मुसलमान निर्णय लें कि उर्दू अखबार "इंकलाब" का बहिष्कार करें या नहीं

बुधवार, 9 जून 2010

उर्दू पढ़ समझ लेता हूं तो मुंबई में प्रकाशित होने वाले उर्दू अखबारों पर भी नजर मार लिया करता हूं। जैसा कि आप सब जानते हैं कि अधिकांश पत्रकारिता उद्योगपतियों और राजनेताओं की रखैल की तरह से कार्य कर रही है ऐसे में उर्दू के लोग इस संक्रमण से कैसे बचे रह सकते थे। मुंबई से प्रकाशित उर्दू टाइम्स, सहाफ़त, इंकलाब,राष्ट्रीय सहारा आदि उर्दू के समाचार प्रकाशित होते हैं। इनमें से अधिकतर लोग पत्रकारिता को धंधा समझ कर इस्तेमाल करते हैं, किस तरह किसी की सामाजिक छवि ध्वस्त करना है, फ़र्ज़ी बातों को बार बार दोहरा कर सच बनाना है पत्रकार अच्छी तरह सीख चुके हैं। विज्ञापन नीति के मामले में तो इंकलाब ने सारे अखबारों को पीछे छोड़ दिया है मुख्य पन्ने पर हैडर पर ही "साण्डहे के तेल" का विज्ञापन लगा कर ये बताते हैं कि पाठक किस तरह से इंकलाब ला सकते हैं।
आज दिनाँक 10/06/2009 को तो इन भले पत्रकारों ने एक अभिनव प्रयोग करा है अब तक ये लोग सिर्फ़ मुसलमानों के लिये अखबार छपते रहे हैं जैसे कि उर्दू मुसलमानों की ही भाषा हो लेकिन क्या करा जाए जब इनके दिमाग का दिवाला ही निकल चुका हो। अभी हाल ही में इस्लाम के अंतिम संदेष्टा हज़रत मोहम्मद साहब के कार्टून वाले प्रकरण के विरोध में दुनिया भर के तमाम मुस्लिमों ने इसे आस्था पर चोट करार करते हुए फ़ेसबुक का बहिष्कार कर दिया था और प्रतिबंध के लिये भी मांग करी थी(पाकिस्तान में प्रतिबंध लग भी चुका है)। तब इन अखबारों ने इस प्रकरण को चटकारे ले लेकर छापा था। लेकिन आज तो मैं ये देख कर हैरान रह गया कि इंकलाब में कुछ वेबसाइट्स का क्रमशः परिचय दिया जा रहा है जिसमें कि फ़ेसबुक को इतना उपयोगी बताया है कि आप तत्काल जाकर फ़ेसबुक से जुड़ जाएंगे। इंकलाब के संपादक मंडल ने शायद अफ़ीम खाना शुरू कर दिया है तभी पिनक में आकर दुनिया भर के मुसलमानों की आस्था से खिलवाड़ करने वाली वेबसाइट पर मात्र कुछ पैसों(शायद) के लिये तारीफ़ के कसीदे पढ़ते नहीं थक रहे हैं। इन तकनीकी शून्य संपादकों को लगता है कि यदि ये अखबार में वर्चुअल या साइबर या वेबसाइट जैसा कुछ लिखेंगे तो पाठकों को लगेगा कि ये तरक्की पसंद हैं और आधुनिक तकनीक से परिचय करा रहे हैं। ये पत्रकारिता के कलंक जो कि तकनीक के नाम पर ठीक से ई मेल तक उर्दू में नहीं भेज सकते जिसके लिये "इनपेज" नाम के अपाहिज सॉफ़्टवेयर का सहारा लेते हैं ये क्या बतायेंगे कि वेबसाइट,ब्लॉग,सोशल नेटवर्किंग की दिशा में तकनीकी विकास क्या है?
इन की निष्पक्ष पत्रकारिता तब समझ आती जब ये जाहिल ये भी लिखते कि ये वही फ़ेसबुक है जिसका पूरी दुनिया के मुस्लिम विरोध कर रहे हैं। थू है इनकी पत्रकारिता पर......
जय जय भड़ास

5 टिप्पणियाँ:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

ये मान के चलो कि ये निहायत स्वार्थी लोग किसी के नहीं है !

बेनामी ने कहा…

aapane sahi paksh rakhaa magar ulajhan barkaraar hai , aap ham jaise gair muslim(kaafir) unake hisaab se uanki kisi bhi baat par tippani nahin kar sakate magar , aaj kisi hindu ko koi bhi vishv kaa naagarik yadi koi galti bataaye to wo us par vichaar jarur karegaa ur jarurat padane par apanaayegaa bhi magar Muslims aaj bhi 19 vi sadi men ji rahe hai , so unake aur hamaare bich kaa faasalaa banaa rahegaa , ye bilku aisaa hai ki wo aapako alien samajhenge aur aapaki baat sunane se pahale hi aapako patthar maarane lagenge

jaise hamaare adhunik samaaj ke saath aadivaasiyon aur itar janjaatiyon ne vikaas ko chunaa hai waise hi inhe bhi chunanaa padegaa , magar inake durbhaagya se inake bich inake apane hi inhe pichhadaa banaaye rakhane par tule hai , ek tarah se aap ham ek khule paagal khaane men rah rahe hai
aashaa hai thode men bahut samajh gaye honge aap

saarthak lekh hai , badhaai !

Tarun Kumar Thakur
Indore
designrocker3@gmail.com

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

तरूण जी बेहतर रहेगा कि आप अपने खाते से टिप्पणी करें क्योंकि भड़ास पर बेनामी टिप्पणियां प्रकाशित नहीं करी जाती हैं
जय जय भड़ास

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

वाह! एकदम दीवाला निकला हुआ है इनके दिमाग का.. ..काश ये लोग समझ पाते की कट्टर होने से बौद्धिक होना ज्यादा आसान और जरुरी है .. लेकिन भड़ास की शान में आप चार चाँद लगा रहे हैं .. जय हों आपकी

Jjagbani ने कहा…

bhaiyo ap http://www.hindsamachar.in kyu nahi padte..? ye urdu akhbar hai aur ismai sir sahi sahi news hi shapti hai. mai to apko yahi suggest kar sakta hoon

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