ऊंट की करवट पर मीडिया की पिपिहरी के बदलते सुर

शनिवार, 5 जून 2010

हमारे देश में लोकतंत्र की जो अशिक्षा के कारण भयंकरतम स्थिति है वह शायद शुक्र और मंगल ग्रहों पर भी जीवन पाए जाने पर न होगी। जनता है कि अपनी मुंडियों की गिनती के आधार पर वोट देती है और चोर अपने नेता के तौर पर सबसे माहिर चोर को चुनते हैं यानि कमीनी जनता के कमीने नेता। परेशानी ये है कि ये कमीनापन नहीं बल्कि अशिक्षा के कारण भी होता है। जब शिक्षा बलबलाने लगती है तो बुकर एवार्ड बकर-बकर करने लगता है कि हमने तो कह दिया उखाड़ लो क्या उखाड़ सकते हो।
ऐसे में दिनरात चिल्लाते न्यूज चैनल और काले होते समाचार पत्र ममता बाई बनर्जी को रेलगाड़ी की दुर्घटना पर माला जपने वाले अंदाज में कोसना शुरू कर देते हैं। अक्षर-अक्षर जोड़ कर अखबार पढ़ने वाला एक वोट अपना मन बनाने लगता है कि ये बाई तो गंदी है देखो तो गाड़ी गिरा दी(उसे नहीं पता कि होम मिनिस्टरी क्या है और रेल मिनिस्टरी क्या है वो तो बस रिक्शा चलाना शुरू करने से पहले चाय की दुकान पर पड़ा अखबार पढ़ रहा है) तब तक ममता बाई बनर्जी की पार्टी जोरदार अंदाज में जीत जाती है तो अगले दिन वही अखबार जो कल तक बाई जी को लापरवाह और गैर जिम्मेदार बता रहा था सुर बदल कर दीदी दीदी करते नहीं थक रहा है। बेचारा रिक्शे वाला परेशान है कि क्या करे जो रही सही लोक तंत्र की ताकत एक वोट उसके पास है वो दे किसे?????? यही कारण है कि हमारे देश में कभी भी शत-प्रतिशत वोटिंग नहीं होती।
जय जय भड़ास

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