रणधीर सिंह सुमन और गुफ़रान सिद्दकी दोनो विचारधारा समझ आ रही है

मंगलवार, 22 जून 2010

पिछले कुछ दिनों ने मैने रणधीर सिंह सुमन के छद्मव्यवहार और उनके पाखंडी संगठन लोकसंघर्ष के विरुद्ध जो कुछ भी लिखा उसका उद्देश्य इनसे निजी दुश्मनी हरगिज नहीं है ये सिर्फ़ विचारधारा के विरोध की बात है। लोकसंघर्ष और सुमन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट हैं ये बताने में इतना समय ले गये। उसी बीच में गुफ़रान सिद्दकी जो कि कदाचित इनके समर्थन में थे मुझ पर भड़ास के मंच पर जिन्ना के पीछे खड़े लोगों की मानसिकता का बताने आ पहुंचे शायद इनका उद्देश्य ये रहा होगा कि ये रणधीर सिंह सुमन से मोड़ कर बात को अपनी तरफ़ घुमा लें और मेरा मंतव्य भ्रमित हो जाए। ये अभ्यास तो इस तरह के लोगों ने कई सदियों से जारी रखा है कि मुद्दे को पीछे धकेल कर बात को अन्य जगह उलझा लिया जाए। गुफ़रान सिद्दकी अवध पीपुल्स फोरम नामक संगठन के पदाधिकारी हैं और अपने पीछे वैचारिक सहमत लोगों की बड़ी भीड़ लेकर चलते हैं लेकिन इनका धर्म है इस्लाम और ये उसके प्रति कट्टर हैं ये बात तो ये कई बार लिख कर दे चुके हैं। वहीं दूसरी ओर रणधीर सिंह सुमन के लोकसंघर्ष में सब तरह के आइटम सजाने की बात चल रही है यानि कि जो वोटों के खींच सके, खुद को सहिष्णु और उदारवादी जताने के लिये सूफ़ी-संतों की कहानी चलाई जा रही है, इससे पहले ब्लागरों को अपना बनाने के लिये एक महानिबंध लिखवाया गया जिसपर तो लिखा भी गया कि वह निबंध किस स्तर का था कि वह सुरेश चिपलूणकर और यशवंत सिंह जैसे लोगों को छोड़ गया। साफ़ मतलब है कि लेखक ने जो शोध करा वह पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर करा था। रणधीर सिंह सुमन की मार्क्सवादी विचारधारा कहती है कि धर्म अफ़ीम के तुल्य है और गुफ़रान हैं कि धार्मिक कट्टरता के आग्रह पर खंभा गाड़े खड़े हैं। गुफ़रान बाबू जबरन मेरे ऊपर राज ठाकरे और बाल ठाकरे को थोप रहे थे जिस पर भाई मुनेन्द्र ने लिखा भी तो अपना कट्टर कपट दिखाते हुए महाशय कई बातों को चुपचाप दबा गये और दांए बाएं कलम रगड़ रहे हैं। वैसे ये श्रीमान जी भड़ास पर किसे होना चाहिये और किसे नहीं इस बारे में भी राय रखते हैं। यदि इतने ही स्पष्ट हैं तो बताएं कि रणधीर सिंह सुमन के बारे में क्या राय है जो मानते हैं कि धर्म अफ़ीम है?मैंने ऐसा क्या लिखा कि आपको लगा कि मैं बालठाकरे या राजठाकरे का समर्थक और भारतीय मुसलमानों का विरोधी हूं??मेरा कोई वाद नहीं है न ही कोई विचारधारा। धारा तो अभी बनी ही नहीं ये तो बूंदों की फ़ुहार है जब ज्यादा पानी हो जाएगा तब बहेगी और धारा बनेगी तुम लोग तो बूंदो से ही परेशान हो गये। रही बात महाभड़ासी(ये कौन हैं) की तो जब वे आएंगे तो उनसे भी बात हो जाएगी आप दुःखी न हों कि वो महानुभाव मेरा मुखौटा नोच लेंगे। गुफ़रान बाबू मेरे परिचय पर बस निजी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का नका़ब(आशा है आप अपनी कट्टरता के चलते इसके विरोध में न होंगे) है मुखौटा नही जिसे नोचा जाए यदि नका़ब नोचना कोई चाहे तो जरूर कर ले।
बिलकुल साफ़ शब्दों में लिख रहा हूं कि डा.रूपेश श्रीवास्तव की शैली का अनुसरण करना और उनसे कुछ सीख पाना मेरा सौभाग्य है। डा.साहब से क्षमा चाहता हूं कि उनको और रजनीश सर को एक पत्र लिखना था वो इन महान लोगों को उत्तर देने के कारण विलंबित हो गया है।
जय जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई

3 टिप्पणियाँ:

मुनेन्द्र सोनी ने कहा…

कटारनवरे जी आपने जो लिखा है उससे सहमत हूं क्योंकि गुफ़रान जी ने आपकी बात पर जो प्रतिक्रिया करी है वह अजीब है वे आपको तो जिन्ना के पीछे खड़े लोगों की मानसिकता का बता रहे है और खुद ये पूर्वाग्रह पाले हुए हैं कि आप बाल ठाकरे या राज ठाकरे जैसी सोच के समर्थक हैं और उनके मुद्दों से पेट पाल रहे हैं। क्या कहूं???भड़ास किसी की बपौती नहीं है कांग्रेस की तरह। विचार-विमर्श का रास्ता खुला है भले ही कितनी भी तल्खी क्यों न आ जाए लेकिन यदि कोई कारगर परिणाम हाथ आए तो क्या बुरा है?
जय जय भड़ास

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

धारा बूंद फ़ुहार
नवरे घेउन आले कटार
मारेल सगड़्याना ठार
अरे..काय करतात यार?
पेले रहो
झेले चलो
जय जय भड़ास

हरभूषण ने कहा…

कटारनवरे जी की तार्किक शैली का कायल हो चला हूं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये महाशय अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि रखते हैं। रणधीर सिंह जी और गुफ़रान जी ने इनकी बातों पर जो भी लिखा वह कम से कम मेरे लिए संतोषजनक नहीं रहा लेकिन इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। यहां कोई बौद्धिक कबड्डी नहीं चल रही कि जो चित्त हो जाए वह मैदान से बाहर हो जाएगा। जब तक एक दूसरे के गले लग कर किसी नतीजे पर नहीं आ जाते तब तक उठापटक जारी रहेगी यही राष्ट्रहित में है हमें संकीर्णता से बाहर आना होगा चाहे वह धार्मिक हो या राजनैतिक।
जय जय भड़ास

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