सर्व श्री अन्तर सोहिल, दीनबंधु जी
मंगलवार, 1 जून 2010
आपकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैं उक्त पोस्ट लिख रहा हूँ। लोकसंघर्ष एक पत्रिका है जिसको उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद से एक समूह द्वारा प्रकाशित किया जाता है। इस समूह के कुछ लोग जन समस्याओं को लेकर संघर्ष भी करते रहते हैं। श्री सोहिल साहब ने पूछा है कि आप एक ही पोस्ट को कई सामुदायिक चिट्ठों पर क्यों प्रकाशित करते हैं। मेरी अपनी समझ है (हो सकता है गलत हो ) बात ज्यादा से जयादा लोगो तक जाए इसलिए पोस्ट को विभिन्न सामुदायिक ब्लोग्स पर प्रकाशित किया जाता है। कुछ सामुदायिक ब्लोग्स पर शुरुवाती दौर में मैंने स्वत: लिखना शुरू किया था और कुछ सामुदायिक ब्लोग्स ने अनुरोध किया था कि लोकसंघर्ष कि पोस्ट्स वहां भी प्रकाशित की जायें। लोकसंघर्ष पत्रिका में 95% आलेख मौलिक रूप से तैयार कराये जाते हैं और पत्रिका में छपे हुए आलेख कॉपीराईट मुक्त हैं इस बात कि घोषणा प्रति अंक में प्रकाशित भी की जाती है।
nice का हमारा तात्पर्य सिर्फ अच्छा से है। हमने जब ब्लॉग शुरू किया था तो शुरुवाती दौर में टिपण्णी लिखीं जो चिट्ठाकारों के विचारों के विपरीत थीं। यहाँ पर ज्यादातर लोग विचारों का समर्थन चाहते हैं न की मत भिन्नता इसलिए अच्छा होता है कि nice लिख दो। उपस्तिथि भी दर्ज हो गयी और विवाद में भी नहीं पड़े। वैचारिक विवाद तो अच्छा होता है लेकिन जब वह व्यक्तिगत स्तर पर और ओछी बातों पर आ जाता है तो उसका कोई औचित्य नहीं रहता है। जिस nice और welcome किसी और का लिखना समझ रहे हैं वह सही नहीं है। मैंने स्वयं ही लिखा है। उन भाई साहब का गुस्सा अनायास झलक रहा है नकाब उतार देंगे, नंगा कर देंगे, हरा देंगे, बेइज्जत कर देंगे और यह सब सारी चीजें उन्होंने पहले से तय कर रखी हैं तो हम क्या आप भी उनको नहीं रोक पायेंगे। उनको जितनी भी गालियाँ लिखनी हैं वह अवश्य लिखेंगे हम चाहे जितनी सफाई दें। इसी कारण से स्वागत लिख दिया है और जब उन्होंने दूसरी पोस्ट बड़ी मेहनत से तैयार कर लिखी तो nice लिख दिया।
श्री अनोप मंडल साहब के सम्बन्ध में मेरी बात डॉक्टर रूपेश श्रीवास्तव साहब से बात हुई थी की राजस्थान में यह लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं। रही बात जैन धर्म की मैं धार्मिक विवाद में नहीं पड़ना चाहता हूँ लेकिन श्री अनोप मंडल जी द्वारा रखी गयी कुछ बातों पर जब हमने अपने जैन मित्रों को ध्यान से देखा तो सत्य प्रतीत हुआ और जो की निकटतम सम्बन्ध के मित्र थे उन्होंने बात-चीत में बहुत सारी बातें स्वीकार भी की।
श्री अंतर सोहिल साहब जी व दीनबंधु जी मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की अपनी बात को आप के समक्ष कुछ हद तक रखने में सफल हुआ हुंगा ।
साभिवादन ,
आपका
सुमन
लो क सं घ र्ष !
nice का हमारा तात्पर्य सिर्फ अच्छा से है। हमने जब ब्लॉग शुरू किया था तो शुरुवाती दौर में टिपण्णी लिखीं जो चिट्ठाकारों के विचारों के विपरीत थीं। यहाँ पर ज्यादातर लोग विचारों का समर्थन चाहते हैं न की मत भिन्नता इसलिए अच्छा होता है कि nice लिख दो। उपस्तिथि भी दर्ज हो गयी और विवाद में भी नहीं पड़े। वैचारिक विवाद तो अच्छा होता है लेकिन जब वह व्यक्तिगत स्तर पर और ओछी बातों पर आ जाता है तो उसका कोई औचित्य नहीं रहता है। जिस nice और welcome किसी और का लिखना समझ रहे हैं वह सही नहीं है। मैंने स्वयं ही लिखा है। उन भाई साहब का गुस्सा अनायास झलक रहा है नकाब उतार देंगे, नंगा कर देंगे, हरा देंगे, बेइज्जत कर देंगे और यह सब सारी चीजें उन्होंने पहले से तय कर रखी हैं तो हम क्या आप भी उनको नहीं रोक पायेंगे। उनको जितनी भी गालियाँ लिखनी हैं वह अवश्य लिखेंगे हम चाहे जितनी सफाई दें। इसी कारण से स्वागत लिख दिया है और जब उन्होंने दूसरी पोस्ट बड़ी मेहनत से तैयार कर लिखी तो nice लिख दिया।
श्री अनोप मंडल साहब के सम्बन्ध में मेरी बात डॉक्टर रूपेश श्रीवास्तव साहब से बात हुई थी की राजस्थान में यह लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं। रही बात जैन धर्म की मैं धार्मिक विवाद में नहीं पड़ना चाहता हूँ लेकिन श्री अनोप मंडल जी द्वारा रखी गयी कुछ बातों पर जब हमने अपने जैन मित्रों को ध्यान से देखा तो सत्य प्रतीत हुआ और जो की निकटतम सम्बन्ध के मित्र थे उन्होंने बात-चीत में बहुत सारी बातें स्वीकार भी की।
श्री अंतर सोहिल साहब जी व दीनबंधु जी मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की अपनी बात को आप के समक्ष कुछ हद तक रखने में सफल हुआ हुंगा ।
साभिवादन ,
आपका
सुमन
लो क सं घ र्ष !
3 टिप्पणियाँ:
सुमन जी आपने जो कुछ भी लिखा है व्यवसायिक सीमा के कारण स्पष्ट न हो कर भी उत्तर जैसा लग रहा है। पालिटिकली करेक्ट रहने की सोच आपको बाध्य कर रही है कि आप विवाद(भले ही वह समाज और देश की प्रगति के हित में हो) से बचने के लिये सबको बुखार की दवा NICE दे देते हैं। आपने लिखा कि डा.रूपेश श्रीवास्तव और आपके जैन मित्रों ने आपको बताया कि अनूप मंडल द्वारा कही अधिकतर बातें आपके अनुभव से सही हैं। क्या डा.रूपेश जी ने आपसे कहा है कि जैन असुर राक्षस होते हैं या आपके मित्रों ने स्वीकारा है कि वे राक्षस हैं या आपको जो हार्ट अटैक हुआ है वह उनके कारण हुआ है??? जैन मित्रों ने क्या क्या स्वीकारा है मेहरबानी करके अपने साफ़ सुथरे ब्लाग पर न लिख कर कम से कम भड़ास पर तो दुनिया को बताएं कि यहां भी आप धार्मिक विवाद में नहीं पड़ना चाहते????
जय जय भड़ास
आदरणीय सुमन जी
आप बिल्कुल सफल हुये हो जी
और आपकी यह बात सही और सच्ची लगी कि "यहाँ पर ज्यादातर लोग विचारों का समर्थन चाहते हैं न की मत भिन्नता"
प्रणाम स्वीकार करें
मुझे कल एक प्राइवेट नंबर से फोन आया कि मैं ही किसी दूसरे नाम से वकील साहब के पीछे पड़ गया हूं। उस बंदे को समझाने की कोई जरूरत नहीं थी इसलिये उसे अपने अंदाज में उत्तर दे दिया। बस इतना बताना है कि डा.रूपेश श्रीवास्तव को किसी मुखौटे की जरूरत नहीं है हमने तो चीफ़ जस्टिस रह चुके बन्दे की भी भड़ास के मंच पर खुल कर उधेड़ी है,राहुल गांधी से लेकर बलुआ और रजुआ ठाकरे की जो बात पटी नहीं उस पर भड़ास निकाली है।
सुमन जी जो कह रहे हैं उसे भी पढ़ रहा हूं और संजय कटारनवरे ने जो कहा उसे भी पढ़ा है साथ ही अनूप मंडल और अमित जैन को भी पढ़ा है और अपनी बात कही है इसमें मुंह छुपा कर क्यों बड़बड़ाना? यही तो लोकतंत्र की आत्मा है। आप सब जानते हैं कि यही वह मंच है जहां कई बार लेखकों ने संचालकों तक को गालियां दी हैं और उन्हें बाकायदा प्रकाशित करा गया है ताकि विचार विमर्श से गलतफ़हमियां दूर करी जा सकें न कि कूटनैतिक तरीके से चुप्पी साध ली। वकील साहब ने भी चुप्पी नहीं साधी बल्कि उत्तर दिया है ये बात अलहदा है कि आप संतुष्ट हैं या नहीं। यदि आप संतुष्ट नहीं हैं तो विमर्श आगे बढ़ाइये।
जय जय भड़ास
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