकी बताने में पसीना आ जाएगा। कानून की मानेंगे या दिल की?कानून ने तो अब तक अजमल कसाब तक को अपराधी घोषित करके आतंकी नहीं माना है अभी तो उसके आगे अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने के रास्ते वैसे ही खुले हैं जैसे कि इन दोनो अभिनव भारत वालों के पास हैं। दूसरी बात कि ये बंदा किसी को नंगा नहीं कर रहा है ये तो इसने लिख कर दिया है कि वो बस मुखौटा नोच रहा है क्या मुखौटा नोच लेने से कोई नंगा हो जाता है।
कटारनवरे जी आप यार सामने तो आओ किस बात की शर्म है हम सब आपके ही जैसे हैं पगले और चूतिया किस्म के घोषित बुरे लोग जो कभी किसी के दुःख में रो पड़ते हैं और कभी किसी से उधार लेकर रास्ता बदल कर भाग जाते हैं:)बेहद गंवार और जाहिल,खेत की मेड़ पर बैठ कर बीड़ी पीने वाले,बिना रिजर्वेशन के ट्रेन में लद कर यात्रा करने वाले.......
जय जय भड़ास
मूक दर्शक बन कर आखिर भड़ासी कब तक बैठ सकता है, जैसे ही रोटी-पानी से फुर्सत हुए तो शुरू हो जाते हैं अपने काम में। भाई सुमन जी,गुफ़रान भाई,संजय कटारनवरे भाई,अजय मोहन भाई सब एक दूसरे को चुटकियां ले रहे हैं बस ध्यान रहे कि मुखौटे के साथ चमड़ी न उधड़ जाए वरना फिर भड़ासाना स्वभाववश मरहम भी खुद ही लगाओगे ये हमें पता है। भाई डा.रूपेश को न चापलूसी पसंद है न ही लूसी के चाप.... पता नहीं उन्हें पसंद क्या है?
आनंद आनंद आनंद
जय जय भड़ास
मुनेन्द्र भाई बात आगे बढ़ रही है ये मैं सिर्फ़ देख रहा हूं। भाई कटारनवरे जी तो भड़ास पर ई-मेल प्रकार से पोस्ट भेज पाने और अपने परिचय को गुप्त रखने की लोकतांत्रिक सुविधा का पूरा आनंद ले रहे हैं। कई बार कहने पर भी अब तक फोन पर भी राब्ता कायम न हो पाया है।
वैसे गुफ़रान भाई ये जो कोई भी सज्जन(या सजनी)हैं सभी से खार खाए बैठे हैं उन्हें साध्वी ठकुराइन और पंडित पुरोहित के साथ साथ बालू और राजू ठाकरे से भी फुल खुन्नस दिख रही है। कम्युनिस्टों से भी चिढ़े बैठे हैं,कांग्रेस को लांगरेस बता रहे हैं लेकिन सहमत नहीं हैं उससे भी बस पेलम-पेल लगे हुए हैं अच्छा है जो कुछ भी दिल और गले में अटका है निकल जाए तो ही अच्छा है कि मन तो निर्मल हो जाए और कुछ रचनात्मक कार्य करा जाए लेकिन फिलहाल तो वे छद्मनेताओं की खोलना(पोल)ही अपना कार्य मान रहे हैं।
जय जय भड़ास
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