आभासी दुनिया के असली नायक संजय कटारनवरे
रविवार, 20 जून 2010
संजय कटारनवरे जी,
आप इस आभासी दुनिया के असली नायक हैं। आपने बहुत सारे मुखौटे अब तक लोगो के नोच डाले हैं जिनकी संख्या आपको याद नहीं होगी हमारा प्रयास यह है कि इस देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुँचाने वाले तत्वों को इंगित करना है आपने जेलों में सड़ने को अभिषप्त हैं मुस्लिम युवा-1 को श्री विजय प्रताप ने अनुवाद करके लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेजा था जो प्रकाशित हुआ और फिर उसको लोकसंघर्ष के ब्लॉग पर प्रकाशित किया गया है। क्या यह सच नहीं है कि धर्म के आधार पर उत्पीडन हो रहा है, जाति के आधार पर उत्पीडन हो रहा है। एक बेहतर भारत के लिए यह आवश्यक है की बहुधर्मीय, बहुजातीय लोगों में परस्पर एकता बनी रहे। जो लोग भी जाति और धर्म, भाषा के नाम पर किसी को भी प्रताड़ित करने की कोशिश करते हैं वह इस देश को कमजोर करना चाहते हैं। बहुत उथली सोच लेकर कोई भी कार्य नहीं हो सकता है। अभी तक यह प्रचार किया जाता रहा है कि प्रत्येक मुसलमान आतंकी नहीं है किन्तु हर पकडे जाने वाला आतंकी मुसलमान है जब दूसरे धर्मो के लोग आतंक की घटनाओ में पकडे गए तब यह थ्योरी आई आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता। देश गुलाम क्यों हुआ और इतिहास को गौर से देखेंगे तो पता चलेगा की अपने ही लोग कुछ लालच में कुछ स्वार्थ में वशीभूत होकर शत्रुवों की मदद की लेकिन अगर आप विभिन्न घटनाओ का निष्पक्ष विवेचन करेंगे तो निश्चित रूप से मान और अपमान का भी सवाल छुपा होगा। ब्लॉग जगत में काफी लोग गंभीर तरीके से अपना काम कर रहे हैं और कुछ लोग ब्लैक मेलिंग, कीचड उछालने का कार्य बहुत खूबसूरत तरीके से कर रहे हैं यह अपना अपना द्रष्टिकोण है मैं भी तमाम अनछुए पहलूवों पर तमाम सारे लोगों के पक्ष रखने का काम कर रहा हूँ। जरूरी नहीं है की मैं उनके उस पक्ष से सहमत ही हूँ।
आप यह जानना चाहते हैं की मैं किस तरह का साम्यवादी हूँ तो मेरा कोई प्रकार नहीं है मार्क्स के दर्शन को मानता हूँ। कम्युनिस्ट घोषणा पत्र के अनुरूप कार्य करने की कोशिश करता हूँ। अगर आधा समय लेखन आदि में व्यतीत करता हूँ तो सीधे-सीधे जनसंघर्षों में भी भाग लेता हूँ। आपने मेरी बताई हुई किताबें पहले से पढ़ रखी हैं यह और भी अच्छी बात है। मैं चाहता हूँ की आप मुखौटा नोचने में व्यस्त रहनें की बजाए कम्युनिस्ट घोषणा पत्र के ऊपर कोई गंभीर आलेख भड़ास पर प्रकाशित करें।
एक टिप्पणीकार के अनुसार मेरी वकालत नहीं चलती है यह बात उचित नहीं है। अपने जीवन को चलने के लिए वकालत से इतना मिल जाता है की अच्छे तरीके से जीवन यापन हो जाता है और अगर कभी कमी पड़े तो टिपण्णी कार महोदय मेरी अवश्य मदद करेंगे यह मेरा विश्वास है।
हगना-मूतना नैसर्गिक क्रियाएं हैं मैं नहीं उचित समझता हूँ की उसी में मैं उलझा रहूँ सुबह दोपहर शाम जब भी जरूरत होती है यह क्रियाएं चलती रहती हैं। मुझे नहीं मालूम है की महान व्यक्तियों को यह होती हैं या नहीं होती हैं। अगर आपके कुछ प्रश्न रह गए होंगे समय मिलते ही उनका भी जवाब दिया जायेगा।
अंत में
श्री संजय जी आज बस इतना ही शेष आगे सवालों के जवाब दिए जायेंगे।
-सुमन
लो क सं घ र्ष !
आप इस आभासी दुनिया के असली नायक हैं। आपने बहुत सारे मुखौटे अब तक लोगो के नोच डाले हैं जिनकी संख्या आपको याद नहीं होगी हमारा प्रयास यह है कि इस देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुँचाने वाले तत्वों को इंगित करना है आपने जेलों में सड़ने को अभिषप्त हैं मुस्लिम युवा-1 को श्री विजय प्रताप ने अनुवाद करके लोकसंघर्ष पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेजा था जो प्रकाशित हुआ और फिर उसको लोकसंघर्ष के ब्लॉग पर प्रकाशित किया गया है। क्या यह सच नहीं है कि धर्म के आधार पर उत्पीडन हो रहा है, जाति के आधार पर उत्पीडन हो रहा है। एक बेहतर भारत के लिए यह आवश्यक है की बहुधर्मीय, बहुजातीय लोगों में परस्पर एकता बनी रहे। जो लोग भी जाति और धर्म, भाषा के नाम पर किसी को भी प्रताड़ित करने की कोशिश करते हैं वह इस देश को कमजोर करना चाहते हैं। बहुत उथली सोच लेकर कोई भी कार्य नहीं हो सकता है। अभी तक यह प्रचार किया जाता रहा है कि प्रत्येक मुसलमान आतंकी नहीं है किन्तु हर पकडे जाने वाला आतंकी मुसलमान है जब दूसरे धर्मो के लोग आतंक की घटनाओ में पकडे गए तब यह थ्योरी आई आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता। देश गुलाम क्यों हुआ और इतिहास को गौर से देखेंगे तो पता चलेगा की अपने ही लोग कुछ लालच में कुछ स्वार्थ में वशीभूत होकर शत्रुवों की मदद की लेकिन अगर आप विभिन्न घटनाओ का निष्पक्ष विवेचन करेंगे तो निश्चित रूप से मान और अपमान का भी सवाल छुपा होगा। ब्लॉग जगत में काफी लोग गंभीर तरीके से अपना काम कर रहे हैं और कुछ लोग ब्लैक मेलिंग, कीचड उछालने का कार्य बहुत खूबसूरत तरीके से कर रहे हैं यह अपना अपना द्रष्टिकोण है मैं भी तमाम अनछुए पहलूवों पर तमाम सारे लोगों के पक्ष रखने का काम कर रहा हूँ। जरूरी नहीं है की मैं उनके उस पक्ष से सहमत ही हूँ।
आप यह जानना चाहते हैं की मैं किस तरह का साम्यवादी हूँ तो मेरा कोई प्रकार नहीं है मार्क्स के दर्शन को मानता हूँ। कम्युनिस्ट घोषणा पत्र के अनुरूप कार्य करने की कोशिश करता हूँ। अगर आधा समय लेखन आदि में व्यतीत करता हूँ तो सीधे-सीधे जनसंघर्षों में भी भाग लेता हूँ। आपने मेरी बताई हुई किताबें पहले से पढ़ रखी हैं यह और भी अच्छी बात है। मैं चाहता हूँ की आप मुखौटा नोचने में व्यस्त रहनें की बजाए कम्युनिस्ट घोषणा पत्र के ऊपर कोई गंभीर आलेख भड़ास पर प्रकाशित करें।
एक टिप्पणीकार के अनुसार मेरी वकालत नहीं चलती है यह बात उचित नहीं है। अपने जीवन को चलने के लिए वकालत से इतना मिल जाता है की अच्छे तरीके से जीवन यापन हो जाता है और अगर कभी कमी पड़े तो टिपण्णी कार महोदय मेरी अवश्य मदद करेंगे यह मेरा विश्वास है।
हगना-मूतना नैसर्गिक क्रियाएं हैं मैं नहीं उचित समझता हूँ की उसी में मैं उलझा रहूँ सुबह दोपहर शाम जब भी जरूरत होती है यह क्रियाएं चलती रहती हैं। मुझे नहीं मालूम है की महान व्यक्तियों को यह होती हैं या नहीं होती हैं। अगर आपके कुछ प्रश्न रह गए होंगे समय मिलते ही उनका भी जवाब दिया जायेगा।
अंत में
हिंसा और उपभोक्तावाद के दौर में सूफियों की प्रासंगिकता
पर श्री शम्स साहब की पोस्ट सूफ़ियों पर सवाल आपसे ....... आई है पूरी की पूरी पोस्ट सम्बंधित लेखक को भेजी जा चुकी है लेखक महोदय बाहर गए हुए हैं, उनके आते ही वह समुचित रूप से सवालों का जवाब गंभीर आलेख के रूप में देंगे। मेरी समझ से यही उचित है।श्री संजय जी आज बस इतना ही शेष आगे सवालों के जवाब दिए जायेंगे।
-सुमन
लो क सं घ र्ष !
1 टिप्पणियाँ:
जनाब संजय कटारनवरे जी उम्मीद है कि आप संतुष्ट नहीं हुए होंगे लेकिन कोई बात नहीं आप अपना विषवमन जारी रखिये ताकि आपका दिल हल्का होकर कदाचित रचनात्मक होकर देशहित और समाजहित में कुछ कर सके। आप जैसे लोगों की मुल्क को सख्त जरूरत है। आप पुरजोर पेले रहिए:)
आपने अभी तक फोन नहीं करा क्या कुछ नाराजगी है या गला खराब है?मैं आपको भड़ास की सीधी सदस्यता देने के लिये एक टांग पर खड़ा हूं भाई।
जय जय भड़ास
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